‘वाल्मीकीय रामायण’ के प्रणेता महर्षि वाल्मीकि को ‘आदिकवि’ माना जाता है और इसीलिए यह महाकाव्य ‘आदिकाव्य’ माना गया है। रामायण केवल एक धार्मिक ग्रंथ ही नहीं है बल्कि यह मनुष्य को जीवन की सीख देता है। रामायण में जहां भगवान राम को पुरूषोत्तम कहा गया है तो वही मां सीता की पवित्रता दर्शायी गई है। लक्ष्मण और भरत दोनों ही का अपने भाई के प्रति अथाह प्रेम दिखाया गया है। रामायण के हर एक चरित्र से कुछ न कुछ शिक्षा अवश्य प्राप्त होती है। यदि व्यक्ति रामायण को पूजने के साथ उससे मिलने वाली सीख को अपने जीवन में अनुसरण करे तो वह एक सफल जीवन व्यतीत कर सकता है।
हिमशिखर धर्म डेस्क
श्रीरामचन्द्रजी समस्त संसार को शरण देने वाले हैं। श्रीराम के बिना दूसरी कौन-सी गति है। श्रीराम कलियुग के समस्त दोषों को नष्ट कर देते हैं; अतः श्रीरामचन्द्रजी को नमस्कार करना चाहिये। श्रीराम से कालरूपी भयंकर सर्प भी डरता है। जगत् का सब कुछ भगवान् श्रीराम के वश में है। श्रीराम में सभी की अखण्ड भक्ति बनी रहे।
ऋषियों ने कहा–‘भगवन्! आप विद्वान् हैं, ज्ञानी हैं। हमने जो कुछ पूछा था, वह सब आपने हमें भलीभाँति बताया है। संसार-बन्धन में बँधे हुए जीवों के दुःख बहुत हैं। इस संसार-बन्धन का उच्छेद करने वाला कौन है ? आपने कहा है कि कलियुग में वेदोक्त मार्ग नष्ट हो जायँगे। अधर्म परायण पुरुषों को प्राप्त होने वाली यातनाओं का भी आपने वर्णन किया है। घोर कलियुग आने पर जब वेदोक्त मार्ग लुप्त हो जायँगे, उस समय पाखण्ड फैल जायगा–यह बात प्रसिद्ध है। प्रायः सभी लोगों ने ऐसी बात कही है।
कलियुग के लोग कामवेदना से पीड़ित, नाटे शरीर के और लोभी होंगे तथा धर्म और ईश्वर का आश्रय छोड़कर आपस में एक-दूसरे पर ही निर्भर रहने वाले होंगे। प्रायः सब लोग थोड़ी आयु और अधिक सन्तान वाले होंगे।
कलियुग में अधिकांश लोग वाचाल (व्यर्थ बकवास करने वाले) होंगे। ब्रह्मन्! इस प्रकार घोर कलियुग आने पर सदा पाप-परायण रहने के कारण जिनका अन्तःकरण शुद्ध नहीं हो सकेगा, उन लोगों की मुक्ति कैसे होगी ? धर्मात्माओं में श्रेष्ठ सर्वज्ञ सूतजी! देवाधिदेव देवेश्वर जगद्गुरु भगवान् श्रीरामचन्द्रजी जिस प्रकार सन्तुष्ट हों, वह उपाय हमें बताइये। मुनिश्रेष्ठ सूतजी ! इन सारी बातों पर आप पूर्णरूप से प्रकाश डालिये। आपके वचनामृत का पान करने से किसको सन्तोष नहीं होता है।’
सूतजी ने कहा–‘मुनिवरो ! आप सब लोग सुनिये। आपको जो सुनना अभीष्ट है, वह मैं बताता हूँ। महात्मा नारदजी ने सनत्कुमार को जिस रामायण नामक महाकाव्य का गान सुनाया था, वह समस्त पापों का नाश और दुष्ट ग्रहों की बाधा का निवारण करने वाला है।
वह सम्पूर्ण वेदार्थों की सम्मति के अनुकूल है। उससे समस्त दुःस्वप्नों का नाश हो जाता है। वह धन्यवाद के योग्य तथा भोग और मोक्षरूप फल प्रदान करने वाला है। उसमें भगवान् श्रीरामचन्द्रजी की लीला-कथा का वर्णन है। वह काव्य अपने पाठक और श्रोताओं के लिये समस्त कल्याणमयी सिद्धियों को देने वाला है।
धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष–इन चारों पुरुषार्थों का साधक है, महान् फल देने वाला है। यह अपूर्व काव्य पुण्यमय फल प्रदान करने की शक्ति रखता है। आप लोग एकाग्रचित्त होकर इसे श्रवण करें। महान् पातकों अथवा सम्पूर्ण उपपातकों से युक्त मनुष्य भी उस ऋषिप्रणीत दिव्य काव्य का श्रवण करने से शुद्धि (अथवा सिद्धि) प्राप्त कर लेता है। सम्पूर्ण जगत् के हित-साधन में लगे रहने वाले जो मनुष्य सदा रामायण के अनुसार बर्ताव करते हैं, वे ही सम्पूर्ण शास्त्रों के मर्म को समझने वाले और कृतार्थ हैं।
