त्रैलंग स्वामी (जिन्हें तैलंग स्वामी भी कहते हैं)। जो अपने आध्यात्मिक शक्तियों के लिये प्रसिद्ध हुए। ये जीवन के उत्तरार्द्ध में वाराणसी में निवास करते थे। इनकी बंगाल में भी बड़ी मान्यता है, जहाँ ये अपनी यौगिक एवं आध्यात्मिक शक्तियों एवं लम्बी आयु के लिये प्रसिद्ध रहे हैं। कुछ ज्ञात तथ्यों के अनुसार त्रैलंग स्वामी की आयु लगभग ३०० वर्ष रही थी। इन्हें भगवान शिवजी का अवतार माना जाता है। साथ ही इन्हें वाराणसी के ‘सचल विश्वनाथ’ (चलते फिरते शिव) की उपाधि भी दी गयी है। इन्होंने गंगोत्री, यमुनोत्री सहित हिमालय में कई स्थानों पर कठोर तप कर अलौकिक सिद्धियों को प्राप्त किया। रामकृष्ण परमहंस, लाहिड़ी महाशय जैसे कई संत उनसे मिलने आते थे।
हिमशिखर धर्म डेस्क
वाराणसी की गलियों में एक दिगम्बर योगी घूमता रहता था। गृहस्थ लोग उसके नग्न वेश पर आपत्ति करते हैं फिर भी पुलिस उसे पकड़ती नहीं, वाराणसी पुलिस की इस तरह की तीव्र आलोचनाएं हो रही थीं। आखिर वारंट निकालकर उस नंगे घूमने वाले साधू को जेल में बंद करने का आदेश दिया गया।
पुलिस के आठ-दस जवानों ने पता लगाया, मालूम हुआ वह योगी इस समय मणिकर्णिका घाट पर बैठा हुआ है। जेष्ठ की चिलचिलाती दोपहरी जब कि घर से बाहर निकलना भी कठिन होता है एक योगी को मणिकर्णिका घाट के एक जलते तवे की भाँति गर्म पत्थर पर बैठे देख पुलिस पहले तो सकपकायी पर आखिर पकड़ना तो था ही वे आगे बढ़े। योगी पुलिस वालों को देखकर ऐसे मुस्करा रहा था मानों वह उनकी सारी चाल समझ रहा हो। साथ ही वह कुछ इस प्रकार निश्चिन्त बैठे हुये थे मानों वह वाराणसी के ब्रह्मा हों किसी से भी उन्हें भय न हो। मामूली कानूनी अधिकार पाकर पुलिस का दरोगा जब किसी से नहीं डरता तो अनेक सिद्धियों सामर्थ्यों का स्वामी योगी भला किसी से भय क्यों खाने लगा तो भी उन्हें बालकों जैसी क्रीड़ा का आनन्द लेने का मन तो करता ही है यों कहिए आनंद की प्राप्ति जीवन का लक्ष्य है बाल सुलभ सरलता और क्रीड़ा द्वारा ऐसे ही आनंद के लिए “श्री तैलंग स्वामी” नामक योगी भी इच्छुक रहे हों तो क्या आश्चर्य ?
पुलिस मुश्किल से दो गज पर थी कि तैलंग स्वामी उठ खड़े हुए ओर वहाँ से गंगा जी की तरफ भागे। पुलिस वालों ने पीछा किया। स्वामी जी गंगा में कूद गये पुलिस के जवान बेचारे वर्दी भीगने के डर से कूदे तो नहीं हाँ चारों तरफ से घेरा डाल दिया कभी तो निकलेगा साधु का बच्चा- लेकिन एक घंटा, दो घंटा, तीन घंटा-सूर्य भगवान् सिर के ऊपर थे अब अस्ताचलगामी हो चले किन्तु स्वामी जी प्रकट न हुए कहते हैं उन्होंने जल के अंदर ही समाधि ले ली। उसके लिये उन्होंने एक बहुत बड़ी शिला पानी के अंदर फेंक रखी थी और यह जन श्रुति थी कि तैलंग स्वामी पानी में डुबकी लगा जाने के बाद उसी शिला पर घंटों समाधि लगायें जल के भीतर ही बैठे रहते।
उनको किसी ने कुछ खाते नहीं देखा तथापि उनकी आयु 300 वर्ष की बताई जाती है। वाराणसी में घर-घर में तैलंग स्वामी की अद्भुत कहानियां आज भी प्रचलित हैं। निराहार रहने पर भी प्रतिवर्ष उनका वजन एक पौण्ड बढ़ जाता था। 300 पौंड वजन था उनका जिस समय पुलिस उन्हें पकड़ने गई इतना स्थूल शरीर होने पर भी पुलिस उन्हें पकड़ न सकी। आखिर जब रात हो चली तो सिपाहियों ने सोचा डूब गया इसीलिये वे दूसरा प्रबन्ध करने के लिए थाने लौट गये इस बीच अन्य लोग बराबर तमाशा देखते रहे पर तैलंग स्वामी पानी के बाहर नहीं निकले।
प्रातः काल पुलिस फिर वहाँ पहुँची। स्वामी जी इस तरह मुस्करा रहे थे मानों उनके जीवन में सिवाय मुस्कान और आनंद के और कुछ हो ही नहीं, शक्ति तो आखिर शक्ति ही है संसार में उसी का ही तो आनंद है। योग द्वारा सम्पादित शक्तियों का स्वामी जी रसास्वादन कर रहे हैं तो आश्चर्य क्या। इस बार भी जैसे ही पुलिस पास पहुँची स्वामी फिर गंगा जी की ओर भागे और उस पार जा रही नाव के मल्ला को पुकारते हुए पानी में कूद पड़े। लोगों को आशा थी कि स्वामी जी कल की तरह आज भी पानी के अंदर छुपेंगे और जिस प्रकार मेढ़क मिट्टी के अंदर और उत्तराखण्ड के रीछ बर्फ के नीचे दबे बिना श्वाँस के पड़े रहते हैं उसी प्रकार स्वामी जी भी पानी के अंदर समाधि ले लेंगे किन्तु यह क्या जिस प्रकार से वायुयान दोनों पंखों की मदद से इतने सारे भार को हवा में संतुलित कर तैरता चला जाता है उसी प्रकार तैलंग स्वामी पानी में इस प्रकार दौड़ते हुए भागे मानों वह जमीन पर दौड़ रहे हों । नाव उस पार नहीं पहुँच पाई स्वामी जी पहुँच गये। पुलिस खड़ी देखती रह गई।
स्वामी जी ने सोचा होगा कि पुलिस बहुत परेशान हो गई तब तो वह एक दिन पुनः मणिकर्णिका घाट पर प्रकट हुए और अपने आपको पुलिस के हवाले कर दिया। हनुमान जी ने मेघनाथ के सारे अस्त्र काट डाले किन्तु जब उसने ब्रह्म-पाश फेंका तो वे प्रसन्नता पूर्वक बँध गये। लगता है श्री तैलंग स्वामी भी सामाजिक नियमोपनियमों की अवहेलना नहीं करना चाहते थे पर यह प्रदर्शित करना आवश्यक भी था कि योग और अध्यात्म की शक्ति भौतिक शक्तियों से बहुत चढ़-बढ़ कर है तभी तो वे दो बार पुलिस को छकाने के बाद इस प्रकार चुपचाप ऐसे बैठे रहे मानों उनको कुछ पता ही न हो। हथकड़ी डालकर पुलिस तैलंग स्वामी को पकड़ ले गई और हवालात में बंद कर दिया। इन्सपेक्टर रात गहरी नींद सोया क्योंकि उसे स्वामी जी गिरफ्तारी मार्के की सफलता लग रही थी।
प्रस्तुत घटना “मिस्ट्रीज आँ इंडिया इट्स योगीज” नामक लुई-द-कार्टा लिखित पुस्तक से अधिकृत की जा रही है। कार्टा नामक फ्राँसीसी पर्यटक ने भारत में ऐसी विलक्षण बातों की सारे देश में घूम-घूम कर खोज की। प्रसिद्ध योगी स्वामी योगानंद ने भी उक्त घटना का वर्णन अपनी पुस्तक “आटो बाई ग्राफी आ योगी” के 31 वे परिच्छेद में किया है।
प्रातः काल ठंडी हवा बह रही थी थाने जी हवालात की तरफ की तरफ आगे बढ़े तो पसीने में डूब गया- जब उन्होंने योगी तैलंग को हवालात की छत पर मजे से टहलते और वायु सेवन करते देखा। हवालात के दरवाजे बंद थे, ताला भी लग रखा थी। फिर यह योगी छत पर कैसे पहुँच गया ? अवश्य ही संतरी की बदमाशी होगी। उन बेचारे संतरियों ने बहुतेरा कहा कि हवालात का दरवाजा एक क्षण को खुला नहीं फिर पता नहीं साधु महोदय छत पर कैसे पहुँच गये। वे इसे योग की महिमा मान रहे थे पर इन्सपेक्टर उसके लिए बिलकुल तैयार नहीं था आखिर योगी को फिर हवालात में बंद किया गया। रात दरवाजे में लगे ताले को सील किया गया चारों तरफ पहरा लगा और ताली लेकर थानेदार थाने में ही सोया। सवेरे बड़ी जल्दी कैदी की हालत देखने उठे तो फिर शरीर में काटो तो खून नहीं। सील बेद ताला बाकायदा बंद। सन्तरी पहरा भी दे रहे उस पर भी तैलंग स्वामी छत पर बैठे प्राणायाम का अभ्यास कर रहे। थानेदार की आँखें खुली की खुली रह गईं उसने तैलंग स्वामी को आखिर छोड़ ही दिया।
श्री तैलंग स्वामी के बारे में कहा जाता है कि जिस प्रकार जलते हुये तेज कड़ाहे में खौल रहे तेल में पानी के छींटे डाले जाएं तो तेल की ऊष्मा बनाकर पलक मारते दूर उड़ा देती है। उसी प्रकार विष खाते समय एक बार आँखें जैसी झपकती पर न जाने कैसी आग उनके भीतर थी कि विष का प्रभाव कुछ ही देर में पता नहीं चलता कहाँ चला गया। एक बार एक आदमी को शैतानी सूझी चूने के पानी को लेजाकर स्वामी जी के सम्मुख रख दिया और कहा महात्मन् ! आपके लिए बढ़िया दूध लाया हूँ स्वामी जी उठाकर पी गये उस चूने के पानी को, और अभी कुछ ही क्षण हुये थे कि कराहने और चिल्लाने लगा वह आदमी जिसने चूने का पानी पिलाया था। स्वामी जी के पैरों में गिरा, क्षमा याचना की तब कहीं पेट की जलन समाप्त हुई। उन्होंने कहा भाई मेरा कसूर नहीं है यह तो न्यूटन का नियम है कि हर क्रिया की एक प्रतिक्रिया अवश्य है। उसकी दिशा उलटी और ठीक क्रिया की ताकत कितनी होती है।
मनुष्य शरीर एक यंत्र, प्राण उसकी ऊर्जा, ईंधन आवा शक्ति, मन इंजन और ड्राइवर चाहे जिस प्रकार के अद्भुत कार्य लिए जा सकते हैं इस शरीर से भौतिक विज्ञान से भी अद्भुत पर यह सब शक्तियाँ और सामर्थ्य योग विद्या, योग साधना में सन्निहित हैं जिन्हें अधिकारी पात्र ही पाते और आनन्द लाभ प्राप्त करते है।
रामकृष्ण परमहंस, लाहिड़ी महाशय जैसे संत आए मिलने
ये अनेकों सिद्धियों के स्वामी थे। कई ऐसी कथाएं हैं कि इन्हें किसी मृत व्यक्ति के बिलखते परिवार को देखकर शव को छुआ भर और वह जीवित हो गया। इनसे मिलने महान विभूतियां वाराणसी आईं। इनमें लोकनाथ ब्रह्मचारी, बेनीमाधव ब्रह्मचारी, रामकृष्ण परमहंस, विवेकानंद, महेंद्रनाथ गुप्त, लाहिड़ी महाशय, स्वामी अभेदानंद, प्रेमानंद, भास्करानंद, विशुद्धानंद और साधक वामाखेपा जैसी आध्यात्मिक विभूतियां प्रमुख हैं।
रामकृष्ण परमहंस ने दी ‘सचल महादेव’ की उपाधि
