पंडित हर्षमणि बहुगुणा
संसार में जितने प्रकार के प्राणि हैं, उनमें मनुष्यों की संख्या बहुत कम है। मनुष्य योनि कर्म योनि है इसी जन्म स्थान में प्राणि भगवान को प्राप्त करता है। यही बात स्थान के विषयक भी है, पृथ्वी पर जितनी भूमि है उसमें पुण्य भूमि बहुत कम, हमारे शास्त्र भारत भूमि को पुण्य भूमि मानते हैं। विष्णु पुराण में वर्णित है कि
गायन्ति देवा: किल गीतकानि धन्यास्तु ते भारतभूमिभागे ।
स्वर्गापवर्गास्पदमार्गभूते भवन्ति भूय: पुरुषा: सुरत्वात्।।
अर्थात् देवता यह गान करते हैं कि जिन्होंने स्वर्ग और अपवर्ग के मार्ग भूत भारत वर्ष में जन्म लिया है वे देवताओं की अपेक्षा बड़भागी हैं।
सभी सनातन धर्म के पावन पर्व आध्यात्मिक भावना से ओत-प्रोत हैं, उनमें भारतीय संस्कृति की जीवन्त प्रेरणा है, आज आवश्यकता है कि इन त्योहारों का रक्षण पूरी तत्परता से किया जाय समयानुसार विकृतियां पैदा न हों और जो महत्वपूर्ण बात है वह यह है कि त्योहारों के वास्तविक उद्देश्य की जानकारी लुप्त न हो अतः सावधानी बरतने की आवश्यकता है। भारतीय संस्कृति सर्व धर्म समभाव की भावना से भरपूर है, हमारा राष्ट्र एक है अतः एक नियम एक कानून का पालन करना चाहिए सभी भारतीयों को देश हित की भावना मन में रखनी चाहिए।
कहने का अभिप्राय यह है कि इस मास में अनेक त्योहार आ रहे हैं। जनसंख्या वृद्धि के साथ-साथ अनेक प्रकार के प्रदूषण बढ़ते हैं , यथा ध्वनि, वायु, जल व सामाजिक। और इनसे सुरक्षा करना भी हमारा धर्म है। देश पहले है अतः देश की उन्नति हमारा प्रमुख दायित्व है।
एक नवम्बर से छः नवम्बर तक पर्वों की धूम या यह कहा जाय कि प्रत्येक दिन उत्सव, दीपावली का विशेष महोत्सव उसी में लक्ष्मी जी का उपार्जन और उपयोग, मर्यादा बोध, गो संवर्द्धन के सामूहिक प्रयत्न से अंधेरी रात को जगमगाने का एक अनुपम उदाहरण तथा वर्षा के बाद समग्र सफाई।
दीपावली का सच्चा आनन्द नित्य सुख रूपी प्रकाश का विस्तार करना है। दीपावली का अपना महत्व है, आज इस पर कम पर जो भारतीय संस्कृति व परमपराएं हैं उन पर जो राजनीति या यह कहा जाय कि कूटनीति की काली छाया मंडरा रही है उस पर बात करना चाहता हूं। दीपोत्सव खुशियों का त्योहार है।
जैन दीपावली मनाते हैं क्योंकि उस दिन महावीर स्वामी ने प्रयाण किया था और यह कहा था कि एक दीप बुझ रहा है अतः अन्धकार की विजय न होने देना, हजार दीपक जलाएं। पर उसमें भगवान राम के अयोध्या लौटने की जैसी खुशी नहीं हो सकती है। सिकन्दर ने कहा था कि यह विचित्र देश है। ओर लोग तो जीवन का उत्सव मनाते हैं यहां तो मृत्यु को भी महोत्सव बना दिया जाता है।
सत्यता तो यह है कि इतने रंग, इतनी विविधताएं, इतना आनन्द, इतनी भक्ति भावनाएं दूसरी जगह कहीं नहीं मिलती, तभी तो भारत भूमि को धन्य कहा है। पर कोई भी त्योहार क्यों न हो आज राजनीति के चश्में से देखने की कुप्रथा है, होना तो यह चाहिए कि यदि प्रदूषण बढ़ता है तो नये वर्ष में, क्रिसमिस में ईद या मोहर्रम में आतिशबाजी घातक है अतः इन किसी भी पर्वो पर नहीं होनी चाहिए सबके लिए एक नियम हो तो कोई विवाद नहीं हो सकता है।
भारतीय संस्कृति में यहां के जो भी उत्सव हैं उन पर स्वास्थ्य की पैनी दृष्टि दिखाई देती है। यथा फाल्गुन में विषाणु प्रबल हो जाते हैं अतः उनसे लड़ने उनका प्रतिकार करने के लिए होली जलाना, रंग उड़ाना, नीम का सेवन करना स्वास्थ्य रक्षा का कारक है। दीपावली वर्षा के बाद गन्दगी और अपार संख्या में कीट पतंगे जीवन दूभर कर देते हैं बहुत से दीपक जलाकर, घर की सफाई, सजावट जीवन को आनन्द मय बनाते हैं । खान पान में स्वास्थ्य की पैनी दृष्टि दिखाई देती है। इन सभी त्योहारों में प्रतिकूलता न आने पाय इस पर विशेष ध्यान देने की आवश्यकता है। यह भी सत्य है कि – ‘ *जैसा देश, वैसा भेष ‘*
धर्म प्रिय देश में स्नान, उपवास व आहार का भी विशेष महत्व है। भारत की प्रकृति नित नए श्रृंगार करती है, हमारे यह सभी त्योहारों में आनन्द की भावना भरी रहती है । जरा अन्य धर्मों के प्रति देखें तो– ” मुहर्रम दुखद याद का पर्व, ईस्टर में ईशा मसीह की शहादत,जैन समुदाय कठोर व्रत का पालन करते हैं बौद्ध भगवान बुद्ध का जन्मोत्सव मनाया जाता है। हम हर किसी के त्योहारों की कद्र करते हैं, न हम कट्टर पंथी है , न ईर्ष्यालु । हम सभी सहिष्णुता से परिपूर्ण हैं। भले ही आज मनोरंजन के साधनों की प्रचुरता है फिर भी हम अपने अतीत को नहीं भुला सकते हैं।
दीपावली हमारे चार बड़े त्योहारों में एक है, इस दिन दीपोत्सव के साथ लक्ष्मी पूजन का विधान है, इस पर अगले दिन विचार करेंगे। आज इस अनुरोध के साथ कि हम सभी भारतीय एक संकल्प लें कि किसी भी पर्व या त्योहार पर आतिशबाजी का प्रयोग नहीं करेंगे। कोई नशा, कोई अनैतिक कर्म नहीं करेंगे। तभी हमारे त्योहारों का विशेष आनन्द होगा व एक सामान्य पर्व भी महोत्सव में परिणत हो जाएगा।