हिमशिखर धर्म डेस्क
बड़े भाग मानुष तन पावा। सुर दुर्लभ सद् ग्रन्थन्हि गावा।।
साधन् धाम मोक्ष कर द्वारा। पाई न जेहिं परलोक सँवारा।।
।।रा०च०मा०/उ०का०/42।।
अर्थात मनुष्य का शरीर बड़े ही भाग्य से प्राप्त होता है, क्योंकि मानव शरीर पाना देवताओं के लिए भी दुर्लभ होता है। मानव शरीर के लिए देवता गण भी तरसते रहते हैं – लालायित रहते हैं।
ऐसा इसलिए कि मानव शरीर एक ऐसा शरीर है जो जीव को मोक्ष के दरवाजे तक पहुँचाने के लिए समस्त मोक्ष साधनों का धाम या घर है। इस मानव शरीर को पाकर भी जो मनुष्य अपना परलोक सँवार नहीं लेता यानी अपने जीव का उद्धार तथा मुक्ति-अमरता न पा लेता वही वहाँ परलोक में और यहाँ लोक में अपार दु:ख कष्ट पाता है।
संसार में हम देखते हैं कि कई बार मानव अपने सरल जीवन को जटिल बनाना देता है। खास तौर पर शरीर को लेकर वह कुछ ऐसा करता है कि जीवन और जटिल हो जाता है। दरअसल, अपने ही शरीर के प्रति स्वार्थी बनना और दूसरे के शरीर के प्रति भोगी हो जाना इंसान की फितरत है। चूंकि हम पूरी जिंदगी ज्यादातर मौकों पर शरीर पर ही टिके रहते हैं, इसलिए आगे जाकर कभी जीवन में आत्मा का महत्व समझ नहीं पाते।
हमारी आत्मा ने शरीर को वस्त्र की तरह पहन रखा है। वस्त्रनुमा इस देह को ही खुद समझ लेना जीवन को और अधिक जटिल बनाना है। रामजी ने वानर-भालुओं को विभीषण द्वारा विमान से बरसाए कपड़े पहनते हुए देखा और जो दृश्य उपस्थित हुआ, उस पर तुलसीदासजी नेे लिखा- ‘भालु कपिन्ह पट भूषन पाए। पहिरि पहिरि रघुपति पहिं आए।। नाना जिनस देखि सब कीसा। पुनि पुनि हंसत कोसलाधीसा।। सारे वानर-भालू कपड़े-गहने पहनकर रामजी के सामने आए तो उनको देखकर भगवान बार-बार खूब हंसे।
राम उन वानरों पर ही नहीं हंसे थे, आज हमारे ऊपर भी हंस रहे हैं। जब हम अपनी देह के प्रति समझ नहीं रखते तो ऊपर वाला हंसता है कि इन्होंने शरीर को ही सब कुछ मान लिया है, जबकि ये आत्मा हैं। जिसने देह के प्रति होश जगा लिया, उसे जीवन में क्या पकड़ना और क्या छोड़ना है, यह अच्छे से समझ में आ जाएगा। शरीर की सही समझ का दूसरा नाम स्वास्थ्य है..।