जयंती पर विशेष : ‘हिमालय के रक्षक’ सुंदर लाल बहुगुणा ने गोमुख में ग्लेशियर पिघलते देख चावलों का कर दिया था त्याग

हिमशिखर खबर पर्यावरण डेस्क

Uttarakhand

हिमालय के ग्लेशियरों की सेहत जानने के लिए प्रख्यात पर्यावरणविद सुंदर लाल बहुगुणा 1978 में गोमुख की यात्रा पर गए थे। इस दौरान गोमुख में ग्लेशियरों को पीछे हटते देखा, तो हैरान हो गए। फिर क्या था, उन्होंने तत्काल भागीरथी में गोता लगाकर हिमालय और जल संरक्षण का संकल्प ले लिया। इतना ही नहीं, भविष्य में जल संकट के खतरों को भांपते हुए चावलों का भी त्याग कर दिया। तब से लेकर बहुगुणा ने जीवन में कभी भोजन में चावलों को नहीं लिया।

सुंदर लाल बहुगुणा 1978 में गोमुख की यात्रा पर निकले। जब उन्होंने गोमुख से नीचे की ओर फैलते हुए रेगिस्तान को पहली बार देखा तो भागीरथी में गोता लगाने के बाद तत्काल हिमालय और जल संरक्षण का संकल्प लिया। उनका कहना था कि प्रकृति से छेड़छाड़ के कारण ग्लेशियर पीछे हटते जा रहे हैं। जिस कारण भविष्य में जल संकट को देखते हुए उन्होंने अपने भोजन में चावलों का त्याग कर दिया था। दरअसल, चावल की खेती में पानी की ज्यादा जरूरत होती है। उनका मानना था कि पानी को बचाने के लिए खान-पान की जीवन शैली में बदलाव करना ही होगा। इसकी शुरूआत सुंदर लाल बहुगुणा ने अपने भोजन से चावलों के त्याग से की थी।

उनका मानना था कि अगर जल ही जीवन है तो उस जीवन को बचाने के लिए हम क्या कर रहे हैं? मनुष्य के सामने आ रहे संकटों के लिए वह स्वयं ही जिम्मेदार है और इसका समाधान भी मनुष्य ही कर सकता है। जल के बिना सब कुछ सूना-सूना हो जाएगा। तो हमें जल के महत्व को देखते हुए उसके संरक्षण के लिए समय पर कदम उठाना होगा। बहुगुणा इस बात पर हमेशा जोर देते थे कि जल संकट को लेकर हम चाहें कितने जुमले बोलें, लेकिन सच्चाई यह है कि हम इसके इस्तेमाल को लेकर कतई संवेदनशील नहीं हैं। आज के दौर में देश में बढ़ते जल संकट के बीच सुंदर लाल बहुगुणा का चार दशक पुराना गणित आज सामने आ खड़ा दिखाई देता है। कई बड़े संगठन तो यहां तक कह रहे है कि तीसरा विश्व युद्ध पानी के लिए ही लड़ा जा सकता है।

Uttarakhand

उपदेश देने से पहले खुद पर करते थे अमल

Uttarakhand

पर्यावरणविद् सुंदर लाल बहुगुणा की खासियत यह रही कि दूसरों को उपदेश देने से पूर्व उस बात को अपने जीवन में अमल करते थे। इसका सबसे बड़ा उदाहरण यही था कि जल संरक्षण का ज्ञान बांटने से पहले ज्यादा पानी से पैदा होने वाले चावल को अपने भोजन से अलग कर दिया। महापुरुषों ने भी कहा है कि समाज में परिवर्तन लाने की शुरूआत पहले स्वयं से ही करनी चाहिए।

Uttarakhand

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *