रक्षाबंधन को लेकर एक कथा भगवान श्रीहरि के वामन अवतार से जुड़ी है। मान्यता है कि सबसे पहले महालक्ष्मी ने राजा बलि की कलाई पर रक्षासूत्र बांधा था। उस दिन सावन माह की पूर्णिमा तिथि ही थी। तभी से हर साल सावन माह की पूर्णिमा पर ये पर्व मनाया जाने लगा। एक अन्य कथा द्रौपदी और भगवान श्रीकृष्ण से जुड़ी है।
वामन ब्राह्मण ने बलि से तीन पग भूमि मांगी
कथा के अनुसार राजा बलि देवताओं के स्वर्ग को जीतने के लिए यज्ञ कर रहा था। तब देवराज इंद्र ने विष्णु भगवान से प्रार्थना की कि वे राजा बलि से सभी देवताओं की रक्षा करें। इसके बाद श्रीहरि वामन अवतार लेकर एक ब्राह्मण के रूप में राजा बलि से भिक्षा मांगने पहुंचे। वामन ब्राह्मण ने बलि से दान में तीन पग भूमि मांगी थी।
वामन अवतार ने दो पग में ब्राह्मांड नाप लिया
राजा बलि ने सोचा कि छोटा सा ब्राह्मण है, तीन पग में कितनी जमीन ले पाएगा। ऐसा सोचकर बलि ने वामन को तीन पग भूमि देने का वचन दे दिया। भगवान विष्णु के वामन अवतार ने अपना आकार बढ़ाना शुरू किया और एक पग में पूरी पृथ्वी नाप ली। दूसरे पग में पूरा ब्राह्मांड नाप लिया। इसके बाद वामन ब्राह्मण ने बलि से पूछा कि अब मैं तीसरा पैर कहां रखूं?
भगवान विष्णु पाताल लोक चले गए
राजा बलि समझ गए कि ये कोई सामान्य ब्राह्मण नहीं हैं। बलि ने तीसरा पैर रखने के लिए अपना सिर आगे कर दिया। अब तीसरे पग के लिए राजा बलि के पास कुछ नहीं बचा था तो उन्होंने भगवान का पग अपने सिर पर रखवा लिया। पैर रखते ही राजा बलि पाताल लोक चले गए। इसके बाद वामन अवतार प्रसन्न हो गए और विष्णु भगवान अपने मूल स्वरूप प्रकट हुए। विष्णु जी ने बलि से वरदान मांगने के लिए कहा। राजा बलि ने भगवान विष्णु से कहा कि आप भी हमेशा मेरे साथ पाताल में रहें। भगवान ने ये बात स्वीकार कर ली और राजा के साथ पाताल लोक रहने लगे।
महालक्ष्मी ने बलि की कलाई पर बांधा रक्षासूत्र
जब ये बात महालक्ष्मी को मालूम हुई तो वे भी पाताल लोक गईं और राजा बलि की कलाई पर रक्षासूत्र बांधकर उसे भाई बना लिया। इसके बाद बलि ने देवी से उपहार मांगने के लिए कहा, तब लक्ष्मी ने भगवान विष्णु को मांग लिया। राजा बलि ने अपनी बहन लक्ष्मी की बात मान ली और विष्णुजी को लौटा दिया।
दूसरी कथा
श्रीकृष्ण ने दिया था वरदान
महाभारत काल में युधिष्ठिर ने राजसूय यज्ञ आयोजित किया था। यज्ञ में श्रीकृष्ण और कौरवों के साथ ही शिशुपाल को भी आमंत्रित किया गया था। श्रीकृष्ण ने शिशुपाल की मां यानी उनकी बुआं को वरदान दिया था कि वे शिशुपाल की सौ गलतियां माफ करेंगे। शिशुपाल एक के बाद एक गलतियां करता रहा। उसे ऐसा लग रहा था श्रीकृष्ण उसका कुछ नहीं बिगाड़ सकते हैं।
शिशुपाल ने की सौ गलतियां पूरी
राजसूय यज्ञ में श्रीकृष्ण को विशेष सम्मान दिया जा रहा था, जिसे देखकर शिशुपाल क्रोधित हो गया। शिशुपाल ने भरी सभा में श्रीकृष्ण का अपमान करना शुरू कर दिया। पांडवों उसे रोक रहे थे, लेकिन वह नहीं माना। श्रीकृष्ण उसकी गलतियां गिन रहे थे। जैसे ही शिशुपाल की सौ गलतियां पूरी हो गईं, श्रीकृष्ण ने उसे सचेत किया कि अब एक भी गलती मत करना, वरना अच्छा नहीं होगा।
सुदर्शन चक्र ने शिशुपाल का सिर धड़ से किया अलग
शिशुपाल अहंकार में सब कुछ भूल गया था। उसका खुद की बोली पर ही नियंत्रण नहीं था। वह फिर से अपमानजनक शब्द बोला। जैसे ही शिशुपाल ने एक और गलती की, श्रीकृष्ण ने सुदर्शन चक्र धारण कर लिया। इसके बाद कुछ ही पल में सुदर्शन चक्र ने शिशुपाल का सिर धड़ से अलग कर दिया।
जब भगवान की उंगली पर लगी चोट
जब सुदर्शन चक्र वापस श्रीकृष्ण की उंगली पर आया तो भगवान की उंगली पर चोट लग गई, जिससे खून बहने लगा, तब द्रौपदी ने अपनी साड़ी में से एक टुकड़ा फाड़ा और श्रीकृष्ण की उंगली पर लपेट दिया। उस समय श्रीकृष्ण ने वरदान दिया था कि वे द्रौपदी की इस पट्टी के एक-एक धागे का ऋण जरूर उतारेंगे।
इसके बाद जब युधिष्ठिर जुए में द्रौपदी को हार गए दु:शासन ने भरी सभा में द्रौपदी के वस्त्रों का हरण करने की कोशिश की, उस समय श्रीकृष्ण ने द्रौपदी की साड़ी लंबी करके उसकी लाज बचाई थी। इस कथा को भी रक्षासूत्र से जोड़कर देखा जाता है।