पंडित उदय शंकर भट्ट
पुरातनकाल में शायद ही कोई घर बिना दहलीज के बनता हो और दहलीज की पूजा शायद ही कोई ना करता हो। दहलीज की इस पूजा के पीछे एक विशेष अनुभूति होती है।
पुराने जमाने में महिलाएं रोज सुबह घर की दहलीज की पूजा करती थीं। लेकिन, वर्तमान में आधुनिकीकरण के कारण इस प्रथा को समाप्त किया जा रहा है। कई जगह आज भी महिलाएं सबसे पहले घर की दहलीज की पूजा करती हैं रंगोली बनाती है।
यदि आप वस्तु की दृष्टि से देखें तो घर की दहलीज का अत्यधिक महत्व है। घर परिवार में कितना भी लड़ाई झगडे होते हो लेकिन घर की देहलीज को लांघकर कोई जल्दी से नहीं निकलता ।
सबसे पहले आपको बता दें कि आखिर दहलीज होती क्या है क्योंकि बहुत से लोग ऐसे हैं जिन्हें दहलीज का सही अर्थ नहीं पता। सनातन धर्म व वास्तु के अनुसार दरवाजे के नीचे वाली लकड़ी या चौखट दहलीज कहलाती है, जिसे कुछ लोग देहरी व देहली भी कह लेते हैं। अक्सर ये घर के बाहर मुख्य द्वार पर दहलीज बनाई जाती है।
चौखट होने से घर-परिवार में शांति भी बनी रहती है। यही नहीं दहलीज घर में बरकत को भी रोकने में अपना अहम योगदान देती है। लेकिन कई घर ऐसे भी बनाए जाते हैं जिसमें दहलीज नहीं होती।
ये ही नहीं कोई भी व्रत या त्योहार हो दहलीज की पूजा भी ज़रूर करें। क्योंकि ये ही वो स्थान है यहां से हमारे घर में सकारात्मक व नकारात्मक ऊर्जा का प्रवेश होता है।
घर की दहलीज पर बैठकर या इसके सामने खड़े होकर कभी भी नाखून नहीं काटना चाहिए। मान्यता है कि ऐसा करने से घर में दरिद्रता आती है। वहीं दहलीज के सामने बैठकर मांसाहारी भोजन करने की भूल तो कभी नहीं करना चाहिए। इससे कई वास्तु दोष उत्पन्न हो जाते हैं।
अकसर देखा जाता है कई लोग घर की चौखट के बाहर अपने जूते चप्पल उतारते हैं जो कि गलत है। चूंकि मां लक्ष्मी का वास होता है, इससे मां लक्ष्मी का अपमान होता है। और घर में गरीबी दस्तक देने लगती है। आगे आपको बता दें जिन लोगों को घर में दहलीज नहीं होती उन्हें हल्दी से दहलीज बनाकर इसकी पूजा करनी चाहिए। इससे भी शुभ फल मिलते हैं।
दहलीज को लक्ष्मण रेखा की उपाधि भी दी गई है। दहलीज घर में प्रवेश करने वाले प्रत्येक व्यक्ति की सीमा निर्धारित करती है, चाहे उन्हें घर में प्रवेश करने की अनुमति दी जाए या दहलीज के बाहर से उन्हें विदाई दी जाए। साथ ही घर में प्रवेश करने वाले प्रत्येक व्यक्ति का निवास घर की दहलीज से तय होता है।
हर घर की स्त्री नित्य दहलीज की पूजा करें और उसमें वास करने वाले ईश्वर से प्रार्थना करें कि हे ईश्वर, मेरे घर में धर्मी पुरुष और दिव्य संत आएं, इस पूरी चर्चा को संक्षेप में सारांशित करने के लिए, दहलीज हमें नफरत, ईर्ष्या, क्रोध, नकारात्मकता आदि विकारों को दूर या नियंत्रित करके एक खुशहाल जीवन जीना सिखाती है। इसलिए नियमित रूप से पूजा करें।
कभी भी दहलीज पर पैर रखकर खड़े नहीं होते, खासतौर पर दिवाली के अवसर पर ऐसा बिल्कुल नहींं करना चाहिए। इसके अलावा दहलीज पर कभी पैर नहीं पटकने चाहिए। गंदे पैर या चप्पल को रगड़कर साफ नहीं करना चाहिए। दहलीज पर खड़े रहकर कभी किसी के चरण स्पर्श नहीं करने चाहिए। इसके अतिरिक्त कई बार लोग स्वागत दहलीज के अंदर से और विदाई दहलीज के बाहर खड़े रहकर करते हैं, परंतु कभी भी किसी मेहमान का स्वागत या विदाई दहलीज पर खड़े रहकर नहीं करना चाहिए।
हर सुबह सूर्य उगने से पहले एक लोटा जल अपने घर की चोखट पर जरुर डालें और अपने इष्ट देवी देवताओं को याद करें जीवन में खुशियां आनी शुरू हो जायेगी।