हिमशिखर धर्म डेस्क
‘नवरात्र’ संस्कृत भाषा का शब्द है जिसका अर्थ नव अहोरात्रों (अर्थात विशेष रात्रियों) से लगाया जाता है। इस कालावधि में शक्ति के नव स्वरूपों की उपासना का विधान है। ‘रात्रि’ शब्द वास्तव में सिद्धि का प्रतीक कहा गया है। ऋग्वेद के दशम मण्डल के 127वें ऋचा में वर्णित रात्रि सूक्त में रात्रि देवी की महिमा का अद्भुत वर्णन है।
जिसमें बताया गया है कि ये रात्रिरूपा देवी अपने उत्पन्न किये हुए जगत के जीवों के शुभाशुभ कर्मों के अनुरूप फल की व्यवस्था करने के लिए समस्त विभूतियों को धारण करती हैं. तथा अपनी ज्ञानमयी ज्योति से जीवों के अज्ञान रूपी अंधकार का शमन कर उषा देवी को आमंत्रित करती हैं।
प्रतीकात्मक रूप से हमारा शरीर नव द्वारों वाला माना गया है जिसके अंदर निवास करने वाली जीवनी शक्ति का नाम ही माँ दुर्गा है। नवरात्र के नौ दिवसो में उन्ही जीवनी शक्ति अर्थात माँ दुर्गा के विविध स्वरूपों की उपासना की जाती है। मां दुर्गा की उपासना से अत्यंत सामान्य और दीनहीन पुरुष भी करोड़ों लोगों का आश्रयदाता बनकर सिद्ध हो जाता है।
जो शक्ति से रहित है वही निष्क्रिय है, असफल है, आलसी है और यूं कहें कि मृत है। अगर आप जरा भी शक्तिहीन हो रहे हों तो इन नौ दिनों में जुट जाइए शक्ति संचय के लिए। महाशक्ति पग-पग, पल-पल, घट-घट अपनी शक्ति वितरित करने के लिए निकली हैं। ध्रुव और प्रहलाद के भीतर जो उतरा था वो भक्ति इसी शक्ति का रूप थी। जब ये शक्ति प्रेम में परिवर्तित हुई तो गोपिकाएं भी पूजित हो गईं।
ये वही शक्ति है जो ब्रह्मचर्य बनी तो भीष्म पूरे जग में सम्मानित हुए। हनुमान तो सेवा-शक्ति के प्रतीक बन गए। जब ये शक्ति कवित्व में उतरी तो वाल्मीकि और व्यास जैसे रचनाकारों ने धरती को धन्य कर दिया। भीम और अर्जुन का यशगान इसीलिए होता है कि उनके पराक्रम में यही शक्ति उतरी थी। ये शक्ति जब सत्य से जुड़ी तो हरिश्चंद्र और युधिष्ठिर जैसे लोग धरती पर आए।
यही शक्ति जब वीरता बनी तो शिवाजी और महाराणा प्रताप हमें आज तक याद आते हैं। इसी शक्ति ने ध्यान में उतरकर बुद्ध दिए। इसी शक्ति ने तप में उतरकर महावीर सौंंपे। हमारे पास इस शक्ति के सदुपयोग के अनेकों उदाहरण हैं। तो क्यों न हम भी उस उदाहरण में अपने आपको शामिल कर लें।
मां दुर्गा की उपासना से जीवन की श्रेष्ठता व आत्म सामर्थ्य प्रकट होती है। चैत्र नवरात्र में मां की उपासना के फलस्वरूप जीवन में सात्विकता का प्रस्फुटन ही रामत्व का जागरण का हेतु है।