सुप्रभातम्: जानिए-बिना अन्न खाए सैकड़ों साल जिंदा रहने वाले बाबा की कहानी, बड़े बड़े नेता हुए नतमस्तक

भारत यूं ही नहीं ऋषि-मुनियों का देश रहा है। यहां संतों की भक्ति की शक्ति का एहसास लोगों को प्राचीन काल से ही है। भारत में ऐसे कई संत हुए हैं, जिन्हें दिव्य संत कहा गया है। आज हम आपको एक ऐसे दिव्य संत, सिद्ध पुरुष, कर्मयोगी के बारे में बताने जा रहे हैं, जिनका आशीर्वाद पाने के लिए देश-दुनिया के लोग उनके आश्रम पर आते थे। हम बात कर रहे हैं उत्तर प्रदेश के देवरिया जिले के चमत्कारी देवरहा बाबा की। देवरहा बाबा एक सिद्ध पुरुष व कर्मठ योगी थे। देवरहा बाबा ने कभी अपनी उम्र, तप, शक्ति व सिद्धि के बारे में कोई दावा नहीं किया। वे बिना पूछे ही सब कुछ जान लेते थे। आइए देवरहा बाबा के बारे में खास बात जानते हैं।

Uttarakhand

हाईलाइट्स

  • दूध और शहद पीकर जीते थे देवरहा बाबा
  • गोसेवा को सर्वोपरि-धर्म मानते थे बाबा
  • देवरहा बाबा का मानन था कि दिव्यभूमि भारत की समृद्धि गोरक्षा, गोसेवा के बिना संभव नहीं
  • सदा राम नाम का जाप किया करते थे

हिमशिखर धर्म डेस्क

यह बात है 1962 की। हरिद्वार में चल रहा था कुंभ मेला। इसी दौरान वैष्णव अखाड़े के महंत का हाथी पागल हो गया। हरिद्वार तब यूपी का हिस्सा था। मेले के एसपी ने मेरठ बटालियन के सूबेदार को आदेश दिया कि हाथी को गोली मार दो। कुंभ के पवित्र आयोजन में जीव हत्या को लेकर सूबेदार संशय में थे। लेकिन, अगर हाथी को नहीं मारते, तो वह बहुतों की जान ले सकता था। सूबेदार मेले में पहुंचकर देवरहा बाबा के पास आए। अपना धर्मसंकट बताया। कहते हैं कि बाबा ने उन्हें प्रसाद दिया और बोले, इसे ले जाकर हाथी को खिला दो, वह शांत हो जाएगा। सूबेदार हिचके और पूछा, ‘उसने हमला कर दिया तो?’ बाबा ने कहा, ‘तुम उसे प्रणाम करना।’ सूबेदार डरते हुए गए हाथी के पास। प्रणाम किया और प्रसाद में दिया आम आगे कर दिया। हाथी ने सूंड़ से आम लिया और शांत हो गया।

चमत्कार के ऐसे अनगिनत किस्से हैं, जिनका देवरहा बाबा के भक्त और अनुयायी ज़िक्र करते रहते हैं। यूपी के देवरिया ज़िले में आश्रम बनाने वाले देवरहा बाबा की जीवन यात्रा चमत्कारों और विलक्षण दावों से भरी पड़ी है। हालांकि, योगीराज और ब्रह्मर्षि की उपाधियों से लैस देवरहा बाबा ने न तो चमत्कारों का कभी दावा किया और न ही कभी दरबार लगाकर शक्ति प्रदर्शन।

