देश का सबसे बड़ा रेस्क्यू ऑपरेशन सफल: बोरवेल में गिरे राहुल को सकुशल निकाला, 105 घंटे चला आपरेशन

छत्तीसगढ़

Uttarakhand

105 घंटे की कड़ी मशक्कत के बाद छत्तीसगढ़ जांजगीर-चांपा जिले में बोरवेल में फंसे राहुल को सेना के जवानों की मदद से आखिरकार बाहर निकाल लिया गया। मंगलवार देर रात बोरवेल से निकालने के बाद 11 साल के राहुल साहू को टनल के मुहाने पर पहले प्राथमिक उपचार दिया गया। फिर उसे इलाज के लिए अपोलो अस्पताल ले जाया गया। मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने सबसे लंबे चले रेस्क्यू ऑपरेशन के बाद राहुल को सुरक्षित निकाले जाने पर रेस्क्यू टीम में शामिल सभी अधिकारी-कर्मचारियों को बधाई दी है। इस पूरी रेस्क्यू ऑपरेशन की मॉनिटरिंग स्वयं भूपेश बघेल कर रहे थे।

बच्चे के निकालने के बाद की पहली तस्वीर।
बच्चे के निकालने के बाद की पहली तस्वीर।
बोरवेल से निकालने के बाद राहुल को बिलासपुर के अपोलो हॉस्पिटल में एडमिट किया गया है।
बोरवेल से निकालने के बाद राहुल को बिलासपुर के अपोलो हॉस्पिटल में एडमिट किया गया है।

जैसे ही राहुल को बाहर निकाला गया जवानों ने भारत माता की जय के नारे लगाए। लोगों ने रेस्क्यू टीम के लिए तालियां बजाईं और पटाखे चलाए। लोगों ने SDRF, NDRF और सेना के जवानों को गोद में उठा लिया।

राहुल के सुरक्षित निकाले जाने के बाद लोगों ने रेस्क्यू टीम के लिए तालियां बजाईं।
राहुल के सुरक्षित निकाले जाने के बाद लोगों ने रेस्क्यू टीम के लिए तालियां बजाईं।

कैसे चला रेस्क्यू ऑपरेशन

सेना के जवानों ने रेस्क्यू की कमान अपने हाथ में ले ली थी। वो टनल के जरिए पहले बोरवेल और फिर राहुल तक पहुंचे। बच्चे के अंदर होने की वजह से चट्टानों को ड्रिलिंग मशीन से ना काटकर हाथ से तोड़ा गया, फिर अंदर की मिट्टी हटाई गई। ऐसा करते-करते जवान राहुल तक पहुंचे। इसके बाद रस्सी से खींचकर राहुल को बाहर लाया गया। उसकी हालत को देखते हुए पहले से ही एंबुलेंस, डाक्टरों की टीम और मेडिकल इक्युपमेंट्स तैयार थे। टनल से एंबुलेंस तक कॉरिडोर बनाया गया था। राहुल को स्ट्रैचर के जरिए सीधे एंबुलेंस तक लाया गया।

टनल के एक बड़े हिस्से को हाथ से तैयार किया गया ताकि बच्चे को नुकसान न हो।
टनल के एक बड़े हिस्से को हाथ से तैयार किया गया ताकि बच्चे को नुकसान न हो।

ऐसे पहुंची टीम

सेना की ओर से बताया गया कि NDRF टीम को आराम देने के लिए जवानों ने कमान संभाली थी। यह एक जॉइंट ऑपरेशन था। सवाल बच्चे की जिंदगी का था, ऐसे में चट्‌टान तोड़ने के लिए इक्युपमेंट्स से ज्यादा हाथों का इस्तेमाल किया गया। जवान हाथों से मिट्टी निकाल रहे थे और कोहनी के सहारे आगे बढ़ रहे थे। धीरे-धीरे मिट्टी हटाते-हटाते आखिरकार वह लम्हा आ ही गया जब बनाई गई टनल बोरवेल से मिल गई। वहां पहली बार अंदर चट्टान के हिस्से पर सोए राहुल की पहली झलक जवानों को मिली। बाहर जानकारी दी गई और भीड़ भारत माता की जय के नारे लगाने लगी।

एंबुलेंस से बच्चे को बिलासपुर के अस्पताल ले जाया गया।
एंबुलेंस से बच्चे को बिलासपुर के अस्पताल ले जाया गया।

10 जून को बोरवेल में गिरा था राहुल

राहुल साहू (10) का शुक्रवार दोपहर 2 बजे के बाद से कुछ पता नहीं चला। जब घर के ही कुछ लोग बाड़ी की तरफ गए तो राहुल के रोने की आवाज आ रही थी। गड्‌ढे के पास जाकर देखने पर पता चला कि आवाज अंदर से आ रही है। बोरवेल का गड्‌ढा 60 फीट गहरा था। ये भी बताया गया है कि बच्चा मूक-बधिर है, मानसिक रूप से काफी कमजोर है, जिसके कारण वह स्कूल भी नहीं जाता था। घर पर ही रहता था। पूरे गांव के लोग भी 2 दिन से उसी जगह पर टिके हुए थे, जहां पर बच्चा गिरा है।

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