नरेंद्रनगर का रण: नरेंद्रनगर में पुराने प्रतिद्वंदी फिर आमने-सामने, सुबोध और ओमगोपाल के बीच कांटे की टक्कर

नरेंद्रनगर विधानसभा सीट पर मुख्य मुकाबला कांग्रेस और बीजेपी में है। इस बार कांग्रेस ने ओमगोपाल रावत तो बीजेपी ने राज्य सरकार में मंत्री सुबोध उनियाल पर दांव खेला है।

Uttarakhand

हिमशिखर खबर ब्यूरो

नरेंद्रनगर

नरेंद्रनगर विधानसभा सीट पर इस बार मुकाबला दिलचस्प हो गया है। इस सीट पर एक ओर भाजपा से मौजूदा विधायक और कैबिनेट मंत्री सुबोध उनियाल चुनाव मैदान में हैं तो दूसरी ओर कांग्रेस से ओमगोपाल रावत में कड़ी टक्कर है। ओमगोपाल और सुबोध की यह फाइट पहली बार नहीं हैं। ये दोनों प्रत्याशी इस सीट से साल 2002 से ही एक दूसरे के खिलाफ चुनाव लड़ते रहे हैं। हालांकि, इस बार मुकाबला किसी के लिए आसान नहीं है।

ढालवाला और तपोवन से होती है जीत तय

नरेंद्रनगर विधानसभा सीट में जीत-हार का गणित इसके फुट हिल ढालवाला, तपोवन और मुनिकीरेती से तय होता है। पूरी विधानसभा के कुल 92 हजार मतदाताओं में से इस क्षेत्र में से लगभग 24 हजार मतदाता हैं। यहां से जो भी बढ़त बनाता है, उसके लिए चुनावी वैतरणी पार करना आसान हो जाता है। राज्य बनने के बाद से इस सीट से हुए चार चुनावों में अब तक दो बार कांग्रेस, एक बार यूकेडी और एक बार बीजेपी चुनाव जीती। अगर चेहरों की रोशनी में चुनाव को देखें तो सुबोध उनियाल यहां से दो बार कांग्रेस से और एक बार बीजेपी से जीते जबकि ओमगोपाल यूकेडी से एक बार जीते थे। इस बार फिर से ओमगोपाल और सुबोध उनियाल में कड़ी टक्कर है। ऐसे में इस सीट की जंग में यह देखना दिलचस्प रहेगा कि इस बार ओमगोपाल अपना पिछला हिसाब चुकता करने में सफल रहते हैं या फिर सुबोध इस बार भी अपनी बादशाहत कायम रख पाते हैं।

कांग्रेस को एकजुट करने में सफल रहे ओमगोपाल

कांग्रेस में शामिल होने के साथ ही ओमगोपाल रावत कांग्रेस नेताओं को एकजुट करने में सफल दिख रहे हैं। दरअसल, ओमगोपाल के कांग्रेस में शामिल होने से पहले कहा जा रहा था कि पार्टी के पुराने दिग्गज उनके खिलाफ बगावत का झंडा उठा सकते हैं। लेकिन ओमगोपाल के साथ ही कांग्रेस आलाकमान ने इस सीट पर दावेदारों को मना लिया है। यही कारण है कि अब पूर्व प्रमुख वीरेंद्र कंडारी, वरिष्ठ कांग्रेस नेता हिमांशु बिजल्वाण, जगमोहन भंडारी सहित कई वरिष्ठ नेता पूरे दिल से पार्टी प्रत्याशी ओमगोपाल के कंधे से कंधा मिलाकर वोट मांग रहे हैं। वरिष्ठ पत्रकार सुरेंद्र कंडारी कहते हैं कि 2017 के चुनाव में ओमगोपाल रावत निर्दलीय चुनाव लड़े थे। लेकिन इस बार कांग्रेस से चुनाव लड़ने से मुकाबला रोचक हो गया है। इसके पीछे का गणित समझाते हुए सुरेंद्र कंडारी कहते हैं कि ओमगोपाल को इस चुनाव में कांग्रेस के कैडर वोटों के साथ ही पार्टी के नेताओं के एकजुट होने का फायदा भी मिल सकता है।

एंटी-इनकंबेसी को मात देना भाजपा के लिए चुनौति

नरेंद्रनगर सीट में बीजेपी को एंटी इनकंबेसी का भी सामना करना पड़ेगा। साथ ही विपक्ष के एक साथ आने से पार्टी की मुश्किलें बढ़ी हैं। ऐसे में बीजेपी को इन सबको मात देने के लिए अपनी स्ट्रेट्रेजी तैयार करनी होगी। वरिष्ठ पत्रकार सुरेंद्र कंडारी कहते हैं कि ओमगोपाल के भाजपा से कांग्रेस में जाने से भाजपा के झंडाबरदार रहे ओमगोपाल के कई समर्थक अब कांग्रेस का झंडा उठाए प्रचार-प्रसार कर रहे हैं। कहना है कि पिछले दो चुनाव में लगातार हार से भी ओमगोपाल के प्रति जनता में सहानुभूति भी देखी जा रही है।

गांवों की चैपालों में चुनाव को लेकर अब गर्माई राजनीति

नरेंद्रनगर विधानसभा के गांवों की राजनीति में भी अच्छी खासी गर्मी पैदा हो गई है। भाजपा, कांग्रेस और अन्य दलों से जुड़े समर्थक अपनी-अपनी जीत के दावे ठोक रहे हैं। भाजपा के प्रमुख राजेन्द्र भंडारी, सिद्धार्थ समीर  का कहना है कि मौजूदा सरकार ने विधानसभा में पंचवर्षीय काल में विकास के अनेकों काम हुए हैं। इसके आधार पर जनता भाजपा को वोट देगी। कहना है कि भाजपा ऐतिहासिक जीत की ओर आगे बढ़ रही है। वहीं कांग्रेस और ओमगोपाल के समर्थक पूर्व जिला पंचायत सदस्य अनिल भंडारी, जिला पंचायत सदस्य दयाल सिंह रावत, जिला पंचायत सदस्य उर्मिला पुंडीर, राजवीर भंडारी का कहना है कि पंचवर्षीय में कुछ खास लोगों के ही काम हुए हैं। कहा कि आचार संहिता से एक माह पहले विधानसभा की कई सड़कों का शिलान्यास किया गया, जो विकास के हवाई दावों की पोल खोलने के लिए काफी है। कहा कि क्षेत्र का युवा वर्ग कोरोना काल में बेरोजगारी की मार के कारण परेशान रहा। कहा कि इस बार सत्ता परिवर्तन तय है। जनता ने परिवर्तन का मन बना लिया है कि उत्तराखण्ड आंदोलनकारी ओमगोपाल रावत को ही विजय का आशीर्वाद मिलेगा।

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