सुप्रभातम्: सीता माता धरती की गोद में क्यों समा गई थीं?

हिमशिखर खबर ब्यूरो

Uttarakhand

वैशाख मास के शुक्ल पक्ष की नवमी को सीता नवमी कहते हैं। धार्मिक ग्रंथों के अनुसार इसी दिन माता सीता का प्राकट्य हुआ था। पौराणिक शास्त्रों के अनुसार वैशाख मास के शुक्ल पक्ष की नवमी को पुष्य नक्षत्र के मध्याह्न काल में जब महाराजा जनक हल से भूमि जोत रहे थे, उसी समय पृथ्वी से एक बालिका का प्राकट्य हुआ।

जोती हुई भूमि तथा हल के नोक को भी ‘सीता’ कहा जाता है, इसलिए बालिका का नाम ‘सीता’ रखा गया था। अत: इस पर्व को ‘जानकी नवमी’ भी कहते हैं। मान्यता है कि जो व्यक्ति इस दिन व्रत रखता है एवं राम-सीता का विधि-विधान से पूजन करता है, उसे 16 महान दानों का फल, पृथ्वी दान का फल तथा समस्त तीर्थों के दर्शन का फल मिल जाता है। इस दिन माता सीता के मंगलमय नाम ‘श्री सीतायै नमः’ और ‘श्रीसीता-रामाय नमः’ का जप करना लाभदायी रहता है। भगवान राम को विष्णुजी का अवतार माना जाता है। इसी तरह मां सीता को लक्ष्मी का अवतार माना जाता है।

राजा जनक ने सीता को पुत्री माना था, इस कारण देवी का एक नाम जानकी भी प्रसिद्ध हुआ। जनक का एक नाम विदेह था, इस वजह से सीता को वैदेही भी कहते हैं।

सीता माता-पिता और सास-ससुर का करती हैं एक समान सम्मान

सीता जी अपने माता-पिता की तरह ही अपने सास-ससुर का भी एक जैसा ही सम्मान करती थीं। वनवास की शुरुआत में भरत के साथ कौशल्या, कैकयी और सुमित्रा के साथ ही अयोध्या के लोग भी श्रीराम के पास वन में पहुंचे थे। इनके साथ देवी सीता के माता-पिता भी आए थे। उस समय सीता ने माता-पिता से मिलने से पहले अपनी तीनों सासों से आज्ञा ली थी और इसके बाद वह अपने माता-पिता से मिलने पहुंची थीं।

जीवन साथी के लिए छोड़ दिए थे शाही सुख

श्रीराम की सेवा में कई लोग रहते थे, लेकिन विवाह के बाद देवी सीता ने श्रीराम की सेवा की जिम्मेदारियां खुद ले ली थीं। सीता श्रीराम की सेवा में लगी रहती थीं। राम वनवास जाने को तैयार हुए तो जानकी जी भी पति के साथ वन जाने के लिए तैयार हो गईं। पति के साथ रहने के लिए सीता ने शाही सुख छोड़ दिए थे।

हनुमान जी को दिया था अजर-अमर होने का वरदान

अशोक वाटिका में हनुमान जी और सीता जी की पहली बार मुलाकात हुई थी। उस समय हनुमान जी ने सीता जी को श्रीराम नाम अंकित मुद्रिका यानी अंगूठी दी थी। हनुमान जी ने सीता की चिंताएं दूर कर दी थीं, इस कारण देवी ने उन्हें अजर-अमर होने का वर दिया था।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *