सुप्रभातम्:सुख और दुख दोनों सहज जीवन के लिए दोनों ही आवश्यक है

हिमशिखर धर्म डेस्क

Uttarakhand

हसन नाम का एक सूफी फकीर था, एक दिन वह अपने शिष्य के साथ नाव में बैठने जा रहा था, तभी उनमें एक शिष्य ने कहा, “एक पिता अपने बच्चों को केवल खुशियां देने की कोशिश करता है इसलिए यह स्वाभाविक है कि इस दुनिया में जीतनी भी खुशियां हैं वे सभी हमें परम पिता ईश्वर की देन हैं। लेकिन यह गम किसलिए, ये दुख और शोक क्यों?” 

हसन ने कोई उत्तर नहीं दिया, बल्कि वह शांत भाव से अपनी नाव को एक पतवार से चलाते रहे। उनकी नाव गोल-गोल घूमने लगी, उसका संतुलन बिगड़ने लगा। तभी उनका शिष्य बोल पड़ा “यह आप क्या कर रहे हैं, अगर आप एक ही पतवार से चलाते रहे तो हम कभी भी अपने गंतव्य स्थान तक नहीं पहुँच पाएंगे, हम एक ही जगह पर घूमते रहा जाएंगे, क्या दूसरी पतवार टूट गई है या फिर आपके हाथ में दर्द हो रहा है? आप मुझे नाव चलाने दीजिए।”

हसन ने कहा “जितना मैं  सोचता था, तुम उससे ज्यादा समझदार निकले। अगर इस दुनिया में केवल खुशियां ही खुशियां होंगी तो हम कभी अपने निश्चित स्थान तक नहीं पहुँच पाएंगे, हम बस यूं ही घूमते रह जाएंगे। चीजों को सहज भाव से चलाने के लिए दोनों पक्षों की आवश्यकता होती है। आपको दिन के साथ रात भी चाहिए, कुछ वैसे ही जन्म के साथ मृत्यु और सुख के साथ-साथ दुख भी आवश्यक है। 

जब व्यक्ति यह बात समझ जाएगा कि जीवन के हर पल में, हर घटना में ईश्वर का ही हाथ है तो वह कृतज्ञ भाव से भर जाएगा, वह दुखों को भी खुशी-खुशी स्वीकार कर लेगा। जब आप दुख और सुख को आग-अलग करके देखना बंद कर देंगे तब खुशियों के साथ आपका जुड़ाव और दुखों से कष्ट होना समाप्त हो जाएगा। तब आप वास्तविक रूप से दुखों से मुक्ति पा लेंगे। 

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