ऐसे कई लोग हैं जिनके बारे में दावा किया जाता है कि वे हजारों वर्षों से जीवित हैं। इसी तरह महावतार बाबा के बारे में कहा जाता है कि वे पिछले 2000 वर्षों से जीवित हैं और हिमालय की एक गुफा में आज भी उन्हें देखा जा सकता है। आओ जानते हैं उनके बारे में रोचक जानकारी।
हिमशिखर धर्म डेस्क
उनकी उम्र दो हजार साल से ज़्यादा है, लेकिन लगते हैं 18 से भी कम। सदियों से योगियों के मार्गदर्शक। दुनिया की चकाचौंध से दूर हिमालय पर अपने भक्तों और मानवता के कल्याण में लीन हैं। इंटरनेट पर उनके बारे में कोई ख़ास जानकारी मौजूद नहीं। वह महावतार बाबा हैं।
सबसे पहले परमहंस योगानंद ने अपनी क़िताब योगी कथामृत में बाबाजी के बारे में बताया। योगानंद जी ने लिखा है, ‘इतिहास में बाबाजी का कहीं कोई उल्लेख नहीं। किसी भी शताब्दी में बाबाजी कभी जनसाधारण के सामने प्रकट नहीं हुए। उनकी योजनाओं में चकाचौंध के लिए कोई जगह नहीं। सृष्टा की तरह ही बाबाजी भी विनम्र गुमनामी में अपना काम करते रहते हैं। वह परामुक्त अवस्था में पहुंच चुके हैं।
कहा जाता है कि महावतार बाबाजी के साथ पहली मुलाकात 1861 में हुई थी, जब लाहिड़ी महाशय को ब्रिटिश सरकार के लेखाकार के रूप में नौकरी पर रानीखेत तैनात कर दिया गया था। एक दिन रानीखेत से ऊपर दूनागिरी की पहाड़ियों में घूमते समय उसने किसी को अपना नाम पुकारते सुना। आवाज़ के पीछे-पीछे ऊपर पहाड़ पर चलते हुए उसकी मुलाकात “एक ऊंचे कद के तेजस्वी साधु” से हुई। वह यह जानकर चकित थे कि साधु को उनका नाम पता है। यह योगी महावतार बाबाजी थे।
महावतार बाबाजी ने महाशय लाहिड़ी को बताया कि वह अतीत में उनके गुरु थे, फिर उनको क्रिया योग में दीक्षित किया और लाहिरी को निर्देश दिया कि वह दूसरों को दीक्षित करना आरंभ करें।
लाहिरी महावतार बाबाजी के साथ रहना चाहते थे लेकिन उन्होंने उन्हें दुनिया में वापस जाकर क्रिया योग सिखाने को कहा और कि “क्रिया योग साधना दुनिया में उनकी (लाहिरी) की उपस्थिति के माध्यम से लोगों में फैलेगी।”
लाहिड़ी महाशय ने बताया कि महावतार बाबाजी ने अपना नाम या पृष्ठभूमि नहीं बतायी इसलिए लाहिरी ने उन्हें “महावतार बाबाजी” की पदवी दी।
लाहिड़ी महाशय की महावतार बाबाजी के साथ कई बार मिलना हुआ। जिनके बारे में कई किताबों में लिखा गया है, इनमें अन्य के साथ परमहंस योगानंद की एक योगी की आत्मकथा, योगीराज श्यामा चरण लाहिड़ी महाशय (लाहिड़ी की जीवनी) और पूर्ण पुरुष: योगीराज श्री शाम चरण लाहिड़ी शामिल हैं।
अब सवाल उठता है कि बाबाजी कौन हैं और उनका जन्म कब हुआ? वह कब योग की उच्चतम सीमा में प्रवेश कर अवतार बन गए? इन सवालों का जवाब मुश्किल है। हालांकि, कुछ जानकारों की मानें तो ‘बाबाजी का जन्म 30 नवंबर साल 203 को तमिलनाडु के एक गांव में हुआ। इस गांव को आज परंगीपेट्टई के नाम से जानते हैं। यहां कावेरी नदी हिंद महासागर से मिलती है। परंगीपेट्टई, चिदंबरम के नटराज मंदिर से सिर्फ 17 किलोमीटर दूर है। ब्राह्मण परिवार में जन्मे इस बालक को माता-पिता ने नाम दिया, नागराज।’
बेहद आकर्षक व्यक्तित्व के धनी नागराज का एक बलूच व्यापारी ने तब अपहरण कर लिया, जब वह सिर्फ पांच साल के थे। वह व्यापारी नागराज को समुद्री रास्ते से कोलकाता ले गया। वहां नन्हे नागराज को दास के तौर पर एक अमीर शख़्स को बेच दिया गया। बच्चे का नया स्वामी एक दयालु व्यक्ति निकला, जिसने उसे मुक्त कर दिया। बालक नागराज घूमंतु साधुओं के एक समूह से जुड़ गए। संन्यासियों के साथ जगह-जगह घूमते हुए नागराज ने वेद, उपनिषद्, रामायण और महाभारत का अध्ययन कर लिया। धर्मशास्त्री के तौर पर उनकी ख्याति बढ़ने लगी। नागराज आत्मानुभूति चाहते थे, लेकिन बढ़ता नाम उनका ध्यान भटकाने लगा। सिर्फ 11 साल की छोटी-सी उम्र में उन्होंने वाराणसी से श्रीलंका के कटिरगामा की यात्रा कहीं पैदल तो कहीं नाव के ज़रिए पूरी की।
