सुप्रभातम्: सुबह जागने के बाद भूमि देवी से क्षमा याचना करके जमीन पर पैर रखने की है परंपरा

दिन की शुरुआत शुभ हो तो पूरा दिन शुभ रहता है। सुबह को शुभ बनाने के लिए कई परंपराएं पुराने समय से चली आ रही हैं। सुबह जागते ही पहला प्रणाम अपनी हथेलियों को किया जाता है, इसके बाद दूसरा प्रणाम जमीन पर पैर रखने से पहले भूमि देवी से किया जाता है। जानिए परंपरा से जुड़ी खास बातें और भूमि नमन मंत्र…

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हिमशिखर खबर डेस्क

शास्त्रों में पृथ्वी की वंदना, मां कहकर की गई है, अतः यह आदरणीय हैं। हमारी सनातन संस्कृति में सुबह उठते ही धरती को दाएं हाथ से स्पर्श कर हथेली को माथे से लगाने की परंपरा है। हमारे ऋषि-मुनियों ने इस रीति को विधान बनाकर धार्मिक रूप इसलिए दिया ताकि हम धरती माता के प्रति अपनी कृतज्ञता प्रकट कर सकें, उन्हें सम्मान दे सकें। हमारा शरीर भी भूमि तत्वों से बना है। धरती हमारे लिए मातृ स्वरूपा है। जो भी हम इसमें बोते हैं, उसे ही पल्लवित-पोषित करके हमें पुनः दे देती है। अन्न, जल, औषधियां, फल-फूल, वस्त्र एवं आश्रय आदि सब धरती की ही तो देन हैं। इसलिए हम सब धरती माता के ऋणी हैं।

इस मंत्र से प्रतिदिन करें क्षमा प्रार्थना

माता के समान पूज्यनीय होने से भूमि पर पैर रखना भी दोष का कारण माना गया है। पर भूमि स्पर्श से तो कोई अछूता नहीं रह सकता। यही कारण है कि शास्त्रों में उस पर पैर रखने की विवशता के लिए एक विशेष मंत्र के द्वारा क्षमा प्रार्थना ज़रूरी मानी गई है

समुद्र-वसने देवि, पर्वत-स्तन-मंडिते ।
विष्णु-पत्नि नमस्तुभ्यं, पाद-स्पर्शं क्षमस्व मे ॥

अर्थात् समुद्र रुपी वस्त्र धारण करने वाली पर्वत रुपी स्तनों से मंडित भगवान विष्णु की पत्नी हे माता पृथ्वी! आप मुझे पाद स्पर्श के लिए क्षमा करें।

• भारतीय संस्कृति की मान्यता है कि हमारा पैर किसी व्यक्ति को स्पर्श होता है तो हमें दोष लगता है, इसी वजह से जब गलती से भी हमारा पैर किसी को लगता है तो हम उससे क्षमा मांगते हैं।

• भूमि को देवी माना गया है और सुबह जब हम भूमि पर पैर रखते हैं तो उस समय भी हमें दोष लगता है, इस दोष से मुक्ति के लिए पैर रखने से पहले भूमि देवी से क्षमा मांगने की परंपरा है।

• भूमि नमन प्रकृति का आभार मानने की परंपरा है। भूमि ही हमारे जीवन का मुख्य आधार है। भूमि से ही हमें जल, अन्न, रहने के लिए घर, भूमि पर उग रहे पेड़ों से प्राण वायु और अन्य सभी जरूरी चीजें मिलती हैं। जब हम भूमि को नमन करते हैं तो हमारे मन में ये भाव होना चाहिए कि हम भूमि और इसके सभी तत्वों का सम्मान करेंगे, जल, वायु, पेड़-पौधे, नदियां, पर्वत, अन्न का अपव्यय नहीं करेंगे।

जानें कब-कब और क्यों की जाती है धरती माता की पूजा 

स्टेज पर कलाकार अपनी कला का प्रदर्शन करने से पूर्व धरती को छूकर प्रणाम करते हैं। मंदिर में प्रवेश करने से पहले भी धरती को छूकर आर्शीवाद लिया जाता है। कहीं-कहीं तो आज भी बच्चे को नया वस्त्र पहनाने से पहले कपड़े को धरती से स्पर्श करवाया जाता है। यह सब धरती मां की मानसिक पूजा का ही एक रूप है।

कोई भी पूजा-अनुष्ठान आरम्भ करने से पहले उस जगह को धोकर, जल छिड़क कर, मांडना बनाकर मूर्ति, कलश,दीपक या पूजा की थाली रखी जाती है।

मकान-दुकान आदि के निर्माण कार्य में सर्वप्रथम भूमि पूजन ही किया जाता है। विशेष मन्त्रों के द्वारा माँ भूमि से प्रार्थना की जाती है कि हे माँ! हम आपके ऊपर भार डाल रहें हैं, उसके लिए आप हमें क्षमा करें। नींव में भी चांदी का सर्प रखा जाता है। ऎसी मान्यता है कि हमारी पृथ्वी सर्प के फन पर टिकी हुई है।

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