विप्रवरो ! रामायण धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष का साधन तथा परम अमृतरूप है; अतः सदा भक्तिभाव से उसका श्रवण करना चाहिये। जिस मनुष्य के पूर्वजन्मोपार्जित सारे पाप नष्ट हो जाते हैं, उसी का रामायण प्रति अधिक प्रेम होता है। यह निश्चित बात है। जो पाप के बन्धन में जकड़ा हुआ है, वह रामायण की कथा आरम्भ होने पर उसकी अवहेलना करके दूसरी-दूसरी निम्नकोटि की बातों में फँस जाता है। उन असद्गाथाओं में अपनी बुद्धि के आसक्त होने के कारण वह तदनुरूप ही बर्ताव करने लगता है।इसलिये द्विजेन्द्रगण! आप लोग रामायण नामक परम पुण्यदायक उत्तम काव्य का श्रवण करें; जिसके सुनने से जन्म, जरा और मृत्यु के भय का नाश हो जाता है तथा श्रवण करने वाला मनुष्य पाप-दोष से रहित हो अच्युत स्वरूप हो जाता है।
रामायण काव्य अत्यन्त उत्तम, वरणीय और मनोवाञ्छित वर देने वाला है। वह उसका पाठ और श्रवण करने वाले समस्त जगत् को शीघ्र ही संसार सागर से पार कर देता है। उस आदि काव्य को सुनकर मनुष्य श्रीरामचन्द्रजी के परमपद को प्राप्त कर लेता है। जो ब्रह्मा, रुद्र और विष्णु नामक भिन्न-भिन्न रूप धारण करके विश्व की सृष्टि, संहार और पालन करते हैं, उन आदिदेव परमोत्कृष्ट परमात्मा श्रीरामचन्द्रजी को अपने हृदय-मन्दिर में स्थापित करके मनुष्य मोक्ष का भागी होता है। जो नाम तथा जाति आदि विकल्पों से रहित, कार्य-कारण से परे, सर्वोत्कृष्ट, वेदान्त शास्त्र के द्वारा जानने योग्य एवं अपने ही प्रकाश से प्रकाशित होने वाला परमात्मा है, उसका समस्त वेदों और पुराणों के द्वारा साक्षात्कार होता है (इस रामायण के अनुशीलन से भी उसी की प्राप्ति होती है।)
विप्रवरो ! विशेष रूप से चैत्र, माघ और कार्तिक के शुक्लपक्ष में परम पुण्यमय रामायण कथा का नवाह-पारायण करना चाहिये तथा नौ दिनों तक इसे प्रयत्न पूर्वक सुनना चाहिये। रामायण आदि काव्य है। यह स्वर्ग और मोक्ष देने वाला है, अतः सम्पूर्ण धर्मो से रहित घोर कलियुग आने पर नौ दिनों में रामायण की अमृतमयी कथा को श्रवण करना चाहिये।
ब्राह्मणो! जो लोग भयंकर कलिकाल में श्रीराम-नाम का आश्रय लेते हैं, वे ही कृतार्थ होते हैं। कलियुग उन्हें बाधा नहीं पहुँचाता।जिस घर में प्रतिदिन रामायण की कथा होती है, वह तीर्थरूप हो जाता है। वहाँ जाने से दुष्टों के पापों का नाश होता है। तपोधनो ! इस शरीर में तभी तक पाप रहते हैं, जब तक मनुष्य श्रीरामायण कथा का भलीभाँति श्रवण नहीं करता। संसार में श्रीरामायण की कथा परम दुर्लभ ही है। जब करोड़ों जन्मों के पुण्यों का उदय होता है, तभी उसकी प्राप्ति होती है।
श्रेष्ठ ब्राह्मणो! कार्तिक, माघ और चैत्र के शुक्ल पक्ष में रामायण के श्रवणमात्र से (राक्षसभावापन्न) सौदास भी शापमुक्त हो गये थे। सौदास ने महर्षि गौतम के शाप से राक्षस-शरीर प्राप्त किया था। वे रामायण के प्रभाव से ही पुनः उस शाप से छुटकारा पा सके थे। जो पुरुष श्रीरामचन्द्रजी की भक्ति का आश्रय ले प्रेम पूर्वक इस कथा का श्रवण करता है, वह बड़े-बड़े पापों तथा पातक आदि से मुक्त हो जाता है।
इस प्रकार नारद-सनत्कुमार–संवाद के अन्तर्गत रामायणमाहात्म्य विषयक कल्प का अनुकीर्तन नामक प्रथम अध्याय पूरा हुआ॥१॥