पंडित हर्षमणि बहुगुणा
यह एक सच्चाई है कि समाज में लोगों को संतुष्ट करना सम्भव नहीं है। इस कथा के माध्यम से यह अच्छी तरह समझा जा सकता है। एक रात जब दुकानदार अपनी दुकान बन्द कर रहा था तभी एक कुत्ता उसकी दुकान पर आया। उसके मुंह में एक थैली थी जिसमें सामान की सूची और पैसे रखे थे। दुकानदार ने पैसे लेकर सामान थैली में रखा, कुत्ते ने थैली मुंह में पकड़ी और चल दिया।
इधर इस दृश्य को देखने वाले व्यक्ति से यह अद्भुत नजारा देख कर आश्चर्य हुआ और वह भी उस कुत्ते के पीछे-पीछे चल दिया, यह देखने के लिए कि इस समझदार कुत्ते का मालिक कौन है। कुत्ता बस स्टाफ पर खड़ा रहा जैसे ही बस आई, कुत्ता बस में बैठ गया और अपनी गर्दन बस कंडक्टर की तरफ की, उसके गले में पैसे व पता लिखी पर्ची थी, कंडक्टर ने पैसे लेकर टिकिट उसकी गर्दन में बांध दिया।
कुत्ता अपने गन्तव्य के आने की इन्तजार में बस के अगले दरवाजे पर आ गया और अपने बस स्टेण्ड के आते ही पूंछ हिला कर बस रुकवाने का संकेत किया, बस रुकी, कुत्ता उतरा और घर के दरवाजे पर जाकर दस्तक देने लगा, दो तीन बार दरवाजा खटखटाया जैसे ही मालिक आया तो मालिक ने आते ही कुत्ते की डण्डे से पिटाई की। उनसे जब पिटाई का कारण पूछा तो मालिक ने बताया कि इस बेवकूफ ने मेरी नींद खराब कर दी यह जब गया था तब चाबी साथ ले जानी चाहिए थी।* “‘” यह है आश्चर्य?
“यह जीवन की सच्चाई है।– आपसे लोगों की अपेक्षाओं का अन्त नहीं है। जहां आपसे चूक हुई वहीं पर लोग बुराई निकाल लेते हैं और पिछली सभी अच्छाइयों को भूल जाते हैं। अतः आपसे अनुरोध है कि आप अच्छे कर्म करते जाइए लोग तो कभी भी किसी से भी संतुष्ट नहीं हो सकते हैं। भगवान से भी नहीं।