कौए का रहस्य और कौवे से जुड़े शकुन – अपशकुन

Uttarakhand

हर्षमणि बहुगुणा

प्राचीन समय के ऋषियों मुनियों ने अपने शोध में बताया था कि प्रत्येक जानवर के विचित्र व्यवहार एवं हरकतों का कुछ न कुछ प्रभाव अवश्य होता है। पशु-पक्षियों के संबंध में अनेकों बातें हमारे पुराणों एवं ग्रंथों में भी विस्तार से बतलाई गई हैं।

हमारे सनातन धर्म में माता के रूप में पूजनीय गाय के संबंध में तो बहुत सी बातों की चर्चा कल की थी और अधिकांश आप लोग जानते भी है। आज हम कौए के संबंध में पुराणों से ली‌ गई कुछ ऐसी बातों के बारे में जानेंगे जो शायद हमनें पहले कभी भी किसी से नहीं सुनी होंगी। जानवरों से जुड़े रहस्यों के संबंध में विशेष कर कौवे के विषयक पुराणों में बहुत ही विचित्र बातें बतलाई गई जो किसी को भी आश्चर्य में डाल देंगी।

कौए का रहस्य

कौए के संबंध में पुराणों बहुत ही विचित्र बातें बतलाई गई हैं मान्यता है कि कौआ अतिथि आगमन का सूचक एवं पितरों का आश्रय स्थल माना जाता है।

“कौवों के सन्दर्भ में पौराणिक कथा इस प्रकार है कि — इन्द्र के पुत्र जयन्त ने ही सबसे पहले कौवे का रूप धारण किया था। जब भगवान राम ने अवतार लिया था तब जयन्त ने कौवे का रूप धारण कर माता सीता के पैर में चोंच मारा था, तब भगवान राम ने क्रोध से एक तिनके का सहारा लेकर वाण की संकल्पना कर जयन्त की आंख फोड़ दी थी और जब उसने अपने कुकृत्य की माफी मांग ली, तब प्रभू राम ने उसे यह वरदान दिया कि तुम्हें अर्पित किया भोजन पितरों को मिलेगा, तभी से श्राद्ध में कौवों को भोजन कराने की परम्परा चली आ रही है।

यही कारण है कि कौवों को न तो मारा जाता है न सताया जाता है, यदि कोई व्यक्ति ऐसा करता है तो उसे पितरों का श्राप व अन्य देवताओं के क्रोध का भाजन बनना पड़ता है। अतः पितृपक्ष में कौआ, कुत्ता और गाय तथा चींटी व देवादि बलि अवश्य करनी चाहिए।

हमारे धर्म ग्रन्थ की एक कथा के अनुसार इस पक्षी ने देवताओं और राक्षसों के द्वारा समुद्र मंथन से प्राप्त अमृत का रस चख लिया था। यही कारण है कि कौए की कभी भी स्वाभाविक मृत्यु नहीं होती। यह पक्षी कभी किसी बीमारी अथवा अपने वृद्ध अवस्था के कारण मृत्यु को प्राप्त नहीं होता। इसकी मृत्यु आकस्मिक रूप से होती है।

यह बहुत ही रोचक है की जिस दिन कौए की मृत्यु होती है उस दिन उसका साथी भोजन ग्रहण नहीं करता। ये आपने कभी ख्याल किया हो तो यह बात गौर करने वाली है कि कौआ कभी भी अकेले में भोजन ग्रहण नहीं करता यह पक्षी किसी साथी के साथ मिलकर ही भोजन करता है। कौवे की लम्बाई करीब 20 इंच होती है, यह गहरे काले रंग का पक्षी है। जिनमे नर और मादा दोनों एक समान ही दिखाई देते है। यह बगैर थके मीलों उड़ सकता है। कौए के बारे में पुराण में बतलाया गया है कि किसी भी भविष्य में होने वाली घटनाओं का आभास पूर्व ही हो जाता है।

पितरों का आश्रय स्थल

श्राद्ध पक्ष में कौए का महत्व बहुत ही अधिक माना गया है। इस पक्ष में यदि कोई भी व्यक्ति कौवों को भोजन कराता है तो यह भोजन कौवे के माध्यम से उसके पितर ग्रहण करते है। शास्त्रों में यह बात स्पष्ट बतलाई गई है की कोई भी क्षमतावान आत्मा कौए के शरीर में विचरण कर सकती है।

आश्विन महीने के पितृपक्ष के 16 दिन कौआ हर घर की छत का मेहमान बनता है। यह 16 दिन श्राद्ध पक्ष के दिन माने जाते हैं। कौए एवं पीपल को पितृ प्रतीक माना जाता है। इन दिनों कौए को खाना खिलाकर एवं पीपल को पानी पिलाकर पितरों को तृप्त किया जाता है।

कौवे से जुड़े शकुन और अपशकुन

1. यदि आप शनिदेव को प्रसन्न करना चाहते हो कौवे को भोजन करना चाहिए।
2. यदि आपके मुंडेर पर कोई कौआ बोले तो मेहमान अवश्य आते है।
3. यदि कौआ घर की उत्तर दिशा से बोले तो समझे जल्द ही आप पर लक्ष्मी की कृपा होने वाली है।
4. पश्चिम दिशा से बोले तो घर में मेहमान आते है।
5. पूर्व में बोले तो शुभ समाचार आता है।
6. दक्षिण दिशा से बोले तो बुरा समाचार आता है।
7. कौवे को भोजन कराने से अनिष्ट व शत्रु का नाश होता है।

One thought on “कौए का रहस्य और कौवे से जुड़े शकुन – अपशकुन

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *