सुप्रभातम् : ‘शिव’ थोड़ी सी भक्ति से हो जाते हैं प्रसन्न

भगवान शिव को जहां एक तरफ भोलेनाथ कहा जाता है तो वहीं दूसरी तरफ उन्हें सृष्टि का विनाशक भी कहा जाता है। जो श्मशान में बसते हैं और जिनके शरीर पर भस्म लिपटी रहती है, जिनके साथ भूत-प्रेत रहते हैं, ऐसे देव को भोलेनाथ कहा जाता है?


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हिमशिखर धर्म डेस्क

भगवान शिव के वैसे तो कई नाम हैं लेकिन उनके भक्त उन्हें भोलेनाथ ही पुकारना पसंद करते हैं। भोलेनाथ ऐसे देव जिन्हें प्रसन्न करना बहुत ही आसान है। इस शब्द का दार्शनिक मतलब है- भोले यानी बच्चे जैसी मासूमियत, नाथ मतलब भगवान, मालिक।

भगवान शिव को जहां एक तरफ भोलेनाथ कहा जाता है तो वहीं दूसरी तरफ उन्हें सृष्टि का विनाशक भी कहा जाता है। जो श्मशान में बसते हैं और जिनके शरीर पर भस्म लिपटी रहती है, जिनके साथ भूत-प्रेत रहते हैं, ऐसे देव को भोलेनाथ कहा जाता है? लेकिन इन सबके बावजूद शिव भोले ही हैं। उनके अंदर ना अहं है ना ही चालाकी। उन्हें अपनी शक्ति पर बिल्कुल भी अभिमान नहीं है इसीलिए वह भोलेनाथ हैं।

महादेव को पंचदेवों का प्रधान कहा गया है। ये अनादि परमेश्वर हैं और आगम-निगम आदि शास्त्रों के अधिष्ठाता हैं। शिव ही संसार में जीव चेतना का संचार करते हैं। इस आधार पर दैवीय शक्ति के जीव तत्व को चेतन करने वाले स्वयं भगवान शिव, शक्ति के साथ इस समस्त जगत मंडल व ब्रह्मांड में अपनी विशेष भूमिका का निर्वहन करते हैं।

शिव तामसी गुणों के अधिष्ठाता हैं। तामसी गुण यानी क्रोध, मृत्यु, अंधकार आदि। तामसी भोजन यानी कड़वा, विषैला आदि। जिस अपवित्रता से, जिस दोष के कारण किसी वस्तु से घृणा की जाती है, शिव उसकी ओर बिना ध्यान दिए उसे धारण कर उसे भी शुभ बना देते हैं।

समुद्र मंथन के समय निकले विष को धारण कर वे नीलकंठ कहलाए। मंथन से निकले अन्य रत्नों की ओर उन्होंने देखा तक नहीं। जिससे जीव की मृत्यु होती है, वे उसे भी जय कर लेते हैं। तभी तो उनका नाम मृत्य़ु़ंजय है। क्रोध उनमें है पर वे केवल जगत कल्याण के लिए उसका प्रयोग करते हैं, जैसे कामदेव का संहार। उन्हें घोर तपस्या या सुदीर्घ भक्ति नहीं चाहिए। थोड़ी सी भक्ति से ही वे प्रसन्न हो जाते हैं।

वे शव की राख अपने ऊपर लगाते हैं। वे जीव को जीवन की अनित्यता की शिक्षा देते हैं। उनके जीवन में वैराग्य है। त्याग है। इसी कारण उनकी पूजा में ऐश्वर्य की वस्तुओं का प्रयोग नहीं होता। हर उस चीज से उनकी पूजा होती है जिन्हें आमतौर पर कोई पसंद नहीं करता।

वे अपनी ही बरात में बैल पर चढ़कर, बाघंबर ओढ़ कर चल दिए क्योंकि उन्हें किसी तरह के भौतिक ऐश्वर्य से मोह नहीं है। वे आशुतोष हैं। जल्दी प्रसन्न हो जाते हैं। भोलेनाथ हैं पर इसका यह मतलब नहीं कि वे बुद्धि का प्रयोग नहीं करते। बुद्धि की उत्पत्ति का स्थान भगवान शिव ही हैं। शिव दरिद्र की तरह रहते हैं क्योंकि वे सूचित करते हैं कि वैराग्य सुख से बढ़कर कोई सुख नहीं। सत्व, रज और तम, तीनों गुणों की महत्ता आवश्यक है। उत्पत्ति के बाद जीव अपने और दूसरों के पालन-पोषण के लिए काम करता हुआ इतना थक जाता है कि सब कुछ छोड़कर निंद्रा यानी तम में लीन होना चाहता है।

व्याकुल व्यक्ति को विश्राम की आवश्यकता होती है, ऐसे ही पाप बढ़ जाने पर ईश्वर विश्राम देने के लिए विश्व का संहार करते हैं। तम ही मृत्यु है। तम ही काल है इसीलिए वे महामृत्युंजय हैं। महाकालेश्वर हैं। वे विष और शेषनाग को गले में धारण कर लेते हैं। पर नाश केवल शरीर का होता है।

जीवात्मा तो परमात्मा में मिल जाती है। जीवात्मा को मुक्त करती श्रीगंगा भी उन्होंने अपनी जटा में धारण कर ली है। वे संहार करते हैं तो मुक्ति भी देते हैं। बिना विश्राम के, बिना संहार के न उत्पत्ति हो सकती है और न ही पालन की क्रिया।

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