सुप्रभातम्:आज के संदर्भ में सनातन धर्म ग्रंथों में स्वच्छता के निर्देश प्रासंगिक हैं

साफ-सफाई एक अच्छी आदत है। “स्वस्थ शरीर में स्वस्थ मानसिकता का विकास होता है”। हमें खुद को, घर, अपने आसपास, समाज, शहर, उद्यान और पर्यावरण आदि को रोज स्वच्छ रखना चाहिए।

Uttarakhand

हिमशिखर खबर ब्यूरो।

हमारे ऋषि- मुनि अत्यंत दूरदर्शी थे। उन्होंने हजारों वर्षों पूर्व वेदों व पुराणों में स्वच्छता रखने के लिए स्पष्ट निर्देश दे रखें हैं –

1. लवणं व्यञ्जनं चैव घृतं तैलं तथैव च ।
लेह्यं पेयं च विविधं हस्तदत्तं न भक्षयेत् ।।
अर्थात – नमक, घी, तेल, चावल, एवं अन्य खाद्य पदार्थ चम्मच से परोसना चाहिए हाथों से नहीं।

2. अनातुरः स्वानि खानि न स्पृशेदनिमित्ततः ।
अर्थात – अपने शरीर के अंगों जैसे आँख, नाक, कान आदि को बिना किसी कारण के छूना नही चाहिए।

3. अपमृज्यान्न च स्न्नातो गात्राण्यम्बरपाणिभिः ।।
अर्थात – एक बार पहने हुए वस्त्र धोने के बाद ही पहनना चाहिए। स्नान के बाद अपने शरीर को शीघ्र सुखाना चाहिए।

4. हस्तपादे मुखे चैव पञ्चाद्र भोजनं चरेत्
नाप्रक्षालितपाणिपाद भुञ्जीत ।।
अर्थात – अपने हाथ, मुहँ व पैर स्वच्छ करने के बाद ही भोजन करना चाहिए।

5. स्न्नानाचारविहीनस्य सर्वाः स्युः निष्फलाः क्रियाः ।।

अर्थात – बिना स्नान व शुद्धि के यदि कोई कर्म किये जाते है तो वो निष्फल रहते हैं।

6. न धारयेत् परस्यैवं स्न्नानवस्त्रं कदाचन ।। 

स्नान के बाद अपना शरीर पोंछने के लिए किसी अन्य द्वारा उपयोग किया गया वस्त्र (टॉवेल) उपयोग में नहीं लाना चाहिये।

7. अन्यदेव भवद्वास शयनीये नरोत्तम ।
अन्यद् रथ्यासु देवानाम अर्चायाम् अन्यदेव हि ।।

अर्थात – पूजन, शयन एवं घर के बाहर जाते समय अलग- अलग वस्त्रों का उपयोग करना चाहिए।

8. तथा न अन्यधृतं वस्त्र धार्यम् ।
अर्थात – दूसरे द्वारा पहने गए वस्त्रों को नही पहनना चाहिए।

9. न अप्रक्षालितं पूर्वधृतं वसनं बिभृयाद् ।
अर्थात – एक बार पहने हुए वस्त्रों को स्वच्छ करने के बाद ही दूसरी बार पहनना चाहिए।

10. न आद्रं परिदधीत ।।
अर्थात – गीले वस्त्र न पहनें।

सनातन धर्म ग्रंथों के माध्यम से ये सभी सावधानियां समस्त भारतवासियों को हजारों वर्षों पूर्व से सिखाई जाती रही है। इस पद्धति से हमें अपनी व्यक्तिगत स्वच्छता को बनाये रखने के लिए सावधानियां बरतने के निर्देश तब दिए गए थे जब आज के युग के सूक्ष्मदर्शी (माइक्रोस्कोप) नहीं थे। लेकिन हमारे पूर्वजों ने वैदिक ज्ञान का उपयोग कर धार्मिकता व सदाचरण का अभ्यास दैनिक जीवन में स्थापित किया था। आज भी ये सावधानियां अत्यन्त प्रासंगिक है। आज के संदर्भ में अत्यंत उपयोगी भी हैं। अतएव इसका पालन सदैव करना चाहिए

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