शिव के सबसे रहस्यमयी स्वरूपों में से एक है महाकाल। देश में 12 ऐसे स्थान हैं जहां महादेव ज्योति स्वरूप में विद्यमान हैं., इन स्थानों को ही ज्योतिर्लिंग के नाम से जाना जाता है। महाकालेश्वर उन्हीं में से एक हैं, जिनकी भस्म से आरती की जाती है। भस्म सृष्टि का सार है, एक दिन संपूर्ण सृष्टि इसी राख के रूप में परिवर्तित हो जाती है। आपको बता दें भस्म तैयार करने से लेकर भस्म आरती करने तक की पूरी प्रक्रिया बहुत खास है। महाकाल की 5 आरतियां होती हैं, जिसमें सबसे खास मानी जाती है भस्म आरती। भस्म आरती यहां भोर में 4 बजे होती है। आइए जानते हैं इस आरती से जुड़ी खास बातें…
हिमशिखर धर्म डेस्क
सनातन मान्यताओं के अंतर्गत 12 ज्योतिर्लिंगों की महिमा को स्वीकार किया गया है, जिनका संबंध भगवान शिव के साथ हैं। ये ज्योतिर्लिंग इतने शक्तिशाली और ऊर्जावान होते हैं कि इनके दर्शन मात्र से ही दुख और पीड़ा का नाश हो जाता है। इन 12 ज्योतिर्लिंगों में से एक है उज्जैन का महाकाल मंदिर, जहां रोज सुबह भगवान शिव की भस्म आरती की जाती है। क्या आप जानते हैं महादेव की भस्म आरती के पीछे की मान्यता क्या है क्यों उन्हें भस्म का श्रृंगार करवाया जाता है?
भगवान शिव अद्भुत व अविनाशी हैं। भगवान शिव जितने सरल हैं, उतने ही रहस्यमयी भी हैं। शास्त्रों में एक ओर जहां सभी देवी-देवताओं को सुंदर वस्त्र और आभूषणों से सुसज्जित बताया गया है, वहीं दूसरी ओर भगवान शिव का रूप चित्र-विचित्र बताया गया है। शिवजी सदैव मृगछाला धारण किए और शरीर पर भस्म लगाए रहते हैं।
शिवजी का प्रमुख वस्त्र ही भस्म है, क्योंकि उनका पूरा शरीर भस्म से ढंका रहता है। शिवपुराण के अनुसार भस्म सृष्टि का सार है, एक दिन संपूर्ण सृष्टि इसी राख के रूप में परिवर्तित हो जाती है। भस्म की यह विशेषता होती है कि यह शरीर के रोम छिद्रों को बंद कर देती है। इसे शरीर पर लगाने से गर्मी में गर्मी और सर्दी में सर्दी नहीं लगती। भस्म, त्वचा संबंधी रोगों में भी दवा का काम भी करती है।
शिवजी का निवास कैलाश पर्वत पर बताया गया है, जहां का वातावरण एकदम प्रतिकूल है। इस प्रतिकूल वातावरण को अनुकूल बनाने में भस्म महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। भस्म धारण करने वाले शिव संदेश देते हैं कि परिस्थितियों के अनुसार स्वयं को ढाल लेना चाहिए।
मृत्यु ही है संसार का एकमात्र और अटक सत्य
भगवान शिव को ‘महाकाल’ कहा जाता है वे मृत्युंजय भी हैं….. उन्हें श्मशान के साधक के रूप में जाना जाता है। भस्म उनका श्रृंगार है…. यह इस नश्वर संसार की पहचान करवाता है। भस्म आरती भी एक खास संदेश देती है, भस्म यानी राख को देह के अंतिम सत्य के रूप में देखा गया है। सनातन धर्म में मृत्यु के बाद शरीर को अग्नि को सौंपकर जला दिया जाता है और अंत में केवल राख बचती है। ऐसे में जहां भस्म आरती देह के अंतिम सत्य को दर्शाती है, तो वहीं सृष्टि का सार को भी।
भस्म बनाने की प्रक्रिया
आज से कई वर्ष पहले महाकाल की आरती जिस भस्म से की जाती थी उसे श्मशाम से ही लाया जाता था लेकिन अब यह तरीका बदल दिया गया है क्योंकि अब इस भस्म को तैयार करने के लिए पीपल, कपिला गाय के गोबर से बने कंडे, शमी, पलाश, बड़, अमलतास और बेर की लकड़ियों को जलाया जाता है। इसके बाद इस भस्म को भक्तों में प्रसाद के रूप में वितरित कर दिया जाता है। ऐसी मान्यता है कि इस भस्म को प्रसाद के रूप में ग्रहण करने से महादेव का आशीर्वाद प्राप्त होता है, जिससे व्यक्ति को कई तरह के रोग और दोष से मुक्ति मिल सकती है।
एक बार दूषण नाम के एक राक्षस ने उज्जैन नगरी में तबाही मचा रखी थी। उस समय वहां के ब्राह्मणों ने भगवान शिव से अपनी रक्षा के लिए प्रार्थना की। भगवान शिव ने उनकी प्रार्थना स्वीकार की और दूषण को ऐसा ना करने की चेतावनी दी…. लेकिन दूषण नहीं माना। तब भगवान शिव क्रोधित हुए और उन्होंने दूषण को भस्म कर दिया। उसके बाद उस भस्म को अपने पूरे शरीर पर लगाकर अपना श्रृंगार किया…तभी से इस मंदिर में महादेव का श्रृंगार भस्म से करने की प्रथा चली आ रही है, इसे ही भस्म आरती के नाम से जाना जाता है।