अक्सर यह चमत्कारिक अक्षय पात्र प्राचीन ऋषि-मुनियों के पास हुआ करता था। अक्षय का अर्थ जिसका कभी क्षय या नाश न हो। दरअसल, एक ऐसा पात्र जिसमें से कभी भी अन्न और जल समाप्त नहीं होता। जब भी उसमें हाथ डालो तो खाने की मनचाही वस्तु निकाली जा सकती है।
- जंगल में जब काफी लोग पांडवों से मिलने आने लगे तो भोजन की किल्लत होती थी
- तब युधिष्ठिर को एक पात्र मिला, जिसमें कभी खाना खत्म नहीं होता था
- इस पात्र से पांडवों ने सैकड़ों ऋषियों-मुनियों और मेहमानों का लगातार भोजन कराया
हिमशिखर धर्म डेस्क
पांडव जब जंगल में वनवास में थे, तो उस समय न सिर्फ उनका परिवार काफ़ी बड़ा था बल्कि उनकी कुटिया में रोजाना कई साधु संत भी आ जाते थे। उन्हें रोजाना अपना पेट भरने के साथ-साथ उन साधु-संतों का भी आदर-सत्कार करना पड़ता था। लेकिन वनवास में रहने के कारण उनके पास हमेशा अन्न की कमी की समस्या रहती थी। लेकिन पांडवों ने इस समस्या का समाधान बहुत ही जल्दी निकाल लिया।
दरअसल, जब मेहमानों के सामने भोजन की समस्या होने लगी, तो द्रौपदी ने युधिष्ठिर से इस समस्या का निदान करने के लिए कहा। तब युधिष्ठिर को पारिवारिक पुजारी ने एक तरकीब सुझाई। उन्होंने युधिष्ठिर को सूर्य देव से कुछ माँगने को कहा। युधिष्ठिर ने जल में खड़े होकर सूर्यदेव की कठोर तपस्या की। जब उनकी तपस्या से प्रसन्न होकर सूर्य उपस्थित हुए, तो युधिष्ठिर ने सकुचाते हुए उन्हें अपनी समस्या बताई। तब सूर्यदेव ने उन्हें वरदान स्वरूप एक अक्षय पात्र दिया और कहा कि जब तक आख़िरी भोजन द्रौपदी नहीं कर लेती, तब तक इस अक्षय पात्र का भोजन कभी समाप्त नहीं होगा। इस पात्र से उन्हें अन्न, फल, शाक आदि चार प्रकार की भोजन सामग्रियां मिलती रहेंगी। कथाओं के अनुसार, जब दुर्योधन को इस अक्षय पात्र के बारे में पता चला था, तो उसे बहुत गुस्सा आया था।
जब द्रौपदी के भोजन करने के बाद पहुंचे थे दुर्वासा ऋषि कथा के अनुसार, जब यह बात दुर्योधन को ज्ञात हुआ कि पांडवों के पास अक्षय पात्र है, तो उसने पांडवों को दुर्वासा ऋषि द्वारा शापित करने का षड़यंत्र रचा। उसने अपने यहां पधारे हुए दुर्वासा ऋषि की खूब सेवा की। जब उन्होंने दुर्योधन से प्रसन्न होकर उसे कुछ मांगने को कहा, तब उसने उनसे युधिष्ठिर के यहां पधारने को कहा। जब दुर्वासा ऋषि ने पांडवों के पास जाकर भोजन करने का विचार किया, तो अक्षय पात्र का आखिरी भोजन द्रौपदी ने कर लिया था। उन्होंने सन्देश भिजवाया कि स्नान करने के बाद वो अपने शिष्यों समेत दुर्योधन के आश्रम आ रहे हैं। अब चूंकि द्रौपदी ने भोजन कर लिया था, तो अक्षय पात्र में अब और अधिक भोजन उस दिन नहीं आ सकता था। तब दुर्वासा ऋषि के श्राप के डर के मारे द्रौपदी ने कृष्ण से मदद माँगी। कृष्ण आये और उन्होंने द्रौपदी से अक्षय पात्र लाने के लिए कहा। उसमें एक चावल का दाना बचा हुआ था, जिसे श्री कृष्ण ने खा लिया। उनके उस दाना को खाते ही दुर्वासा ऋषि और उनके शिष्यों को भी पेट भरा हुआ महसूस होने लगा और वो युधिष्ठिर के आश्रम आये ही नहीं।