स्मृति शेष : गंगा की रक्षा को छोड़ा आश्रम, तो फिर अस्थियां ही पहुंची, गंगा को रोके जाने पर मुंडवा दिया था सिर

Uttarakhand

हिमशिखर पर्यावरण डेस्क
विनोद चमोली

विश्व प्रसिद्ध पर्यावरणविद सुंदर लाल बहुगुणा पिछले तीन दशकों से अपनी कर्मस्थली सिल्यारा आश्रम नहीं गए थे। जी हां, भले ही सुनने में यह ताज्जुब की बात लग रही हो, लेकिन सच तो यही है और ऐसा हुआ सुंदर लाल बहुगुणा के एक संकल्प के कारण। दरअसल, उन्होंने 1989 में गंगा की अविरलता के लिए टिहरी बांध का कार्य बंद होने के बाद ही आश्रम में जाने का संकल्प लिया था, जो पूरा नहीं हो पाया। अब तीस साल बाद सोमवार को आश्रम में उनकी अस्थि कलश पहुंचने से पुरानी यादें ताजा हो गई हैं।

पर्यावरणविद सुंदर लाल बहुगुणा का मां गंगा से गहरा नाता रहा है। 1980 के दशक में भागीरथी और भिलंगना नदी को कैद कर बनाए जा रहे विशालकाय टिहरी बांध को रोकने के लिए सुंदर लाल बहुगुणा जी-जान से जुट गए थे। बहुगुणा का मानना था कि बहते जल में ही जीवन है। 25 नवंबर 1989 को उन्होंने मां गंगा की अविरलता की खातिर पुरानी टिहरी स्थित आंदोलन स्थल में टिहरी बांध निर्माण कार्य रुकने के बाद ही अपनी कर्मस्थली लौटने का बड़ा संकल्प लिया। बांध के विरोध में लंबी लड़ाई चलती रही, लेकिन बाद में बांध बन ही गया। टिहरी बांध के लिए भागीरथी को रोके जाने पर उन्होंने अपना सिर भी मुंडवा लिया था। ऐसे में संकल्प से बंधे होने के कारण फिर कभी पर्यावरणविद बहुगुणा सिल्यारा आश्रम नहीं लौटे। आश्रम से जुड़े लोगों ने बहुगुणा से कई बार अनुयय-विनय किया, लेकिन उन्होंने कभी अपने संकल्प को नहीं तोड़ा।

1989 की घटना का जिक्र करते हुए उनके बेटे प्रदीप बहुगुणा बताते हैं कि उनके पिता के संकल्प के बाद आश्रम और स्थानीय लोगों को हमेशा उनकी कमी खली। कहते हैं कि कुछ समय तक मां विमला बहुगुणा ने आश्रम को संभाला, लेकिन बाद में उन्होंने भी अपने को पूरी तरह से आंदोलन में झोंक दिया। कहते हैं कि उनके पिता ने जीवन में जो भी संकल्प लिया, उसको निभाया भी। सोमवार को हिमालय बचाओ आंदोलन के समीर रतूड़ी अस्थि कलश को लेकर सिल्यारा आश्रम में पहुंचे। यहां अस्थि कलश को दर्शनार्थ रखा गया है।

इस तरह हुई सिल्यारा आश्रम की स्थापना
युवा सुंदर लाल बहुगुणा के जीवन में एक अहम मोड़ तब आया जब 1955 में गांधी की अंगे्रज शिष्या सरला बहन के कौसानी आश्रम में पढ़ी विमला नौटियाल ने उनके शादी के लिए राजनीति छोड़ने और सुदूर किसी पिछड़े गांव में बसने की शर्त रखी। जिस पर सुंदर लाल ने शर्त मान ली ओर टिहरी से 22 मील दूर पैदल चलकर सिल्यारा गांव में झोपड़ी डाल दी। 19 जून 1956 को वहीं विमला नौटियाल से शादी की। झोपड़ी में शुरू की गई पर्वतीय नवजीवन मंडल सिल्यारा आश्रम से सुंदर लाल बहुगुणा ने विभिन्न आंदोलन चलाए।

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