राम नाम का जप एक ऐसी औषधि के समान है जिसे अगर सच्चे ह्रदय से जपा जाए तो सभी आदि-व्याधि दूर हो जाती हैं, मन को परम शांति मिलती है।
हिमशिखर धर्म डेस्क
कल की आस सबसे बड़ी होती है। उम्मीद की धड़कन कभी बंद नहीं होनी चाहिए। जो इंसान जितना ज्यादा आशावादी है, वो उतना कम निराशा में घिरेगा। और जो मनुष्य जितना निरहंकारी है, वो उतना अधिक शांत भी रहेगा। एक दृश्य है, शंकरजी श्रीराम की स्तुति कर रहे हैं, राम राजसिंहासन पर बैठे हैं।
ये एक राजा का गुणगान नहीं हो रहा। ये एक आदर्श व्यक्ति के गुणों की चर्चा हो रही है, ताकि आगे आने वाली पीढ़ी इन गुणों को अपने भीतर उतार ले। इसलिए कहा गया, ‘तव नाम जपामि नमामि हरी। भव रोग महागद मान अरी।’ औषधि यानी दवाई हमारी सबसे अच्छी मित्र भी है, लेकिन यदि हमने सही इस्तेमाल नहीं किया, तो शत्रु भी बन जाएगी। और श्रीराम अभिमान के शत्रु हैं। अहंकार परमात्मा किसी का नहीं रखता। इन दोनों के बीच छत्तीस का आंकड़ा है। इसलिए भगवान अपनी कृपा को भक्तों में उतारने के लिए सदैव तैयार हैं, क्योंकि वह जानते हैं कि बुराइयां, कमजोरी, दुर्गुण इस पर आक्रमण करते रहेंगे। जन्म और मरण का रोग मनुष्य को डरा देता है और अहंकार उसका विनाश कर देता है। दोनों का इलाज राम के पास है।
धर्म शास्त्रों के अनुसार राम का नाम अमोघ है। इसमें ऐसी शक्ति है जो इस संसार के तो क्या, परलोकों के संकट काटने में भी सक्षम है। माना गया है कि अंतिम समय में राम का नाम लेने वाला व्यक्ति मोक्ष को प्राप्त होता है। भगवान श्री रामचंद्र जी का नाम इस कलयुग में कल्पवृक्ष अर्थात मनचाहा फल प्रदान करने एवं कल्याण करने वाला है। रामचरितमानस में तुलसीदासजी ने राम नाम की बहुत महिमा गाई है।
रामनाम कि औषधि खरी नियत से खाय,
अंगरोग व्यापे नहीं महारोग मिट जाये।”
अर्थात राम नाम का जप एक ऐसी औषधि के समान है जिसे अगर सच्चे ह्रदय से जपा जाए तो सभी आदि-व्याधि दूर हो जाती हैं,मन को परम शांति मिलती है।