सुप्रभातम्: पाखण्डियों के लिए भगवान का संदेश-नरक के निकृष्टतम स्थान में अनंत काल तक पड़ना पड़ेगा

हिमशिखर धर्म डेस्क

Uttarakhand

संसार के कुशल समाचार जानने के लिए एक दिन भगवान ने नारद को पृथ्वी पर भेजा। उन्हें सबसे पहले एक दीन दरिद्र वृद्ध पुरुष मिला जो अन्न वस्त्र के लिए तरस रहा था। नारद जी को उसने पहचाना तो अपनी कष्ट कथा रो-रोकर सुनाने लगा और कहा–‘जब आप भगवान से मिलें तो मेरे गुजारे का प्रबन्ध उनसे करा दें।’

नारद उदास मन आगे बढ़े तो एक धनी से उनकी भेंट हो गई। उसने भी नारद जी को पहचाना तो उसने खिन्न होकर कहा–‘मुझे भगवान ने किस जंजाल में फँसा दिया। थोड़ा मिलता तो मैं शांति से रहता और कुछ भजन-पूजन कर पाता, पर इतनी दौलत तो सँभाले नहीं सँभलती। ईश्वर से मेरी प्रार्थना करें कि इस जंजाल को घटा दें।’

यह विषमता देवर्षि को अखरी। वे आगे चल ही रहे थे कि साधुओं की एक जमात से भेंट हो गई। जमात वाले उन्हें चारों ओर से घेरकर खड़े हो गए और बोले–‘स्वर्ग में तुम अकेले ही मौज करते रहते हो। हम सबके लिए भी वैसे ही राजसी ठाठ जुटाओ, नहीं तो नारद बाबा चिमटे मार-मार कर तुम्हारा भुस बना देंगे।’

घबराए नारद ने उनकी माँगी वस्तुएँ मँगा दी और जान छुड़ा कर भगवान के पास वापस लौट गए। जो कुछ देखा वही उनके लिए बहुत था और देखने की उन्हें इच्छा ही न रही।

भगवान् ने नारद से उस यात्रा का वृतांत पूछा तो देवर्षि ने तीनों घटनाएँ कह सुनाई। नारायण हँसे और बोले–‘देवर्षि, मैं कर्म के अनुसार ही किसी को कुछ दे सकने में विवश हूँ। जिसकी कर्मठता समाप्त हो चुकी उसे मैं कहाँ से दूँ। तुम अगली बार जाओ तो उस दीन-हीन वृद्ध से कहना कि दरिद्रता के विरुद्ध लड़े और सुविधा के साधन जुटाने का प्रयत्न करे तभी उसे दैवी सहायता मिल सकेगी।

इसी प्रकार उस धनी से कहना कि यह दौलत उसे दूसरों की सहायता के लिए दी गई है। यदि वह संग्रही बना रहा तो जंजाल ही नहीं, आगे चलकर वह विपत्ति भी बन जाएगी।’

नारद जी ने पूछा–‘और उस साधु मंडली से क्या कहूँ ?’ भगवान के नेत्र चढ़ गए और बोले–‘उन दुष्टों से कहना कि त्यागी और परमार्थी का वेष बनाकर आलस्य और स्वार्थपरता की प्रवंचना इतनी असह्य है कि उन्हें नरक के निकृष्टतम स्थान में अनंत काल तक पड़ना पड़ेगा।’

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