हिम शिखर ब्यूरो।
सनातन परंपरा से संबंधित शास्त्रों में वर्णन आता है कि दुनिया में सात ऐसे चिरंजीवी हैं, जो आज भी मौजूद हैं। जिनमें संकटमोचन कहलाने वाले महावीर हनुमान जी भी शामिल हैं।मान्यता है कि श्री राम और माता सीता की सेवा से मिले वरदान के बाद श्री हनुमान जी अमर हो गए। हनुमान जी एक ऐसे देवता हैं जो हर युग में मौजूद रहे हैं, वहीं कलयुग में तो इनकी पूजा सबसे ज्यादा कल्याणकारी मानी गई है।
श्रीहनुमानजी सनातन, चिरंजीवी और परात्पर हैं। वे श्रीराम की कल्याणमयी कथा सुनने के अप्रतिम रसिक हैं। जहां-जहां उनकी (श्रीराम की) कथा होती है, वहां-वहां वे अदृश्यरूप में अथवा छद्म वेष में विद्यमान रहकर उसका रसास्वादन करते हैं। उनके हृदय में भगवान श्रीराम नित्य रमणशील हैं। श्रीहनुमान जी न तो किसी धाम अथवा लोक के स्वतंत्र अधिपति हैं, न उनके भगवद्भक्तिमय आप्तकाम जीवन के लिए श्रीराम की कथा के श्रवण को छोड़कर किसी विशिष्ट धाम में निवास की अपेक्षा अथवा आवश्यकता ही है। सामान्य तौर पर माना जाता है कि पृथ्वी पर श्री हनुमान जी उन सभी जगह पर मौजूद रहते हैं, जहां पर भगवान श्री राम का भजन, कीर्तन या पूजन चल रहा होता है। वहीं मान्यता यह भी है कि वह किम्पुरुषवर्ष और साकेत में निवास करते हैं।
यद्यपि बजरंगबली किम्पुरुष में निवास कर भगवान श्रीराम की नित्य उपासना करते हैं, उनके अर्चना-विग्रह पूजा-स्तुति करते हैं, तथापि वह उनका धाम नहीं है। वह तो उनके सेव्य आराध्यदेव की उपस्थिति से गौरवान्वित तथा कृतार्थ होते हैं। वे वहां मंत्र जपते हुए श्रीराम की स्तुति करते हैं तथा कहते हैं-ओउम् कारस्वरूप, पवित्रकीर्ति, सत्पुरुष के लक्षण, शील और आचरण से युक्त, संयतचित्त, लोकाराधनतत्पर, साधुत की परीक्षा के लिए कसौटी के समान और अत्यंत ब्राह्मणभक्त महापुरुष महाराज श्रीराम को हमारा बार-बार प्रणाम है।
महाराजा रघुराज सिंह ने अपने ‘रामरसिकावली’ ग्रंथ में श्रीहनुमान जी के किम्पुरुष में निवास का बड़ा ही सुंदर वर्णन किया है। उनके अनुसार ‘वे बड़े तेजस्वी हैं। उनके समान श्रेष्ठ श्रीरामभक्त कोई दूसरा नहीं है। कित्पुरुषवर्ष में जहां के ठाकुर कोसलेन्द्र भगवान श्रीराम हैं, हनुमान जी गंधवों के साथ उनका अनुरागपूूर्ण चरण-वन्दन और पूजन करते हुए सदा निवास करते हैं। वहां तुम्बुरु आदि गन्धर्व समाजसहित आकर मधुर-मधुर बाजे बजाते हुए और रामायण का गान करते हैं। पवनन्दन उन्हें सुनते हैं और उनके नेत्रों से अश्रु झरते रहते हैं। वे श्रीरामजी के चरणों के ध्यान में तल्लीन हो जाते हैं, इसी तरह जहां कहीं भी रघुपति कथा होती है, वहां वे हाथ जोड़कर विनम्रता से उसे सुनते हैं।
किम्पुरुषवर्ष हेमकूट से दक्षिण स्थित कहा गया है। हेमकूट किन्नरों का निवास स्थल बताया जाता है। हेमकूट पर्वत तपस्या करने का स्थान है, जहां शीघ्र सिद्धि मिल जाती है। गर्ग संहिता के विश्वजित् खण्ड में हनुमानजी के किम्पुरुषवर्ष निवास और तपोमय जीवन पर प्रकाश डाला गया है। उसमे उल्लेख है कि ‘‘पूर्वकाल में देवताओं और असुरों ने मिलकर क्षीर-सागर का मंथन किया। उससे चैदह रत्न निकले, जिनमें अमृतपूर्ण मनोहर कलश भी था।
उस कलश को साक्षात् कमल नयन श्रीहरि ने दोनों नेत्रों से देखा। उनके नेत्रों से हर्ष के आंसू की एक बूंद उस कलश में गिर पड़ी, उससे एक वृक्ष उत्पन्न हुआ, जिसे ‘तुलसी’ कहते है। भगवान विष्णु ने उस वृक्ष का नाम ‘रंगवल्ली’ रखा। उन्होंन किम्पुरुषवर्ष के हेमकूट पर्वत की उपत्यका में भूमि पर उस रंगवल्ली की स्थापना की। वह वृक्ष वहां सदा विराजमान है। उस वृक्ष के नाम पर रंगवल्लीपुर नगर स्थित है, जहां पर प्रतिदिन श्रीरामपूजक महात्मा हनुमान जी संगीत-कुशील आष्र्टिषेण के साथ दर्शन के लिए आया करते हैं।
महात्मा सनातन गोस्वामी अपने ‘बृहद्भागवतामृत’ ग्रंथ में श्रीप्रह्लाद की प्रेरणा से श्रीराम की उपासना में तत्पर हनुमान जी के दर्शन के लिए दवर्षि नारद के किम्पुरुषवर्ष में जाने का उल्लेख किया है। प्रह्लाद जी ने नारद जी से कहा कि ‘यदि आप भगवान के कृपापात्र के दर्शन करना चाहते हैं तो किम्पुरुषवर्ष में जाकर हनुमान जी का दर्शन कीजिए। मैंने हनुमानजी की जो महिमा वर्णित की है, उससे भी अधिक आप स्वयं जानते हैं।’
हिमालय पर तपस्या के लिए हनुमान जी के गमन का उल्लेख अध्यात्मरामायण में मिलता है। जिससे किम्पुरुषवर्ष में जाकर निवास करने का प्रसंग स्पष्ट हो जाता है। हनुमान जी किम्पुरुषवर्ष में निवास कर हिमगिरि पर श्रीराम के कीर्तिस्तंभ के रूप में विराजमान होकर उनके भजन-पूजन में लगे रहते हैं।