देव-दुर्लभ मानव शरीर पाकर भी हम प्रेम, एकता, परोपकार और सेवा आदि गुणों को धर्म के अनुसार नहीं कर रहे हैं। यह एक शाश्वत सत्य है कि जो आया है उसे एक दिन जाना है। आत्मा अजर है, अमर है, उसे कोई नहीं मार सकता। शरीर नश्वर है लेकिन अज्ञानीजन शरीर के पीछे पड़े रहते हैं। शरीर से आत्मा निकल जाए तो वह केवल शव रह जाता है। हमें जन्म जन्मांतर के बंधन से मुक्त होना है।
हिमशिखर खबर ब्यूरो।
व्यक्ति की मौत उसके जीवन एक अटल सत्य है, जो ना तो बदला जा सकता है और ना ही टाला जा सकता है। जीवन का अंत होने के बाद मृत की आत्मा को शांति मिले, इसके लिए लोग शमशान घाट में उस मृत देह का अंतिम संस्कार करते हैं। इस दौरान मृत का परिवार, यार-रिश्तेदार उसकी अंतिम यात्रा में शामिल होकर उसे दुनिया से विदा करते हैं।
एक व्यक्ति अपने सगे को अंतिम विदाई देने के लिए माँ गंगा के तट पर श्मशान घाट पहुंचा था। वहाँ अंतिम विदाई के बाद अपने प्रियजन की चिता को अग्नि के हवाले कर दिया गया। गंगा के किनारे श्मशान में कई चिताएं जल रही थी, जिनके आस-पास कई लोग गमगीन खड़े थे। लोग मन ही मन सोच रहे थे कि अब कभी बुलाने पर भी मरने वाला लौट कर नहीं आएगा।
कंचन जैसी देह को अग्नि ने पल में राख बना दिया, जो कभी परिवार का प्यारा था वो बस अपनी यादें छोड़ गया। श्मशान घाट पर एक व्यक्ति यह सब कुछ देख रहा था। समय को बदलते हुए, सत्य को जानते हुए कि आत्मा और शरीर का संबंध एक समय तक ही रहता है। लोग किस प्रकार मोह में फसे हुए हैं।
श्मशान घाट में उस व्यक्ति के साथ बैठे एक व्यक्ति ने पूछा, यह कैसी माया है? जो अपना है नहीं उसी में फंसकर जीवन व्यर्थ कर देते है, ये माया तो बहुत ठगनी है जो एक दिन सबको काल बनकर खा जाती है।
उस व्यक्ति ने कहा, ध्यान से देखो इस जलती हुई देह को। जब अंत मे यही होना है तो किस बात का अहंकार करते हो।
देखो इन प्रियजन को ये सभी कुछ दिन में सब भूल जाएंगे और अपने जीवन मे व्यस्त हो जाएंगे। किसी का जीवन नही रुकता सब अपने कर्मो के अनुसार जीवन जी लेते है।
मनुष्य मोहवश इस सच्चाई को नहीं जान पाता।जनता है तो भी इस पर भरोसा नहीं करता और भौतिकता के सुख में डूबा रहता है। लेकिन जिसको भी यह जीवन मिला है उसे एक न एक दिन वापस जाना ही है, शरीर और आत्मा का साथ बहुत ज्यादा दिनों का नहीं है। मनुष्य माया में फंस कर इस जीवन की सच्चाई भूल जाता है। जीवन का उद्देश्य धन और संपदा कमाना ही नहीं होता है। बल्कि इस जन्म मरण के बंधन से मुक्ति पाना होता है।
इस संसार में अधिकांश जीवन-मरण के चक्र से छूट ही नहीं पाते। क्योंकि आत्मज्ञान पाने की इच्छुक ही नहीं हैं। हम पूरा जीवन संसारिकता में ही निकाल देते हैं। कभी प्रयास ही नहीं करना चाहते इस संसार से निकलने का, तो देह त्याग के बाद भी चौरासी का चक्कर चलता ही रहेगा।
इस देह को जलने से पहले इसका सही उपयोग कर लेना चाहिए, अन्यथा एक दिन शरीर अंत समय में अग्नि के हवाले तो करना ही पड़ेगा।