उनके अनुयायियों में देश के दिग्गज राजनेताओं, राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री और मुख्यमंत्रियों तक की लंबी शृंखला थी। उनके समर्थक बताते हैं कि इस चमक-धमक से अप्रभावित देवरहा बाबा देवरिया में सरयू नदी के किनारे बांस के बने मचान पर रहते। उनका जन्म कब हुआ, कहां से आए, उनकी आयु क्या थी, यह हमेशा एक रहस्य रहा, जो आज भी अलग-अलग दांवों की गुत्थी में उलझा हुआ है। बताया जाता है कि वह वृंदावन से आए और देवरिया में आश्रम बनाकर रहने लगे। वह अष्टांग योग में सिद्ध थे और बदन में अमूमन एक वस्त्र लपेटकर ही बांस के 12 फीट ऊंचे मचान पर रहा करते थे।

भारत के उत्तर प्रदेश राज्य के देवरिया जनपद में एक योगी, सिद्ध महापुरुष एवं सन्तपुरुष थे जिनके दर्शन कर डॉ॰ राजेन्द्र प्रसाद, महामना मदन मोहन मालवीय, पुरुषोत्तमदास टंडन, जैसी विभूतियों ने स्वयं को कृतार्थ किया एवं एक श्रेष्ठ अनुभव प्राप्त किया था। पूज्य बाबा देवरहा महर्षि पतंजलि द्वारा प्रतिपादित अष्टांग योग में पारंगत थे।

निर्वाण तिथि:-

निर्वाण 19 जून 1990
वृन्दावन, उत्तर प्रदेश शांतचित्त स्थान वृन्दावन, उत्तर प्रदेश

सिद्ध संत देवरहा बाबा की जीवनी:-

देवरहा बाबा का जन्म अज्ञात है। यहाँ तक कि उनकी सही उम्र का आकलन भी नहीं है। वह यूपी के “नाथ” नदौली ग्राम,लार रोड, देवरिया जिले के रहने वाले थे। मंगलवार, 19 जून सन् 1990 को योगिनी एकादशी के दिन अपना प्राण त्यागने वाले इन बाबा के जन्म के बारे में संशय है। कहा जाता है कि वह करीब 900 साल तक जिन्दा थे। (बाबा के संपूर्ण जीवन के बारे में अलग-अलग मत है, कुछ लोग उनका जीवन 250 साल तो कुछ लोग 500 साल मानते हैं।)

पूरे जीवन निर्वस्त्र रहने वाले बाबा धरती से 12 फुट उंचे लकड़ी से बने बॉक्स में रहते थे। वह नीचे केवल सुबह के समय स्नान करने के लिए आते थे। इनके भक्त पूरी दुनिया में फैले हैं। राजनेता, फिल्मी सितारे और बड़े-बड़े अधिकारी उनकी शरण में आते रहते थे।

देवरहा बाबा ने हिमालय की कंदराओं में अनेक वर्षों तक अज्ञात रूप में रहकर साधना की। कठोर तपस्या कर सिद्धि प्राप्त बाबा देवरहा वहां से पूर्वी उत्तर प्रदेश के देवरिया नामक स्थान पर पहुंचे। वहां वर्षों निवास करने के कारण उनका नाम “देवरहा बाबा” पड़ा। देवरहा बाबा ने देवरिया जनपद के सलेमपुर तहसील में मईल (एक छोटा शहर) से लगभग एक कोस की दूरी पर सरयू नदी के किनारे एक मचान पर अपना डेरा डाल दिया था और धर्म-कर्म करने लगे थे।

देवरहा बाबा परम रामभक्त थे, देवरहा बाबा के मुख में सदा राम नाम का वास था। वो भक्तो को राम मंत्र की दीक्षा दिया करते थे। वो सदा सरयू के किनारे रहा करते थे। उनका कहना था।

एक लकड़ी ह्रदय को मानों दूसर राम नाम पहचानों।
राम नाम नित उर पे मारो ब्रह्म दिखे संशय न जानो।

देवरहा बाबा जनसेवा तथा गोसेवा को सर्वोपरि-धर्म मानते थे तथा प्रत्येक दर्शनार्थी को लोगों की सेवा, गोमाता की रक्षा करने तथा भगवान की भक्ति में रत रहने की प्रेरणा देते थे। देवरहा बाबा श्री राम और श्री कृष्ण को एक मानते थे और भक्तो को कष्ट से मुक्ति के लिए कृष्ण मंत्र भी देते थे।

