हिमशिखर ब्यूरो
गंगोत्री/ बदरीनाथ/टिहरी। अप्रैल माह में चारधाम की पहाडिय़ां बर्फ से लकदक हो गई। बदरीनाथ, केदारनाथ, गंगोत्री, यमुनोत्री चारों धामो में बर्फ की चादर बिछ गई हैं। लगातार हो रही बर्फबारी से उत्तराखंड की वादियों में जनवरी माह की जैसी ठंड लौट आई है। अप्रैल के माह में चिलचिलाती गर्मी से लोग परेशान रहते थे, उस दौर में लोग ठंड के कारण गर्म कपड़े पहनने को मजबूर हैं। जी हां! मौसम विभाग के अनुसार बेमौसमी बारिश और ओलावृष्टि के कारण पारा लुढ़कने से 1 डिग्री तक पहुंच गया था। वहीं ओलावृष्टि से टिहरी जिले के कई गांवों में सेब, आडू, पुलम सहित कई फलदार फलों को नुकसान पहुंचा है।
पिछले तीन दिनों से लगातार बारिश से पारा लुढ़कने से ठंडक लौट आई है। वीरचंद्र सिंह गढ़वाली औद्यानिकी एवं वानिकी विवि रानीचौरी परिसर के कृषि मौसम विभाग के अनुसार 19 अप्रैल को अधिकतम तापमान 24 डिग्री और न्यूनतम 7 डिग्री था। इसके बाद 20 अप्रैल को अधिकतम तापमान 19.6 डिग्री और न्यूनतम 8.2 डिग्री था। इसके बाद पारा लुढ़ककर 21 अप्रैल को अधिकतम 18.6 डिग्री और न्यूनतम 5.9 डिग्री पहुंच गया। जबकि 22 अप्रैल का अधिकतम 17.4 और न्यूनतम पारा जबर्दस्त लुढ़ककर 1.0 डिग्री पहुंच गया।
शुक्रवार को 23 अप्रैल को अधिकतम तापमान 8.1 और न्यूनतम 3.3 दर्ज किया गया। मौसम विभाग के अनुसार अभी तक कुल 71.4 मिमी बारिश हुई है। बारिश के साथ ही ओलावृष्टि होने से क्षेत्र में फलदार फलों को नुकसान हुआ है। रानीचौरी कृषि मौसम विभाग के तकनीकी अधिकारी प्रकाश नेगी ने बताया कि ओलावृष्टि के कारण तापमान में भारी गिरावट आई है। बताया कि इस समय फलदार वृक्षों में फूल से फल बनने की प्रक्रिया चल रही थी। ऐसे में ओला गिरने से कई क्षेत्रों में सेब, आडू, पुलम, खुबानी के वृक्षों के फूल गिरने की सूचना मिली है।
ओलावृष्टि ने तोड़ी किसानों की कमर
अप्रैल माह की बेमौसमी बारिश के साथ ही ओलावृष्टि ने किसानों की कमर तोड़ दी है। चंबा के निकट मौण गांव के शिव सिंह तडिय़ाल ने बताया कि ओला गिरने से पुलम, आडू को नुकसान हुआ है। वहीं जड़धार गांव, नागणी, स्यूल, पलास सहित कई गांवों के काश्तकारों की आजीविका को ओलावृष्टि ने तबाह कर दिया है। रवि गुसाईं, किरण गुसाईं, कुशाल सिंह जड़धारी ने बताया कि ओलावृष्टि ने नगदी फसलों को बर्बाद कर दिया है। वहीं सेब, खुबानी सहित फलदार फलों को भी नुकसान पहुंचा है।
बारिश से जलस्रोतों को मिला नया जीवन
इस साल सर्दी के मौसम में कम बारिश और बर्फबारी हुई थी। जिस कारण पहाड़ के जंगलों में अधिक आग लगने के साथ ही प्राकृतिक पेयजल स्रोत रिचार्ज नहीं हो पाए थे। जिस कारण गर्मी बढ़ते ही प्राकृतिक जल स्रोतों और नदियों का पानी कम होने लगा था। ऐसे में इस समय की बारिश से प्राकृतिक पेयजल स्रोतों को नया जीवन मिला है। इसके साथ ही मिट्टी में भरपूर नमी होने के कारण आने वाले कुछ दिनों तक आग की घटनाओं में कमी होना स्वभाविक है।
वन विभाग ने ली राहत की सांस
देवभूमि उत्तराखंड के अधिकांश जिलों में हो रही बारिश से वन विभाग ने भी राहत की सांस ली है। बारिश से वनों में लगी आग बुझ चुकी है। मार्च और अप्रैल द्वितीय सप्ताह तक उत्तराखंड के जंगल आग से धधक रहे थे। आग बुझाने के लिए वन विभाग को सेना और एनडीआरएफ की मदद भी लेनी पड़ी। जंगलों में लगी आग शांत होने के बाद उत्तराखंड की वादियां फिर से खुशनुमा हो गई है। जंगलों की जो पहाडिय़ा आग लगने से एकदम काली पड़ गई थीए बारिश के बाद उन क्षेत्रो में फिर से हरियाली लौट आई है। वन विभाग के लिए यह बारिश किसी संजीवनी से कम साबित नहीं हुई।