स्वामी ईश्वरानंद सरस्वति
आज गोपाष्टमी के उपलक्ष्य में मेरे सामने घटी दो सच्ची घटनाएँ प्रस्तुत कर रहा हूँ। यह दोनों घटनाएँ 10 साल पहले की हैं।
एक व्यक्ति ने हमारे हिमालय स्थित आश्रम में एक गाय को लाकर दान कर दिया। पता चला कि उस व्यक्ति की पत्नी क्रूर स्वभाव की थी और इस गाय के गर्भ धारण न करने से उसको बहुत पीड़ा पहुंचाती थी। जिस पर गाय की उस पीड़ा को वह आदमी सहन नहीं कर पाया और करुणा के कारण गाय को हमारे आश्रम में दान कर दिया। आश्रम में स्थित ब्रह्मचारी और भक्तगण उस गाय की सेवा करने लगे और कालान्तर में उस गाय ने एक बछड़ी को जन्म दिया। उस गाय का रंग काला होने के कारण उसे श्यामली नाम दिया गया।
बहुत समय बीत जाने के बाद वह व्यक्ति आश्रम में आया और अपनी श्यामली गाय को आदर पूर्वक प्रणाम करते हुए कृतज्ञता प्रकट की। उस व्यक्ति ने अपनी आपबीती सुनाते हुए बताया कि पिछले 1-2 साल से उसको कैन्सर की बीमारी हो गई और सब डॉक्टर्स ने भी अपना जवाब दे दिया था। वह अंतिम समय की प्रतीक्षा में चारपाई में लेट गया था।
एक दिन रोज की तरह उसे नींद आ गई और उसने स्वप्न में देखा की श्यामली गाय आकर उसको अपने ऊपर बिठाकर बहुत दूर-दूर तक बहुत देर घुमाती रही। स्वप्न टूटने के बाद उसने महसूस किया की उसकी तबियत में चमत्कारी सुधार होने लगा है। धीरे-धीरे कुछ ही दिनों में वह स्वस्थ और रोग मुक्त हो गया। जिस पर सब चकित हो गये।
दूसरी घटना
श्यामली की एक बछड़ी हुई जिसका नाम था शुभंकरी। श्री गुरुदेव कहते थे की वह स्वयं मां भगवती का स्वरूप है। खास बात यह है कि वह प्रसव ऐसे समय करती थी, जब उसका दूध गुरु पूर्णिमा या नवरात्री में इकट्टा हुए भक्तों को और हवन यज्ञ में दोष रहित और पर्याप्त मात्रा में मिल सके। एक बार शुभंकरी प्रसव के समय मिल्क ज्वर होने के कारण खड़ी नहीं हो पा रही थी।
बहुत प्रयत्न करने पर भी वह खड़ी उठी नहीं। उसकी हालत देखकर सेवक ने निराश और हताश होकर आत्महत्या करने का मन बना लिया। फिर क्या था सेवक ने चुुपके से इन्सुलिन की एक पूरा शीशी इंजेक्शन लगा ली। उतनी मात्रा से 5 हाथी को मारा जा सकता है। उस सेवक ने अपनी करतूत श्री गुरुदेव को बताई। जिस पर श्री गुरुदेव बोले, शुभंकरी भगवती है, वही तुम्हारी रक्षा करेगी। उसी के पास बैठे रहे।
यह बात सुन कर आश्रम में स्थित वानप्रस्थ डॉ राव ने सेवक का शुगर जांच की। आश्चर्य की बात यह थी की शुगर 10-20 की जगह 220mg % दिखा रही और सेवक की हालत भी सही थी। तब भी अविश्वासी डॉ राव रातों रात सेवक को मुस्सोरी लंदोवर हॉस्पिटल ले गए। जहां शुगर test करके वापस भेज दिया। इस घटना के बाद डॉ राव को अपने अविश्वास के ऊपर ही शर्म आई थी। कुछ दिनों में शुभंकरी भी स्वस्थ हो गई थी।