कटिरगामा में ही नागराज की मुलाकात संत बोगनाथर से हुई। नागराज उनके शिष्य बन गए। पेड़ के नीचे उन्होंने छह महीने तक बिना रुके यौगिक तप किया। गुरु बोगनाथर ने नागराज को योग के अगले चरण की शिक्षाएं दीं। इससे नागराज को सत्य की अनुभूति हुई। बोगनाथर ने अपने शिष्य को सिद्धांत योग सीखने के लिए महर्षि अगस्त्य के पास जाने का सुझाव दिया। बाबाजी कटिरगामा से तमिलनाडु की पोथिगई पर्वत श्रृंखला के कोरत्रल्लम पहुंचे, जो आज तिनवेली ज़िले का हिस्सा है। 48 दिन की लगातार साधना के बाद जब बाबाजी ढेर होने की कगार पर पहुंच गए, तभी महर्षि अगस्त्य प्रकट हुए और उन्होंने क्रिया कुंडलिनी प्राणायाम के रहस्य बताए।
महर्षि अगस्त्य ने बाबाजी को क्रिया कुंडलिनी प्राणायाम की बारीकियां बताईं। ‘बाबाजी को क्रिया बाबाजी नागराज, महावतार बाबाजी भी कहा जाता है। उनका दिव्य शरीर हमेशा सोलह साल का लगता है। अपने गुरु से सुने अनुभव के आधार पर परमहंस योगानंद जी ने उन्हें 25 साल का तेजस्वी युवा बताया है। उनके मजबूत शरीर का रंग गोरा, लंबाई मध्यम, बाल लंबे और आंखें काली हैं। बाबाजी का काम विशेष कार्यों को पूरा करने के लिए आने वाले संतों की मदद करना है। इस आधार से वह महावतार हुए।’
बाबाजी के बारे में दुनिया को ज़्यादा नहीं पता। पहली बार एक रहस्मयी और जादुई व्यक्तित्व पर प्रकाश डाला महान बंगाली संत श्यामचरण लाहिड़ी ने। लोग इन्हें प्यार से लाहिड़ी महाशय भी कहते हैं। बाबाजी ने लाहिड़ी महाशय के ज़रिए ही लुप्त हो चुके क्रिया योग को दोबारा आम लोगों तक पहुंचाया।
स्वामी योगानंद ने अपने आध्यात्मिक गुरु श्री युक्तेश्वर के सुनाए अनुभव के आधार पर लिखा है, ‘लाहिड़ी महाशय ब्रिटिशकाल में सेना में बतौर क्लर्क नौकरी करते थे। उनका अचानक तबादला दानापुर से रानीखेत हो गया। काम ख़त्म होने के बाद पहाड़ों में घूमते हुए एक दिन लाहिड़ी को लगा कि कोई उन्हें पुकार रहा है। वह द्रोणगिरी पर्वत पर पहुंचे। वहां एक तेजस्वी युवक ने इन्हें पिछला जन्म याद दिलाया और क्रिया योग की दीक्षा देकर वापस भेज दिया। ऐसा करने वाले कोई और नहीं बल्कि स्वयं बाबाजी ही थे।’ लाहिड़ी महाशय ही स्वामी युक्तेश्वर के गुरु थे। साल 1894 के प्रयाग कुंभ में बाबाजी युक्तेश्वरजी से मिले थे। उन्होंने लाहिड़ी महाशय को बता दिया था कि पश्चिम और पूर्व के बीच समन्वय के लिए जल्द ही एक शिष्य आएगा। वह शिष्य कोई और नहीं योगानंद ही थे। योगानंद ने एक चित्रकार से बाबाजी का एक चित्र भी बनवाया था।
परमहंस योगानंद को जब अमेरिका जाने का आध्यात्मिक आदेश मिला तो वह परेशान हुए। योगानंद लिखते हैं, ‘एक दिन अचानक बाबाजी मेरे सामने प्रकट हुए। उन्होंने आश्वासन दिया कि पश्चिम में तुम्हें संरक्षण मिलेगा।’
योगी नीलकंठन ने अपने अनुभव से बताया है, ‘ बद्रीनाथ तीर्थ के पास बाबाजी का पीठ (आश्रम) है। यहां बाबाजी तपस्या कर रहे हैं।’ स्वामी योगानंद ने द्विशरीरी संत के तौर पर प्रणवानंद की चर्चा की है। आत्मिक शुद्धि कर चुके उन्नत योगी ही सूक्ष्म रूप से मौजूद उनके पीठ तक पहुंच पाते हैं। कहते हैं, यहां पहुंचने के लिए बाबाजी की कृपा भी सबसे ज़रूरी है। बाबाजी मौन और अज्ञात रहकर अपने हज़ारों-लाखों शिष्यों और मानवता के कल्याण के लिए काम करते हैं।
बाबाजी मानवजाति के कल्याण के लिए व्याकुल रहने वाली आत्मा हैं। वह पश्चिम के कर्मवाद और पूर्व की आध्यात्मिकता का समन्वय कर एक मध्यमार्ग स्थापित करना चाहते हैं, ताकि दुनिया संघर्षों से मुक्त और सुखों से भरपूर हो सके। बाबाजी के बारे में कुछ भी जानना कौतूहल बढ़ाता है। बाबाजी को इस कल्प में सशरीर रहने का वरदान मिला है। अब उनकी आयु 2000 साल से ज्यादा है। गणना के हिसाब से एक कल्प एक हज़ार चतुर्युग का होता है। सतयुग, द्वापर, त्रेता और कलियुग के चक्र को चतुर्युग कहते हैं। सब जोड़ने के बाद पता चलता है कि एक कल्प 4 अरब 32 करोड़ वर्ष का होता है।