भगवान शिव का अति प्रिय मास सावन चल रहा है. शिव भक्त पूरे सावन में भगवान भोलेनाथ  की उपासना एवं आराधना करते हैं. सावन माह के सभी सोमवार को भक्त व्रत रखते हुए भगवान शंकर और माता पार्वती की विधि पूर्वक उपासना एवं वंदना करते है.

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शिवलिंग पर जल चढ़ाने का एक कारण तो ये बताया जाता है कि इससे वहां मौजूद नकारात्मक उर्जा नष्ट होती है. जैसा कि कहते हैं कि शिव ने विषपान किया जिससे उनका मस्तक गर्म हो गया जिसे देवताओं ने उनके सिर पर जल डाल कर शीतल किया. यहां मस्तक गर्म होने से अभिप्राय नकारात्मक भावों के आपके भीतर उत्पन्न होने से और जल चढ़ा कर शीतल करने से अर्थ है कि उन्हें मन औश्र मस्तिष्क से बहा कर बाहर कर दिया जाए और स्वंय शीतल हो जायें.

आध्यात्मिक कारण

ये भी तर्क दिया जाता है कि मस्तिष्क के केंद्र यानि इंसान के माथे के मध्य में आग्नेय चक्र होता है जो पिंगला और इडा नाड़ियों के मिलने का स्थान है. वहां से आपकी सोचने समझने की क्षमता संचालित होती है और इसे शिव का स्थान कहते हैं। आप शांत रहें इसके लिए शिव का मन शीतल रहना आवश्यक है. इसीलिए शिवलिंग पर जल चढ़ाया जाता है जो शिव को शीतलता देने का प्रतीक है.

भगवान शिव, भक्तों की उपासना से प्रसन्न होकर वे उनकी हर कामना पूर्ण होने का आशीर्वाद प्रदान करते हैं. भक्त गण शिवोपासना के साथ-साथ मंदिरों में जाकर शिवजी का जलाभिषेक (Jalabhishek)  भी करते हैं. कहा जाता है कि इससे भगवान शिव अति प्रसन्न होकर भक्तों के सारे कष्ट दूर करते हैं. इनकी सभी मनोकामना पूरी करते हैं. सभी देवताओं में केवल शिवजी का ही जलाभिषेक किया जाता है.

सावन मास शिवजी को है अति प्रिय

धार्मिक मान्यता है कि शिवजी का जलाभिषेक (Jalabhishek) या दुग्धाभिषेक करने से भगवान शिव उन्हें सुख समृद्धि और शांति प्रदान करते हैं. वैसे तो भक्त किसी भी दिन भगवान शिव का जलाभिषेक कर सकते हैं परंतु सावन सोमवार के दिन जलाभिषेक करने से कई गुना अधिक पुण्य फल की प्राप्ति होती है.  क्योंकि सावन का महीना भगवान शिव को अति प्रिय है. धार्मिक मान्यता है कि भगवान शिव विवाह के बाद जब पहली बार ससुराल गए तो वह मास सावन का ही था. मान्यता है कि सावन माह में ही शिव और पार्वती का मिलन हुआ था. यही नहीं सावन मास में भगवान शिव और माता पार्वती पृथ्वी लोक पर निवास करते हैं. इन सभी कारणों से सावन मास शिवजी को अति प्रिय है.

जलाभिषेक का वैज्ञानिक कारण 

ज्योत्रिलिंगो को शक्ति व ऊर्जा के स्त्रोत माना जाता है. वैज्ञानिक स्रोतों से पता चला है कि सबसे अधिक रेडिएशन ज्योतिर्लिंग पर होता है. यह ज्योतिर्लिंग एक न्यूक्लिअर रिएक्टर्स की तरह रेडियो एक्टिव एनर्जी से भरा होता है. इस भयंकर ऊर्जा को शांत करने के लिए शिवलिंगों पर जल अर्पित किया जाता है यानी जलाभिषेक किया जाता है.

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