शक्ति और न्याय धर्म के प्रतीक माने जाते हैं नृसिंह देवता, जो भगवान विष्णु के अवतार हैं। भगवान विष्णु के अवतार नरसिंह भगवान का शरीर मनुष्य का था जबकि उनका मुख सिंह यानी कि शेर का था इसी कारण उन्हें नर + सिंह = नरसिंह कहा जाता है। नरसिंह अवतार भगवान विष्णु के उग्र रूप का आभास कराता है । नरसिंह भगवान के शरीर में हाथ के स्थान पे शेर के पंजे थे और उसमे बड़े बड़े नाखून इसी नाखून से भगवान ने हिरण्यकशिपु का वध किया था।
हिमशिखर धर्म डेस्क
इस साल पंचांग भेद की वजह से कुछ जगहों पर 6 को और कुछ जगहों पर 7 मार्च को होलिका दहन होगा। होली सबसे महत्वपूर्ण त्योहारों में से एक है। होली का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है, होलिका दहन। इसे फाल्गुन मास की पूर्णिमा को मनाया जाता है। इसके अगले दिन रंग-गुलाल से होली खेली जाती है। इसे धुलेंडी, धुलंडी और धूलि भी कहा जाता है। कई अन्य हिंदू त्योहारों की तरह होली भी बुराई पर अच्छाई की जीत का प्रतीक है। होलिका दहन की तैयारी त्योहार से कई दिनपहले शुरू हो जाती हैं। लोग सूखी टहनियां, पत्ते जुटाने लगते हैं। फिर फाल्गुन पूर्णिमा की रात को अग्नि जलाई जाती है और मंत्रों का उच्चारण किया जाता है। होलिका दहन का महत्व है कि आपकी मजबूत इच्छाशक्ति आपको सारी बुराइयों से बचा सकती है। होलिका दहन बुराई पर अच्छाई की जीत के पर्व के रूप में मनाया जाता है। जानते हैं होलिका दहन की पौराणिक कथा-
सनातन धर्म में कई सारी कथाएं प्रचलित हैं जिसमें भगवान ने अपने भक्तों की रक्षा के लिए अवतार लिए हैं। भगवान श्री हरि विष्णु (Lord Vishnu) ने हर युग में अपने भक्तों को मुसीबत से उबारने और धर्म की रक्षा करने के लिए अवतार लिए हैं। उन्हीं में से एक है नरसिंह अवतार (Narasimha Avatar)। नरसिंह अवतार भगवान विष्णु के मुख्य दस अवतारों में से एक है। भगवान नरसिंह को शक्ति और पराक्रम के देवता के रूप में जाना जाता है।
कौन है भगवान नरसिंह?
भगवान विष्णु के चौथे अवतार को भगवान नरसिंह के रूप में जाना जाता है। इन्हें हिरण्यकशिपु के अहंकार को तोड़ने के लिए यह अवतार लेना पड़ा था। दरअसल, भगवान विष्णु के परम भक्त प्रहलाद को पिता हिरण्यकशिपु द्वारा केवल इसलिए यातनाएं दी जा रही थी क्योंकि वे पिता का नाम छोड़ भगवान भगवान विष्णु का नाम जपा करते थे। आपको बता दें कि हिरण्यकशिपु को वरदान प्राप्त था जिसके अनुसार उसे न दिन में कोई मार सकता था न रात में, न इंसान मार सकता था न जानवर। ऐसे में वे खुद को अजर-अमर भगवान समझने लगा था।
नरसिंह अवतार की कथा
प्राचीन काल में ऋषि कश्यप और उनकी पत्नी दिती रहा करती थी। उन्हें 2 पुत्र रत्न की प्राप्ति हुई। एक का नाम हिरण्याक्ष और दूसरे का नाम हिरण्यकशिपु था। ब्रह्मा से वरदान प्राप्त होने के कारण उसे ना कोई दिन में ना रात में ना घर के बाहर ना अंदर नाही सुबह नाही शाम को नहीं दिन में नहीं रात्रि को ना अस्त्र से ना शस्त्र से ना कोई मनुष्य और ना ही कोई जानवर मार सकता था यह वरदान प्राप्त करने के बाद हिरण्यकशिपु खुद को अमर समझने लगा।
अपने आप को हिरण्यकशिपु भगवान विष्णु से भी बड़ा समझता था। लेकिन उसका पुत्र प्रहलाद भगवान विष्णु का बहुत ही बड़ा भक्त था वह भगवान विष्णु को अपना कुलदेवता और स्वामी मानता था हमेशा हरि-कीर्तन किया करता था। उसने अपने पिता को समझाने की कोशिश की विष्णु से वैर त्याग दें और उनकी शरण में चले जाएं लेकिन दैत्य राज हिरण्यकशिपु मानने वालों में से नहीं था उल्टा अपने पुत्र को ही भगवान विष्णु की आराधना करने से मना करने लगा। वह विष्णु को अपना सबसे बड़ा शत्रु समझता था।
जब वह अपने पुत्र प्रह्लाद को समझाना सका तो उसने उसे मारने की बहुत कोशिश की प्रहलाद को ऊंचे पहाड़ से नीचे धक्का दिलवा दिया तो कभी हाथी के पैरों तले कुचलवाकर मरवाने की कोशिश की लेकिन हर बार वह नाकामयाब रहा अपनी बहन होलिका जिसे आग में ना जलने का वरदान प्राप्त था को उसने प्रहलाद के साथ अग्नि में बैठने का आदेश दे दिया लेकिन भगवान विष्णु की कृपा से होलिका जल गई जबकि प्रहलाद की जान बच गई।
हिरण्यकशिपु जान गया कि उसे मारना किसी के बस की बात नहीं है तब उसने स्वयं ही प्रहलाद की जान लेने की कोशिश की तभी भगवान नरसिंह उसके महल के स्तंभ से प्रगट हुए उनका शरीर आधा शेर का और आधा इंसानों का था उन्होंने शाम के वक्त घर की देहरी पर ले जाकर हिरना कश्यप को अपने जांग पर बैठाकर उसके पेट को अपने नाखूनों से चीर कर मार डाला।
भगवान नरसिंह ने प्रहलाद को अपने गोदी पर बैठा कर बहुत प्यार दिया। इस तरह ब्रह्मा का वरदान भी झूठा साबित नहीं हुआ और हिरण्यकशिपु का वध भी हो गया।