उत्तराखंड में 16 जुलाई से शुरू होगा सावन मास, मैदानी क्षेत्रों में 14 से हुआ शुरू, यह है कारण

हिमशिखर धर्म डेस्क

Uttarakhand

पूर्णिमा से शुरू होने वाले चंद्रमास के अनुसार गुरुवार से आस्था के महासावन की शुरुआत हो चुकी है। जबकि सूर्य की संक्रांति से प्रारंभ होने वाले सौरमास सावन 16 जुलाई से शुरू हो रहा है। दोनों आधार पर पहला सोमवार 18 जुलाई को रहेगा। सौरमास पंचांग मानने वाले पर्वतीय समाज के लोगों को 15 अगस्त पांचवे सोमवार के रूप में मिलेगा।

ज्योतिषाचार्य पंडित उदय शंकर भट्ट बताते हैं कि सावन में शिवजी व देवी पार्वती की पूजा करनी चाहिए। सावन में सोमवार, प्रदोष व चतुर्दशी तिथियों पर भगवान शिव की पूजा की जाती है। उसी तरह सावन में आने वाले मंगलवार व तीज यानी तृतीया तिथि को भी देवी पार्वती की पूजा करने का विधान है। इस तिथि की स्वामी देवी गौरी हैं।

इसलिए है तिथियों में भिन्नता

उत्तराखंड, ओडिशा, बंगाल, असम, तमिलनाडु, केरल आदि में सौरमास को प्रधानता दी जाती है। सौरमास सूर्य की संक्रांति से शुरू होता है। सूर्य एक राशि में जितनी अवधि तक रहे उस अवधि को एक सौर मास कहा जाता है। चंद्रमा की कला के घटने-बढऩे के कारण 15-15 दिनों के दो पक्ष (कृष्ण व शुक्ल) को मिलाकर एक चंद्रमास कहलाता है। चंद्रमास भी गणना भी शुक्ल प्रतिपदा व कृष्ण प्रतिपदा से दो अलग-अलग तरीके से होती है। राजस्थान, पंजाब समेत कई मैदानी इलाकों में चंद्रमास को प्रधानता दी जाती है।

क्या है सौरमास

सौरमास का आरम्भ सूर्य की संक्रांति से होता है। सूर्य की एक संक्रांति से दूसरी संक्रांति का समय ही सौरमास है। (सूर्य मंडल का केंद्र जिस समय एक राशि से दूसरी राशि में प्रवेश करता है, उस समय दूसरी राशि की संक्रांति होती है। एक संक्रांति से दूसरी संक्राति के समय को सौर मास कहते हैं। 12 राशियों के हिसाब से 12 ही सौर मास होते हैं। यह मास प्रायः तीस-एकतीस दिन का होता है । कभी कभी उनतीस और बत्तीस दिन का भी होता है। एक सूर्य-संक्रांति से दूसरी सूर्य-संक्रांति तक का सारा समय जो लगभग 30 या 31 दिनो का होता है।

क्या है चन्द्र मास

चन्द्रमा की कला के घटने और वृद्धि वाले दो पक्षों का जो एक मास होता है, वही चन्द्र मास है।  यह दो प्रकार का होता है – शुक्ल प्रतिपदा से आरम्भ होकर अमावस्या को पूर्ण होने वाला ‘जमांत’ मास मुख्य चंद्रमास है ।

कृष्ण प्रतिपदा से पूर्णिमा तक पूरा होने वाला गौण चंद्रमास है ।यह तिथि की ह्र्वास वृद्धि के अनुसार 29, 28, 27 एवं 30 दिनों का भी हो जाता है ।

सावन मास तीस दिनों का होता है

यह किसी भी तिथि से प्रारंभ होकर तीसवें दिन समाप्त हो जाता है। प्रायः व्यापार और व्यवहार आदि में इसका उपयोग होता है। इसके भी सौर और चन्द्र ये दो भेद हैं। सौर सावन मास सौर मास की किसी भी तिथि को प्रारंभ होकर तीसवें दिन पूर्ण होता है। चन्द्र सावन मास, चंद्रमा की किसी भी तिथि से प्रारंभ होकर उसके तीसवें दिन समाप्त माना जाता है।

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