पंडित हर्षमणि बहुगुणा
न जाने क्यों रानीचौरी की दुर्दशा हमेशा सालती रहती है। बहुत प्रयास करने पर भी पर्वतीय परिसर रानीचौरी की पहचान पूर्ववत् बनाने में सक्षम नहीं हो पा रहे हैं। ऐसा लगता है कि हमारा समाज सुषुप्त अवस्था में है या हम समाज को एक दिशा देने में असमर्थ हैं। कभी कभी लगता है कि यदि रानीचौरी परिसर में कृषि विभाग, औद्यानिकी विभाग, पशु पालन विभाग सहित अन्य विभागों का स्थायी संचालन होता है तो इसका लाभ क्या किसी व्यक्ति विशेष को मिलेगा या क्षेत्र के सभी लोगों को फायदा होगा?
शायद इस मुहिम को आगे बढ़ाने में कुछ लोगों की सक्रिय भूमिका का लाभ उन्हीं को नहीं मिलना है। यदि केवल अपनी बात करूं तो मुझे न तो राजनीति में जाना है, न कोई नौकरी ही करनी है, या अपना कोई निजी स्वार्थ ही सिद्ध करना है। न धन की लालसा न पद की लालसा है। केवल रानीचौरी के उज्ज्वल भविष्य की, यहां की आने वाली पीढ़ी को सजाने संवारने की। आज यहां का बेरोजगार दर दर भटक रहा है और यदि थोड़ी सा रोजगार मिला है तो उपनल के माध्यम से? बहुत बड़ी विडम्वना है और यहां का सम्पूर्ण समाज सोया सा है !
एक बार चलते चलते पैर में जोर से कांटा चुभा, सारा शरीर दर्द से कराह उठा। अंगुलियां चुभे कांटे को धीरे से खींचने लगी, कांटा तो निकला पर उसका अग्र भाग पैर में ही रह गया। फलस्वरूप पैर पक गया, भयंकर दर्द, आंखों में अश्रुधारा, मुंह ने भोजन छोड़ दिया, कानों ने सुनना छोड़ दिया, पैर के दर्द से शरीर के सभी अंग छटपटाने लगे। पर धीरे-धीरे पीब निकला व कांटे की नोक भी निकल गई। शनै:शनै: पैर का दर्द कम हो गया और फिर सभी अंगों ने अपना कार्य प्रारम्भ कर दिया और सब प्रसन्न होकर अपने कर्म में जुट गए।
इस शरीर के नियम की तरह हमारे गांव का भी वही नियम है। जब शरीर का कोई अंग बीमार होता है तो उसका प्रभाव दूसरे अंगों पर भी पड़ता है और सम्पूर्ण शरीर असहाय हो जाता है। ठीक इसी प्रकार गांव का एक व्यक्ति या परिवार अथवा कुटुम्ब चाहे वह कोई भी क्यों नहीं है यदि कमजोर या दु:खी होता है, तो उसका प्रभाव दूसरे व्यक्तियों, परिवारों या कुटुम्बों पर भी पड़ता है और फिर उससे सम्पूर्ण गांव या क्षेत्र प्रभावित होता है। अतः अपने इस रानी चौंरी क्षेत्र को दुर्दशा से बचाया जाएगा तो समूचा क्षेत्र या जनपद दुष्प्रभाव से बचेगा।
आज आवश्यकता है इस बात को समझने की कि हम यदि समष्टि भाव से परमार्थ चिन्तन करके कुछ भी कर्म करते हैं तो लाभ हमारे क्षेत्र , जनपद या राज्य का ही होगा। इस हेतु अब केवल एक महीने का समय है अन्यथा ‘फिर पछताए होत क्या जब चिड़िया चुग गई खेत’ ।
“यह बात वेवाक् रूप से कही जा सकती है कि यदि जिस गांव या मुल्क का एक भी पड़ोसी दु:खी है और वह दूसरे पड़ोसी के दु:ख में नहीं पहुंचता है तो उस गांव, उस मुल्क का समाज मुर्दा है। यह समझना चाहिए। एक बार एक लड़का मेरे पास आया उसके कान में दर्द था, वह रो रहा था उससे मजाक में कहा तेरे कान में दर्द है तो तेरी आंखों से पानी क्यों झर रहा है? ? परन्तु कान का दर्द आंखों के पास तो पहुंचता ही है और यही लक्षण है प्राण धारी शरीर का! । तो आइए आज ही संकल्प लेते हैं कि इस परिसर को बचाने की मुहिम में हम सब शरीक होंगे व जिससे सब का हित हो ऐसा कार्य अवश्य करेंगे।
आप सब का भविष्य उज्ज्वल होगा इस संकल्प में यह भावना निहित है , यह मत सोचिए कि अमुक व्यक्ति का इसमें क्या लाभ है, दृष्टिकोण बदलिए आलोचना सकारात्मक ऊर्जा के लिए होनी चाहिए, कोई न कोई अपना धन, समय, इस परमार्थ के लिए समर्पित कर रहा है। अच्छी शिक्षा अच्छे समाज को जन्म देगी यह मेरा विश्वास है, शायद आप सब यही सोचते हैं, पर यह कभी मत सोचिए कि इससे मुझे क्या लाभ है! ? निस्वार्थ भाव से यदि कुछ हित हो सकता है तो कीजिए और यदि हमें किसी का लाभ भी दिखाई देता है तो उसका लाभ होने दीजिए सम्भवतः आप किसी को लाभ पहुंचाने के भागी दार बन जाएं।
“यह विचार भी महत्वपूर्ण है कि गांव के हर क्षेत्र को सड़क से जुड़ना आवश्यक है पर इसके लिए प्रयासरत रहना आवश्यक है ईश्वर की कृपा अवश्य होगी, यह मेरा विश्वास है पर सरल से कठिन की ओर चलना श्रेयस्कर है अत: इस पर समुचित कार्यवाही की जा सकती है और करनी भी चाहिए।”
परमार्थ के कार्यों में बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया जाना चाहिए यही सबसे बड़ी साधना है। परिसर रानीचौरी को पुनर्जीवित करने के लिए कुछ न कुछ प्रयास अवश्य कीजिए। आपके पास अकूत शक्ति है, अन्यथा चुनाव बहिष्कार का नोटिस मुख्यमंत्री महोदय या राज्यपाल महोदय को जिला अधिकारी महोदय के माध्यम से यथा शीघ्र भिजवाएं। एक बैठक बुलाई जाय तभी कुछ विचार हो सकता है। सप्रेम ।