सुप्रभातम्: जानिए श्राद्ध कर्म विधि में कौवे को भोजन क्यों कराया जाता है ?

हिमशिखर धर्म डेस्क

Uttarakhand

श्राद्ध कर्म विधि – हिन्दू धर्म में पितरों की आत्मिक शांति के लिए श्राद्ध करने का रिवाज है। जब यह श्राद कार्य पूरे विधि से किया जाता है, तभी पितृ की आत्मा शांत होती है। श्राद्ध कर्म विधि में कौवे को भोजन परोसा जाता है।

श्राद्ध कर्म विधि अनुसार कौवे को थाली में भोजन परोसा जाता है लेकिन यह भोजन किस उद्देश्य से परोसा जाता है, यह बात बहुत कम लोग जानते है। आइये जानते है श्राद्ध कर्म विधि में कौवे को भोजन क्यों परोसते है।

पुराणों व ग्रंथो में कौवे को एक विशेष पक्षी के रूप में बताया गया है।

प्राचीन ग्रंथो और महाकाव्यों में इस कौवे से जुड़ी कई रोचक कथाएँ और मान्यताएं भी लिखी हुई है। पुराणों में भी कौवों का बहुत महत्व बताया गया है। कौवों की मौत कभी बीमारी से या वृद्ध होकर नहीं होती है। कौवे की मौत हमेशा आकस्मिक ही होती है और जब एक कौआ मरता है, तो उस दिन उस कौवे के साथी खाना नहीं खाते है।

कौवे की खासियत है कि वह कभी भी अकेले भोजन नहीं करते है। वह हमेशा अपने साथी के संग मिल बांटकर ही भोजन करता है।

इस पक्षी का श्राद्ध कर्म विधि में भी विशेष महत्व होता है। श्राद्ध में घर में बने सारे भोजन और पकवान निकाल कर एक थाली में रखकर इस कौवे को परोसे जाते है।

मान्यतानुसार यह पक्षी यमराज का दूत होता है, जो श्राद्ध में आकर अन्न की थाली देखकर यम लोक जाकर हमारे पितृ को श्राद्ध में परोसे गए भोजन की मात्रा और खाने की वस्तु को देखकर हमारे जीवन की आर्थिक स्थिति और सम्पन्नता को बतलाता है। जिसको जानकार पितृ को संतुष्टि होती है और उनकी आत्मा को शान्ति मिलती है।

अपने वंशज के खानपान देखकर पितृ को वर्तमान पीढ़ी के सुखी जीवन का आभास होता है। जिसको सुनकर पितृ संतुष्ट और खुश होते है। इसलिए श्राद्ध कर्म विधि में कौवे को भोजन दिया जाता है।

कौए को अतिथि-आगमन का सूचक और पितरों का आश्रम स्थल माना जाता है। पुराणों की एक कथा के अनुसार इस पक्षी ने अमृत का स्वाद चख लिया था इसलिए मान्यता के अनुसार इस पक्षी की कभी स्वाभाविक मृत्यु नहीं होती। कोई बीमारी एवं वृद्धावस्था से भी इसकी मौत नहीं होती है।

इसकी मृत्यु आकस्मिक रूप से ही होती है। जिस दिन किसी कौए की मृत्यु हो जाती है उस दिन उसका कोई साथी भोजन नहीं करता है। कौआ अकेले में भी भोजन कभी नहीं खाता, वह किसी साथी के साथ ही मिल-बांटकर भोजन ग्रहण करता है।

कौए की योग्यता कौआ लगभग २० इंच लंबा, गहरे काले रंग का पक्षी है जिसके नर और मादा एक ही जैसे होते हैं। कौआ बगैर थके मीलों उड़ सकता है। कौए को भविष्य में घटने वाली घटनाओं का पहले से ही आभास हो जाताहै।

पितरों का आश्रय स्थल श्राद्ध पक्ष में कौओं का बहुत महत्व माना गया है। इस पक्ष में कौओं को भोजन कराना अर्थात अपने पितरों को भोजन कराना माना गया है। शास्त्रों के अनुसार कोई भी क्षमतावान आत्मा कौए के शरीर में स्थित होकर विचरण कर सकती है।

कौए को भोजन कराने का लाभ भादौ महीने के १६ दिन कौआ हर घर की छत का मेहमान बनता है। ये १६ दिन श्राद्ध पक्ष के दिन माने जाते हैं।

कौए एवं पीपल को पितृ प्रतीक माना जाता है। इन दिनों कौए को खाना खिलाकर एवं पीपल को पानी पिलाकर पितरों को तृप्त किया जाता है।

विष्णु पुराण में श्राद्ध पक्ष में भक्ति और विनम्रता से यथाशक्ति भोजन कराने की बात कही गई है। कौए को पितरों का प्रतीक मानकर श्राद्ध पक्ष के १६ दिनों तक भोजन कराया जाता है।

माना जाता है कि कौए के रूप में हमारे पूर्वज ही भोजन करते हैं। कौए को भोजन कराने से सभी तरह का पितृ और कालसर्प दोष दूर हो जाता है।

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