हिमशिखर धर्म डेस्क
काका हरिओम्
स्वामी रामतीर्थ मिशन द्वारा आयोजित स्वाध्याय प्रकल्प के अन्तर्गत on line वार्षिक सम्मेलन के सातवें दिन आज प्रथम सत्र में बादशाह राम के जीवन के कई नए पहलुओं को जानने-समझने का सौभाग्य मिला. स्वामीजी के प्रमुख शिष्य नारायण स्वामी द्वारा लिखित स्वामीजी की जीवन गाथा में लिखा है कि जब वह मात्र 2 वर्ष के थे, तो उनकी सगाई हो गई थी और जब 10 वर्ष के हुए, तो उनका विवाह कर दिया गया. इस उम्र का बच्चा विवाह का ‘क ख ‘ नहीं जानता है.
इस दृष्टि से विचार करें तो यह कहा जा सकता है कि उन्होंने विवाह किया नहीं था, वह उन पर उस समय की प्रचलित कुरीति के अनुसार थोपा गया था. लेकिन वह उन्हें उनके लक्ष्य से भटका नहीं पाया, पूर्वजन्म के संस्कार उन्हें उस ओर खींच कर ले गए जिसे पाने के लिए उनका जन्म हुआ था. इस तरह वह श्रीकृष्ण की परिभाषा के अनुसार योगभ्रष्ट थे. उनका यह जन्म अंतिम था.
पूरन जी ने स्वामी जी के जीवन को अपनी तरह से लिखा है, नारायण स्वामी ने अपनी समझ के अनुसार. ऐसा होना स्वाभाविक है-जाकी रही भावना जैसी, प्रभु मूरति देखी तिन तैसी. इसलिए रामप्रेमियों को चाहिए कि वह यदि स्वामीजी को व्यापक रूप से समझना चाहते हैं तो उन्हें अपनी रोज की दिनचर्या में शामिल कर लें. इसी से अन्तर बदलेगा. साधना शौक नहीं, जीवन शैली है.
मानस के विश्वविख्यात प्रवक्ता तथा श्रीराम के परम आशय को शास्त्रीय सिद्धांतों द्वारा पुष्ट कर कहने वाले आज के युग के तुलसी पं. श्री रामकिंकर जी महाराज के विशेष कृपापात्र भाईजी के नाम से प्रसिद्ध पूज्य श्रीमैथिलीशरण जी ने आज स्वाध्याय के द्वितीय सत्र में श्रीकृष्ण के कर्म और कर्म संन्यास की व्याख्या करते हुए कुशल प्रवृत्ति को जीवन की परम साधना बताया. यही सच्चे अर्थों में योग है.
भाई जी का कहना था कि भक्ति और ज्ञान में, द्वैत और अद्वैत में पारमार्थिक रूप से कोई भेद नहीं है. इसी तरह प्रत्येक महापुरुष, वह चाहे किसी परंपरा से हो, दिखने में आपको अलग अलग लग सकते हैं लेकिन अपने कर्मों द्वारा इशारा उसी तत्व की ओर करते हैं, जो अनादि अनन्त और सबका प्रकाशक है. उस विराट् से जुड़ने के कारण वह भी उसी का रूप हो जाते हैं. इस मायने में परमात्मा से जुड़ जाना ही कर्मों में कुशलता है. कर्म छोड़ना, उसे छोड़कर भाग जाना संन्यास नहीं है. अनासक्ति पूर्वक कर्म करना ही संन्यास है, स्वामी रामतीर्थ मानो इसी का जीवन्त रूप हैं. उनकी मस्ती इसी ओर इशारा करती है.
कई बार अमरीश जी से चर्चा हुई. आप सभी रामप्रेमियों से मिलने की हार्दिक इच्छा थी, जो आज संयोग से पूर्ण हुई. प्रभु इच्छा थी ऐसी.
एक बार अपने सद्गुरुदेव के साथ राजपुर आश्रम जाने का मुझे सौभाग्य मिला था. आश्रम में प्रवेश ही करते ही वहां की दिव्य तरंगों को मैंने महसूस किया था. उस समय बाबा विश्वनाथ यति जी महाराज के दर्शन किए थे. हम उनके कक्ष में बैठ गए. उन्हें कुछ पता नहीं चला. समाधिस्थ बैठे थे वह. लगा, यही इस स्थान का माहात्म्य है जो ऐसे सिद्ध पुरुष यहां विराजमान हैं. आज आप सबसे रूबरू होकर अच्छा लगा. प्रभुकृपा से सब ठीक हो जाए, तो अवश्य आप सबसे सत्संग करने का लाभ प्राप्त होगा.
आप सब स्वस्थ-सानन्द रहें, यही कामना है.
रामचरणों में कोटिशः नमन.
आदरणीय काका जी ने और अम्बरीष जी ने स्वामी रामतीर्थ मिशन के परिवार का सदस्य बताकर आनंदित कर दिया. हम आभारी हैं.
स्वामीराम तीर्थ जी के अद्वैत सिद्धांत हमारे जीवन में प्रतिपल उपयोगी हैं!