बताते हैं रामकृष्ण परमहंस ने जब तैलंग स्वामी को देखा तो कह उठे, मैंने देखा कि साक्षात ब्रह्मांड के स्वामी इनके माध्यम से जनता के सामने प्रकट हुए हैं। वह ज्ञान की चरम अवस्था पर हैं। उनमें देह का बोध बचा ही नहीं है। ऐसी गर्म रेत पर जिस पर पैर रखते ही जल जाए उस पर यह आराम से लेटे रहते हैं। तैलंग स्वामी सही मायनों में परमहंस हैं। उनकी उपस्थिति मात्र से बनारस प्रकाशित हो रही है। यह वाराणसी के सचल महादेव हैं।’
एक बार की बात है। काशी से राजा का एक अफसर नाव द्वारा राम नगर से बनारस आ रहा था। उस समय तैलंग स्वामी पद्मासन लगा कर जल के ऊपर तैर रहे थे। उस अफसर ने मल्लाहों से इनके विषय में पूछा और प्रशंसा सुनकर इनको अपनी नाव में बैठा लिया। उसने इनसे कुछ प्रश्न किये, पर स्वामी जी चुपचाप गूँगे बहरे की तरह बैठे रहे। जब नाव बीच धारा में पहुंची तो स्वामी जी ने उस अफसर की तलवार, जो बड़ी सुन्दर और बहुमूल्य थी, देखने को माँगी। न जाने कैसे वह उसी समय हाथ से छूट कर गंगाजी में गिर पड़ी। इस पर वह अफसर बड़ा नाराज हुआ, क्योंकि वह उसे किसी बड़े अंगरेज की तरफ से भेंट स्वरूप प्राप्त हुई थी। इतने में नाव किनारे पर आ लगी। वहाँ स्वामी जी का एक मुख्य शिष्य उपस्थित था। उसने अफसर को गुस्सा होकर बकते हुये देखा तो कहा कि “आप नाराज न हों, मैं गोताखोरों को बुलाकर गंगाजी में से तलवार निकलवा दूँगा।”
स्वामी जी ने जब देखा कि उनका शिष्य बहुत दुखी हो रहा है तो उन्होंने गंगाजी में हाथ डाला और तीन तलवारें निकाल कर अफसर के हाथ में रखीं कि इनमें से जो तुम्हारी हो उसे पहिचान कर ले लो। यह चमत्कार देख कर अफसर तो भौंचक्का रह गया और अपने अपराध के लिये क्षमा माँगने लगा। अफसर ने अपनी तलवार पहिचान कर लें ली और शेष दो तलवारें स्वामी जी ने पुनः पानी में फेंक दी।
एक दिन पृथ्वीगिरि नाम के साधु का शिष्य इन से मिलने को आया। उस समय स्वामी जी के पास बहुत से व्यक्ति बैठे हुये थे। थोड़ी देर में ये दोनों, लोगों के देखते-देखते अदृश्य हो गये। लगभग आध घंटे बाद स्वामी जी तो अपने स्थान पर फिर दिखाई देने लगे, पर पृथ्वीगिरि का शिष्य वहाँ दिखलाई न पड़ा।
तैलंग स्वामी एक सिद्ध योगी थे, यह ऊपर दिये चमत्कारों से भली प्रकार विदित होता है। उनमें हर तरह की बड़ी-बड़ी शक्तियाँ थीं, पर उन्होंने उनके द्वारा सिवाय लोगों के उपकार के अपकार कभी नहीं किया और अपने साथ शत्रु भाव रखने वालों को भी कभी किसी प्रकार की हानि नहीं पहुँचाई ।
तैलंग स्वामी एक सिद्ध योगी थे, यह ऊपर दिये चमत्कारों से भली प्रकार विदित होता है। उनमें हर तरह की बड़ी-बड़ी शक्तियाँ थीं, पर उन्होंने उनके द्वारा सिवाय लोगों के उपकार के अपकार कभी नहीं किया और अपने साथ शत्रु भाव रखने वालों को भी कभी किसी प्रकार की हानि नहीं पहुँचाई इससे यह भी प्रकट होता है कि वे केवल योगी ही न थे वरन् एक सच्चे सन्त और साधु भी थे। अपनी मृत्यु का समय आने पर उन्होंने अपने सब शिष्यों और भक्तों को एक दिन पहले ही उसकी सूचना दे दी थी। उसके अनुसार संवत् 1944 (सन 1887) की पौष सुदी 11 के दिन संध्या के समय उन्होंने योगासन पर बैठ कर चित्त को एकाग्र करके देह त्याग किया। ऐसा कहा जाता है कि उस समय उनकी आयु करीब 300 वर्ष की थी।