सुप्रभातम् : एक गलती ने भोलानाथ को नास्तिक से आस्तिक बना दिया

बहुत से लोग नास्तिक होते हैं, लेकिन कभी उनके साथ ऐसा कुछ होता है कि वे भगवान में विश्वास करने लग जाते हैं। नीचे दी गई कहानी कुछ यही संदेश देती है –

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पंडित उदय शंकर भट्ट

एक शहर में भोलानाथ एक छोटी-सी गली में रहता था। वह मेडिकल दुकान चलाता था। सारी दवाइयों की उसे अच्छी जानकारी थी। पूरी दुकान खुद संभालता था, इसलिए कौन-सी दवा कहां रखी है, उसे अच्छी तरह पता था।

वो पूरी ईमानदारी से अपना काम करता था। ग्राहकों को सही दवा, सही दाम पर देता था। सबकुछ अच्छा होने के बाद भी भोलानाथ नास्तिक था। भगवान में उसका जरा भी विश्वास नहीं था।

वह पूरा दिन दुकान पर काम करता और शाम को परिवार तथा दोस्तों के साथ समय गुजारता था। उसे ताश खेलने का शौक था। जब भी टाइम मिलता, दोस्तों के साथ ताश खेलने बैठ जाता था।

एक दिन वह दुकान पर था, तभी कुछ दोस्त आए। तभी भारी बारिश भी शुरू हो गई। रात हो गई थी, लेकिन सभी बारिश थमने का इंतजार कर रहे थे। बिजली भी चली गई थी। बैठे-बैठे क्या करें, सोचा मोमबत्ती की रोशनी में ताश ही खेल लेते हैं। सारे दोस्त दुकान में ताश खेलने बैठ गए।

सभी ताश में मगन थे, तभी एक लड़का दौड़ा-दौड़ा आया। वह पूरी तरह भीग चुका था। उसने जेब से दवा की एक पर्ची निकाली और भोलानाथ से दवा मांगी। भोलानाथ भी खेल में मगन था। उसने पहली बार में तो ध्यान ही नहीं दिया।

तभी लड़ने ने जोर से आवाज देते हुए कहा, मेरी मां बहुत बीमार है। सारी दवा दुकानें बंद हो गई हैं। एक आपकी दुकान ही खुली है। आप दवा देंगे तो मेरी मां ठीक हो जाएगी।

भोलानाथ आधे-अधूरे मन से उठा, पर्ची देखी और अंदाज से दवा की एक शीशी उठाकर उसे दे दी। पैसे काटकर लड़के को लौटा दिए। लड़का भागते हुए चला गया।

तभी बारिश थम गई। भोलानाथ के दोस्त चले गए और भोलानाथ भी दुकान बंद करने लगा, तभी उसे ध्यान आया कि रोशनी कम होने के कारण उसने गलती से लड़के को चूहे मारने वाली दवा की शीशी दे दी है। भोलानाथ के हाथ-पांव फूल गए। उसका दिल जोर-जोर से धड़कने लगा। उसकी दस साल की नेकी पर मानो जैसे ग्रहण लग गया।

उस लड़के बारे में वह सोच कर वह तड़पने लगा। सोचा यदि यह दवाई उसने अपनी बीमार मां को देगा, तो वह अवश्य मर जाएगी। लड़का भी बहुत छोटा होने के कारण उस दवाई को तो पढ़ना भी नहीं जानता होगा।

एक पल वह अपनी इस भूल को कोसने लगा और ताश खेलने की अपनी आदत को छोड़ने का निश्चय कर लिया पर यह बात तो बाद के बाद देखी जाएगी। अब क्या किया जाए ?

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उस लड़के का पता ठिकाना भी तो वह नहीं जानता। कैसे उस बीमार मां को बचाया जाए ? सच कितना विश्वास था उस लड़के की आंखों में। भोलानाथ को कुछ सूझ नहीं रहा था। घर जाने की उसकी इच्छा अब ठंडी पड़ गई। दुविधा और बेचैनी उसे घेरे हुए था।

घबराहट में वह इधर-उधर देखने लगा। पहली बार उसकी नजर दीवार के उस कोने में पड़ी, जहां उसके पिता ने जिद्द करके भगवान श्रीकृष्ण की तस्वीर दुकान के उद्घाटन के वक्त लगाई थी।

तब पिता ने कहा था, भगवान की भक्ति में बड़ी शक्ति होती है, वह हर जगह व्याप्त है और हमें सदैव अच्छे कार्य करने की प्रेरणा देता है। भोलानाथ को यह सारी बात याद आने लगी। आज उसने इस अद्भुत शक्ति को आजमाना चाहा।

उसने कई बार अपने पिता को भगवान की तस्वीर के सामने कर जोड़कर, आंखें बंद करते हुए पूजते देखा था। उसने भी आज पहली बार कमरे के कोने में रखी उस धूल भरे कृष्ण की तस्वीर को देखा और आंखें बंद कर दोनों हाथों को जोड़कर वहीं खड़ा हो गया।

थोड़ी देर बाद वह छोटा लड़का फिर दुकान में आया। भोलानाथ के पसीने छूटने लगे। वह बहुत अधीर हो उठा।

पसीना पोंछते हुए उसने कहा- क्या बात है बेटा तुम्हें क्या चाहिए?

लड़के की आंखों से पानी छलकने लगा। उसने रुकते-रुकते कहा- बाबूजी.. बाबूजी मां को बचाने के लिए मैं दवाई की शीशी लिए भागे जा रहा था, घर के करीब पहुंच भी गया था। बारिश की वजह से आंगन में पानी भरा था और मैं फिसल गया। दवाई की शीशी गिर कर टूट गई। क्या आप मुझे वही दवाई की दूसरी शीशी दे सकते हैं बाबूजी? लड़के ने उदास होकर पूछा।

हां ! हां ! क्यों नहीं ? भोलानाथ ने राहत की सांस लेते हुए कहा। लो, यह दवाई!

पर उस लड़के ने दवाई की शीशी लेते हुए कहा, पर मेरे पास तो पैसे नहीं हैं, उस लड़के ने हिचकिचाते हुए से कहा।

भोलानाथ को उस पर दया आई। कोई बात नहीं – तुम यह दवाई ले जाओ और अपनी मां को बचाओ। जाओ जल्दी करो, और हां अब की बार जरा संभल के जाना। लड़का, अच्छा बाबूजी कहता हुआ खुशी से चल पड़ा।

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अब भोलानाथ की जान में जान आई। भगवान को धन्यवाद देता हुआ अपने हाथों से उस धूल भरे तस्वीर को लेकर अपनी धोती से पोंछने लगा और अपने सीने से लगा लिया।

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