सनातन धर्म में एकादशी बहुत ही महत्वपूर्ण मानी जाती है। साल 2023 की पहली एकादशी 02 जनवरी यानी आज मनाई जा रही है। एकादशी के दिन भगवान विष्णु की पूजा की जाती है। मान्यता के अनुसार, एकादशी के दिन व्रत करने से सभी इच्छाएं पूर्ण होती है। भारत के कुछ क्षेत्रों में पौष पुत्रदा एकादशी को स्वर्गावथिल एकादशी या मुक्तकोटि एकादशी भी कहा जाता है।
हिमशिखर धर्म डेस्क
नए साल 2023 की पहली एकादशी आज सोमवार (2 जनवरी) को है। पौष मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी को पुत्रदा एकादशी कहते हैं। ये एकादशी सोमवार को होने से इस दिन विष्णु जी के साथ ही शिव जी और चंद्र ग्रह की भी पूजा करनी चाहिए। ये व्रत संतान के सुखी और सफल जीवन की कामना से किया जाता है।
एकादशी और सोमवार के योग में किए गए पूजन से अक्षय पुण्य मिलता है। भगवान की कृपा से कार्यों में आ रही बाधाएं दूर होती हैं और सफलता के साथ ही मान-सम्मान मिलता है।
पुत्रदा एकादशी पर भगवान विष्णु की पूजा करें और पूजा में ऊँ नमो भगवते वासुदेवाय मंत्र का का जप करना चाहिए।
जानिए विष्णु पूजा की संक्षिप्त विधि…
भगवान विष्णु और महालक्ष्मी की प्रतिमाओं को स्नान कराएं। इसके बाद दक्षिणावर्ती शंख से अभिषेक करें। अभिषेक के लिए दूध में केसर डालें और उस दूध से अभिषेक करें। दूध से अभिषेक के बाद जल से अर्पित करें।
विष्णु जी और लक्ष्मी जो को नए वस्त्र अर्पित करें। फूलों से भगवान का सुंदर श्रृंगार करें। भगवान को पूजन सामग्री चढ़ाएं। मिठाई का भोग तुलसी के पत्तों के साथ लगाएं। धूप-दीप जलाकर आरती करें। मंत्र जप करें। अंत में भगवान से जानी-अनजानी गलतियों के लिए क्षमा याचना करें। पूजा के बाद प्रसाद बांटें और खुद भी लें।
सोमवार को करें शिव जी का पूजन
शिवलिंग पर तांबे के लोटे से जल चढ़ाएं। ऊँ नम: शिवाय मंत्र का जप करें। शिवलिंग पर बिल्व पत्र, शमी के पत्ते, आंकड़े के फूल, धतूरा चढ़ाएं। फूलों से सुंदर श्रृंगार करें। चंदन से तिलक लगाएं। जनेऊ, चावल और अन्य चीजें अर्पित करें। मिठाई और मौसमी फलों का भोग लगाएं। धूप-दीप जलाएं। आरती करें। पूजा के बाद भगवान से क्षमा मांगें। प्रसाद बांटें और खुद भी लें।
चंद्र ग्रह के लिए ऐसे करें पूजा
चंद्र ग्रह की पूजा करना चाहते हैं तो शिव जी के मस्तक पर विराजित चंद्र की पूजा करनी चाहिए। चंद्र ग्रह का दूध से अभिषेक करें। सफेद फूल चढ़ाएं। दूध से बनी मिठाई का भोग लगाएं।
स्कंद पुराण में है एकादशी व्रत का जिक्र
स्कंद पुराण के वैष्णव खंड में सभी एकादशियों के बारे में बताया गया है। इस ग्रंथ के अनुसार भगवान श्रीकृष्ण ने युधिष्ठिर को एकादशी व्रत और इससे मिलने वाले लाभों की जानकारी दी थी। ये व्रत विष्णु जी के लिए किया जाता है। ऐसी मान्यता है कि जो लोग सभी एकादशियों पर व्रत करते हैं, उन्हें स्वास्थ्य लाभ के साथ ही धर्म लाभ भी मिलते हैं।
पुत्रदा एकादशी व्रत कथा
पुत्रदा एकादशी व्रत कथा भद्रावती नगर में सुकेतुमान से जुड़ी हुई है। राजा की पत्नी का नाम शैव्या था, राजा को कोई संतान नहीं थी। इससे दोनों चिंतित रहते थे। हाल यह था कि एक वक्त उसने देह त्याग देने तक का विचार कर लिया था, हालांकि बाद में उसने इसे पाप समझकर यह विचार त्याग दिया। इस बीच एक दिन राजा इन्हीं विचारों के साथ वन भ्रमण के लिए निकला था। वन के सुरूचिपूर्ण दृश्य देखते आधा दिन बीत गया। प्यास लगने पर पानी की तलाश के दौरान राजा मुनियों के आश्रम पहुंच गया, मुनियों को दंडवत प्रणाम कर बैठ गया। इससे प्रसन्न मुनियों ने राजा की इच्छा पूछी। मनुयों ने बताया कि आज संतान प्रदान करने वाली पुत्रदा एकादशी है। वे लोग विश्वदेव हैं और सरोवर में स्नान करने आए हैं। मुनियों ने राजा को व्रत की विधि बताई और राजा ने उस दिन व्रत रखा और द्वादशी को पारण के बाद महल लौटा। बाद में रानी को संतान की प्राप्ति हुई।