हिमशिखर खबर ब्यूरो
देहरादून। प्रसिद्ध आध्यात्मिक चिंतक, लेखक एवं स्वामी रामतीर्थ मिशन के स्तंभ काका हरिओम नहीं रहे। उन्होंने शुक्रवार को नई दिल्ली स्थित अस्पताल में अंतिम सांसे ली। उनके महाप्रयाण की खबर से साहित्य और आध्यात्मिक जगत में शोक की लहर फैल गई।
65 वर्षीय काका हरिओम पिछले कुछ महीने से अस्वस्थ चल रहे थे। शुक्रवार दोपहर को अचानक स्वास्थ्य बिगड़ने पर परिजन उन्हें अस्पताल ले गए। उपचार के दौरान उनकी मौत हो गई।
काका हरिओम जी उन विरल साधकों में थे, जिन्हें आध्यात्मिक पत्रकारिता में नया आयाम देने के लिए जाना जाता है। उन्होंने 80 के दशक से अपनी लेखनी से लोगों को प्रभावित करना शुरू कर दिया था। काका जी बाल्यकाल में ही संतो के सानिध्य में आ गए थे। स्वामी हरिओम जी के लालन पालन में उनकी शिक्षा दीक्षा संपन्न हुई। इस दौरान उन्हें माँ आनंदमई, देवरहा बाबा सहित कई संतों-महापुरूषों का भी सानिध्य प्राप्त हुआ। काका हरिओम उन विरल साधकों में थे, जो आध्यात्मिक विषय पर घंटों व्याख्यान देने के साथ ही आध्यात्मिक पत्रकारिता में गहरी पकड़ थी।
काका जी ने कई समाचार पत्र पत्रिकाओं के साथ ही लंबे समय तक धर्मयुग पत्रिका का संपादन किया। उसके बाद कई सालों तक मनोज पब्लिकेशन के संपादक भी रहे। काका जी के कारण ही मनोज पब्लिकेशन ने धार्मिक पुस्तकों का प्रकाशन शुरू किया। पिछले कुछ सालों से वे स्वामी रामतीर्थ मिशन को ही पूरा समय दे रहे थे।
वरिष्ठ पत्रकार प्रो. गोविंद सिंह ने दुख प्रकट करते हुए कहा कि काका हरिओम की मृत्यु का दुखद समाचार सुनकर स्तब्ध हूं। वे एक सच्चे संत थे। १९८२ में उनसे पहली मुलाकात तब हुई जब वे धर्मयुग में उप संपादक थे। उनके कई लेख आध्यात्मिक विषयों पर पहले पढ़ चुका था। उनकी जो छवि मन में पहले बनी थी, वे उससे कहीं महान थे। मेरे पास मुंबई में रहने का कोई ठिकाना नहीं था। उन्होंने मुझे अपने साथ शरण दी। हम लोग दो साल साथ में रहे। उनसे बहुत कुछ सीखा। उन्होंने अनेक संघर्ष झेले। अंतरिक और बाहरी, दोनों। या कहिए कि वे आजीवन संघर्षरत रहे। उनकी अर्धांगिनी अलका/ शारदा भाभी और बच्चों को ईश्वर इस विकट घड़ी से उबरने की ताकत दे। हरि ॐ।