यूपी की संगम नगरी में महाकुंभ मेले का दिव्य और भव्य आगाज हो गया है। पौष पूर्णिमा के साथ ही 26 फरवरी तक चलने वाले महाकुंभ की की शुरुआत हो गई है। इस बार महाकुंभ में 40 करोड़ से अधिक श्रद्धालुओं के शामिल होने का अनुमान लगाया जा रहा है। महाकुंभ के पहले दिन से प्रयागराज में श्रद्धालुओं की भारी भीड़ जुट रही है। हजारों श्रद्धालु त्रिवेणी संगम में पवित्र डुबकी लगा रहे हैं। यह गंगा, यमुना और ‘रहस्यमय’ सरस्वती नदियों का पवित्र संगम है।
पंडित उदय शंकर भट्ट
आज आपका दिन मंगलमयी हो, यही मंगलकामना है। ‘हिमशिखर खबर’ हर रोज की तरह आज भी आपके लिए पंचांग प्रस्तुत कर रहा है।
आज यानी सोमवार 13 जनवरी को पौष पूर्णिमा और लोहड़ी है। इस शुभ अवसर पर बड़ी संख्या में साधक गंगा समेत पवित्र नदियों में आस्था की डुबकी लगा रहे हैं। साथ ही पूजा, जप, तप और दान-पुण्य कर रहे हैं। इसके साथ ही लोहड़ी की भी तैयारी कर रहे हैं। पौष पूर्णिमा तिथि पर गंगा स्नान करने से जन्म-जन्मांतर में किये गये पाप नष्ट हो जाते हैं। साथ ही मां गंगा का आशीर्वाद प्राप्त होता है।
मान्यता है कि इस दिन गंगा स्नान और दान-पुण्य करने से पापों का नाश होता है और मोक्ष की प्राप्ति होती है। पौष पूर्णिमा को “माघ स्नान” के आरंभ का दिन भी माना जाता है इस दिन दान, व्रत और ध्यान करने से जीवन में सुख-शांति और समृद्धि आती है।
महाकुंभ का शुभारंभ हो चुका है। पौष पूर्णिमा पर आज पहला स्नान है। सुबह 8 बजे तक 60 लाख श्रद्धालुओं ने डुबकी लगा ली है। यह आंकड़ा 1 करोड़ तक पहुंच सकता है।
12 किमी एरिया में बना स्नान घाट श्रद्धालुओं से भरा है। संगम में हर घंटे में 2 लाख लोग स्नान कर रहे हैं। आज से ही श्रद्धालु 45 दिन का कल्पवास शुरू करेंगे।
संगम पर एंट्री के सभी रास्तों में भक्तों की भीड़ है। महाकुंभ में वाहनों की एंट्री बंद कर दी गई है। इसके चलते श्रद्धालु 10-12 किलोमीटर पैदल चलकर संगम पहुंच रहे हैं।
भीषण ठंड में विदेशी भक्त भी डुबकी लगा रहे हैं। ब्राजील के आए श्रद्धालु फ्रांसिस्को ने कहा- मैं योग का अभ्यास करता हूं। मोक्ष की खोज कर रहा हूं। भारत दुनिया का आध्यात्मिक हृदय है। जय श्रीराम।
आज का विचार
.हक़ीक़त रूबरू हो तो अदाकारी नही चलती है, ठीक उसी प्रकार ईश्वर के सामने मक्कारो की मक्कारी नही चलती है
आज का भगवद् चिंतन
भक्ति का प्रसाद
भक्ति हमारे आत्मबल को सशक्त करती है इसलिए भक्तिवान जीवन धैर्यवान जीवन भी बन जाता है। भक्त इसलिए प्रसन्न नहीं रहते कि उनके जीवन में विषमताएं नहीं रहती हैं अपितु इसलिए प्रसन्न रहते हैं कि उनके जीवन में धैर्य रहता है। जिस जीवन में प्रभु की भक्ति नहीं होगी, निश्चित ही उस जीवन में धैर्य भी नहीं पनप सकता है। भक्त के जीवन में किसी भी प्रकार की विषमताओं से निपटने के लिए अपने इष्ट अपने आराध्य का नाम अथवा विश्वास का बल होता है।
भक्त के जीवन में परिश्रम तो बहुत होता है लेकिन परिणाम के प्रति कोई आग्रह नहीं होता है। वो इतना अवश्य जानता है कि मेरे हाथ में केवल कर्म है, उसका परिणाम नहीं। विपरीत से विपरीत परिस्थितियों में भी यदि कोई हमें प्रसन्नता के साथ जीना सिखाता है तो वो केवल और केवल हमारा धैर्य ही है। भक्ति के बिना जीवन में धैर्य का आना भी संभव नहीं। भक्तिमय जीवन की वाटिका में ही प्रसन्नता के पुष्प खिलते हैं।