सुपर एक्सक्लूसिव : जंगलों की आग भी लाती है भारी बारिश, जानिए वनाग्नि और अतिवृष्टि का कनेक्शन

Uttarakhand

हिमशिखर ब्यूरो
नई टिहरी

हिमालयी क्षेत्र में जंगल धधकने के कारण मौसम पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ने की बात सामने आई है। एचएनबी केंद्रीय विवि और आईआईटी कानपुर के विशेषज्ञों ने हिमालय के विभिन्न क्षेत्रों का अध्ययन कर जंगलों में लगने वाली आग की घटना से अतिवृष्टि होने का चौंकाने वाला खुलासा किया है।

विशेषज्ञों ने जंगलों में आग भड़कने के दौरान क्लाउड कंडेनसेशन न्यूक्लियर (सीसीएनएस) कणों की मात्रा में बदलाव दर्ज किया है। शोध में पाया गया कि आग लगने पर वातावरण में सीसीएन के ज्यादा कण भारी बारिश का कारण बन रहे हैं। यह शोध जलवायु परिवर्तन कार्यक्रम प्रभाग, विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग (डीएसटी) के सहयोग से किया गया। यह शोध हाल ही में एटमाॅस्फेरिक एनवायरनमेंट जर्नल में प्रकाशित हुआ है।

उत्तराखण्ड के मध्य हिमालयी क्षेत्र में बादलों की गतिविधियों पर नजर रखने के लिए स्वामी रामतीर्थ परिसर बादशाहीथौल में 2018 में वेधशाला स्थापित की गई। आईआईटी कानपुर की ओर से वेधशाला में बादलों की निगरानी के लिए बादल संघनन नाभिक, क्लाउड ड्राप्लेट प्रोब और आटोमेटिक वेदर स्टेशन लगाया गया।

आईआईटी कानपुर के प्रो एसएन त्रिपाठी और एचएनबी केंद्रीय विवि के डाॅ आलोक सागर गौतम और उनकी टीम ने इस वेधशाला की मदद से अगस्त 2018 से 2019 के बीच मध्य हिमालय के विभिन्न क्षेत्रों का अध्ययन किया। इसमें क्लाउड कंडेनसेशन न्यूक्लियर (सीसीएनएस) और जंगल में आग लगने की घटना के बीच संबंध खोजने पर शोध किया गया।

विशेषज्ञों ने जंगल में आग लगने के दौरान बादल के छोटे कणों में बदलाव दर्ज किया। साथ ही निष्कर्ष निकाला कि जब भी जंगलों में आग लगती है तो सीसीएनएस का कंसनट्रेशन (संकेंद्रण) बढ़ जाता है। उसका आकार छोटा हो जाता है। नतीजा बारिश की जमी हुई बूंदें तेजी से नीचे आती हैं। जो कम समय में जोरदार बारिश करा सकती हैं, जिससे बादल फटने या भारी बारिश की संभावना बनती है।

खास बात यह है कि सीसीएनएस की संख्या सर्दियों, बर्फ गिरने और कोहरा पड़ने की स्थिति में अलग-अलग रहती है। बताते चलें कि उत्तराखण्ड में बादल फटने के दौरान वर्षा मापने का कोई सिस्टम नहीं है, जिससे यह कह पाना मुश्किल होता है कि यह भारी बारिश है या बादल फटने की घटना। इस शोध कार्य में स्वामी रामतीर्थ परिसर के प्रो आरसी रमोला, अभिषेक जोशी, करण सिंह, संजीव कुमार का भी सहयोग रहा है।

यह शोध गढ़वाल हिमालय के ऊंचाई वाले क्षेत्रों में पहुंचने वाले प्रदूषकों के स्रोत का पता लगाने में सहायक होगा। साथ ही, यह इस क्षेत्र में बादल निर्माण तंत्र और मौसम की चरम सीमाओं के लिए बेहतर समझ प्रदान करेगा।

क्या है क्लाउड कंडेनसेशन न्यूक्लियर
क्लाउड कंडेनसेशन न्यूक्लियर छोटे-छोटे कण होते हैं, जो आमतौर पर 0.2 माइक्राॅन या एक बटा 100 क्लाउड ड्राॅपलेट के आकार के होते हैं। इस पर जल वाष्प संघनित होता है। यह ऊंचाई पर जाकर पानी के रूप में आ जाते हैं।

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