ऊं कृष्णाय वासुदेवाय हरये परमात्मने
प्रणत: क्लेश नाशाय, गोविन्दाय नमो-नम:“।।

बाबा कहते थे-“जीवन को पवित्र बनाए बिना, ईमानदारी, सात्विकता-सरसता के बिना भगवान की कृपा प्राप्त नहीं होती। अत: सबसे पहले अपने जीवन को शुद्ध-पवित्र बनाने का संकल्प लो।

वे प्राय: गंगा या यमुना तट पर बनी घास-फूस की मचान पर रहकर साधना किया करते थे। दर्शनार्थ आने वाले भक्तजनों को वे सद्मार्ग पर चलते हुए अपना मानव जीवन सफल करने का आशीर्वाद देते थे। वे कहते, “इस भारतभूमि की दिव्यता का यह प्रमाण है कि इसमें भगवान श्रीराम और श्रीकृष्ण ने अवतार लिया है। यह देवभूमि है, इसकी सेवा, रक्षा तथा संवर्धन करना प्रत्येक भारतवासी का कर्तव्य है।”

प्रयागराज में सन् 1989 में महाकुंभ के पावन पर्व पर बाबा ने अपना पावन संदेश देते हुए कहा था-“दिव्यभूमि भारत की समृद्धि गोरक्षा, गोसेवा के बिना संभव नहीं होगी। गोहत्या का कलंक मिटाना अत्यावश्यक है।”

पूज्य बाबा ने योग विद्या के जिज्ञासुओं को हठयोग की दसों मुद्राओं का प्रशिक्षण दिया। वे ध्यान योग, नाद योग, लय योग, प्राणायाम, त्राटक, ध्यान, धारणा, समाधि आदि की साधन पद्धतियों का जब विवेचन करते तो बड़े-बड़े धर्माचार्य उनके योग सम्बंधी ज्ञान के समक्ष नतमस्तक हो जाते थे।

बाबा ने भगवान श्रीकृष्ण की लीला भूमि वृन्दावन में यमुना तट पर स्थित मचान पर चार वर्ष तक साधना की। सन् 1990 की योगिनी एकादशी (19 जून) के पावन दिन उन्होंने निर्वाण प्राप्त किया।

देवरहा बाबा का व्यक्तित्व:-

बहुत ही कम समय में देवरहा बाबा अपने कर्म एवं व्यक्तित्व से एक सिद्ध महापुरुष के रूप में प्रसिद्ध हो गए। बाबा के दर्शन के लिए प्रतिदिन विशाल जन समूह उमड़ने लगा तथा बाबा के सानिध्य में शांति और आनन्द पाने लगा। बाबा श्रद्धालुओं को योग और साधना के साथ-साथ ज्ञान की बातें बताने लगे। बाबा का जीवन सादा और एकदम संन्यासी था। बाबा भोर में ही स्नान आदि से निवृत्त होकर ईश्वर ध्यान में लीन हो जाते थे और मचान पर आसीन होकर श्रद्धालुओं को दर्शन देते और ज्ञानलाभ कराते थे। कुंभ मेले के दौरान बाबा अलग-अलग जगहों पर प्रवास किया करते थे। गंगा-यमुना के तट पर उनका मंच लगता था। वह 1-1 महीने दोनों के किनारे रहते थे।

जमीन से कई फीट ऊंचे स्थान पर बैठकर वह लोगों को आशीर्वाद दिया करते थे। बाबा सभी के मन की बातें जान लेते थे। उन्होंने पूरे जीवन कुछ नहीं खाया। सिर्फ दूध और शहद पीकर जीते थे। श्रीफल का रस उन्हें बहुत पसंद था।

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