सुप्रभातम् : जानिए भगवान दत्तात्रेय के 24 गुरुओं की सीख

भगवान दत्तात्रेय ने 24 गुरु बनाए। वे कहते थे कि जिस किसी से भी जितना सीखने को मिले, हमें अवश्य ही उन्हें सीखने का प्रयत्न अवश्य करना चाहिए। दत्तात्रेय ने इन 24 गुरुओं से कई महत्वपूर्ण सीख प्राप्त की थीं। अगर हम दत्तात्रेय भगवान के जीवन की सीख को अपनाएंगे तो हमारी भी कई समस्याएं खत्म हो सकती हैं। जानिए ये 24 गुरु कौन-कौन थे और उनसे कौन सी सीख ली जा सकती है…

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पृथ्वी – भगवान दत्तात्रेय ने पृथ्वी से सहनशीलता का गुण सीखा था। पृथ्वी अच्छे-बुरे हर प्राणी का भार सहन करती है, पृथ्वी पर कई तरह के प्रहार किए जाते हैं, खनन होते हैं, लेकिन पृथ्वी इन्हें सहन करती रहती है।

कबूतर – दत्तात्रेय जी ने देखा कि कबूतर का जोड़ा जाल में फंसे बच्चों को देखकर खुद भी जाल में फंस जाता है। कबूतर से दत्तात्रेय ने ये सीख ली कि बहुत ज्यादा मोह दु:ख का कारण बनता है।

सूर्य – दत्तात्रेय ने सूर्य में देखा कि ये अलग-अलग माध्यमों से अलग-अलग तरह का दिखाई देता है। हमारी आत्मा भी एक ही है, लेकिन ये भी सूर्य की तरह ही कई रूपों में दिखाई देती है।

वायु – जिस तरह अच्छी या बुरी जगह पर बहने के बाद वायु का मूल रूप नहीं बदलता है, ठीक उसी तरह अच्छे या बुरे लोगों के साथ रहने पर भी हमें अपने गुण छोड़ना नहीं चाहिए।

हिरण – हिरण से यह सीखें कि हमें कभी भी मौज-मस्ती में इतना लापरवाह नहीं होना चाहिए कि हम परेशानियों में फंस जाएं। हिरण मौज-मस्ती में इतना खो जाता है कि उसे आसपास शेर के होने का आभास ही नहीं होता है।

समुद्र – समुद्र की तरह ही हमें भी उतार-चढ़ाव की वजह से रुकना नहीं चाहिए। हमें हर स्थिति में आगे बढ़ते रहना चाहिए।

पतंगा – पतंगा आग की ओर आकर्षित होता है और जल जाता है। हमें इससे सीख लेनी चाहिए कि कभी भी मोह में फंसना नहीं चाहिए।

हाथी – हाथी हथिनी के संपर्क में आते ही उस पर मोहित हो जाता है और सब कुछ भूल जाता है। हाथी से सीख लें कि संन्यासी को स्त्रियों से बहुत दूर रहना चाहिए, वर्ना वह अपने तप से भटक सकता है।

आकाश – आकाश से सीख सकते हैं कि हर स्थिति में एक समान रहना चाहिए। देश, काल, परिस्थिति जैसी भी आकाश एक समान रहता है।

जल – दत्तात्रेय ने जल से सीखा था कि हमें हमेशा पवित्र रहना चाहिए।

छत्ते से शहद निकालने वाला – मधुमक्खियां शहद इकट्ठा करती है और एक दिन छत्ते से शहद निकालने वाला सारा शहद ले जाता है। इस बात से ये सीखा जा सकता है कि आवश्यकता से अधिक चीजों को एकत्र नहीं करना चाहिए, वर्ना कोई दूसरा उन चीजों को हमारे पास से ले जाएगा।

मछली – स्वाद का लोभ न रखें। मछली किसी कांटे में फंसे मांस के टुकड़े के लोभ में आकर खुद कांटे में फंस जाती है।

कुरर पक्षी – कुरर पक्षी से सीखें कि किसी चीज को हमेशा अपने पास रखने की सोच छोड़ देना चाहिए। कुरर पक्षी मांस के टुकड़े को चोंच में दबाए रहता है, लेकिन उसे खाता नहीं है। दूसरे बलवान पक्षी उस मांस के टुकड़े को छिन लेते हैं।

बालक – छोटे बच्चे से सीख लें कि परिस्थितियों कैसी भी हों, हमेशा चिंतामुक्त और प्रसन्न रहें।

आग – आग अलग-अलग लकडिय़ों के बीच रहने के बाद भी एक जैसी ही नजर आती है। हमें भी परिस्थिति के हिसाब से ढल जाना चाहिए।

चंद्रमा – घटने-बढ़ने से भी चंद्रमा की चमक और शीतलता बदलती नहीं है, ठीक इसी तरह हमारी आत्मा भी बदलती नहीं है।

कुमारी कन्या – दत्तात्रेय ने कुमारी कन्या से सीख ली कि बिना शोर किए अपना काम करते रहें। दत्तात्रेय ने धान कूटती हुई एक कन्या को देखा। धान कूटते समय उस कन्या की चूड़ियां आवाज कर रही थीं। तब उस कन्या ने चूड़ियों की आवाज बंद करने के लिए चूड़ियां ही तोड़ दीं। दोनों हाथों में बस एक-एक चूड़ी रहने दी। इसके बाद कन्या ने बिना शोर किए धान कूट लिया।

शरकृत या तीर बनाने वाला – दत्तात्रेय ने एक तीर बनाने वाले को देखा जो कि तीर बनाने में इतना खोया हुआ था कि उसके पास से राजा की सवारी निकल गई, लेकिन उसे मालूम भी नहीं हुआ। हमें भी अपने काम में खोए रहना चाहिए।

सांप – दत्तात्रेय ने सांप से सीखा कि किसी भी संन्यासी को अकेले ही जीवन व्यतीत करना चाहिए और जगह-जगह ज्ञान बांटते रहना चाहिए।

मकड़ी – मकड़ी जाल बनाती है, उसमें रहती है और अंत में पूरे जाल को खुद ही निगल लेती है। भगवान भी अपनी माया से सृष्टि की रचना करते हैं और अंत में उसे समेट लेते हैं।

भृंगी कीड़ा – इस कीड़े से दत्तात्रेय ने सीखा कि अच्छी या बुरी, जहां जैसी सोच में मन लाएंगे मन वैसा ही हो जाता है।

भौंरा या मधुमक्खी – मधुमक्खी और भौरें अलग-अलग फूलों से पराग ले लेते हैं, हमें भी जहां से सार्थक बात सीखने को मिले उसे ग्रहण कर लेना चाहिए।

अजगर – अजगर से संतोष में रहना सीखना चाहिए।

पिंगला वेश्या – उस समय एक पिंगला नाम की वेश्या थी। दत्तात्रेय ने उससे सीख ली थी कि सिर्फ पैसों को महत्व नहीं देना चाहिए। जब पिंगला के मन में वैराग्य जागा तो उसे समझ आया कि पैसों में नहीं बल्कि परमात्मा के ध्यान में असली सुख है।

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