मानव सभ्यता के आरम्भ से ही प्रकृति के आगोश में पला और पर्यावरण की सुरक्षा के प्रति सचेत रहा। पर जैसे-जैसे विकास के सोपानों को मानव पार करता गया, प्रकृति का दोहन व पर्यावरण से खिलवाड़ रोजमर्रा की चीज हो गई। प्रकृति हम सभी को बहुत कुछ देती हैं, पर बदले में कभी कुछ माँगती नहीं। पर हम इसी का नाजायज फायदा उठाते हैं और उनका ही शोषण करने लगते हैं। हमें हर किसी के बारे में सोचने की फुर्सत है, पर प्रकृति और पर्यावरण के बारे में नहीं। हम रोज प्रकृति व पर्यावरण से खिलवाड़ किये जा रहे हैं। हम नित धरती माँ को अनावृत्त किये जा रहे हैं। विकास की इस अंधी दौड़ के पीछे धरती के संसाधनों का जमकर दोहन किये जा रहे हैं। वास्तव में देखा जाय तो पर्यावरण शुद्ध रहेगा तो आचरण भी शुद्ध रहेगा। लोग निरोगी होंगे और औसत आयु भी बढ़ेगी। पर्यावरण-रक्षा कार्य नहीं, बल्कि धर्म है।
हिमशिखर खबर ब्यूरो
त्रेतायुग में राक्षसों का आतंक काफी बढ़ने पर मुनि विश्वामित्र अयोध्या पहुंचे। अयोध्या में विश्वामित्र ने राजा दशरथ से कहा, आप मुझे अपने दो पुत्र राम-लक्ष्मण कुछ दिनों के लिए सौंप दीजिए। मैं इन्हें वन में ले जाऊंगा। वन में राक्षसों का आतंक है। राम-लक्ष्मण उन राक्षसों का वध कर देंगे और सभी ऋषि-मुनियों को सुरक्षित करेंगे।
राजा दशरथ राम-लक्ष्मण को भेजने के लिए तैयार नहीं थे, लेकिन विश्वामित्र के समझाने के बाद वे मान गए। इसके बाद विश्वामित्र राम-लक्ष्मण को वन में ले गए। जंगल में विश्वामित्र ने राम-लक्ष्मण को शस्त्रों की विद्या देने से पहले उनका परिचय प्रकृति से करवाया।
जब ये सभी गंगा नदी पार कर रहे थे तब राम को ऊंचे जलप्रपात की आवाज सुनाई दी। ऐसा लग रहा था जैसे पानी का कोई बड़ा झरना नीचे गिर रहा है, लेकिन झरना कहीं दिखाई नहीं दे रहा था, सिर्फ नदी दिख रही थी।
श्रीराम ने विश्वामित्र से पूछा, ‘गुरुजी’ ऐसा लगता है कि यहां कोई झरना गिर रहा है, लेकिन दिख नहीं रहा है। ऐसा क्यों?
विश्वामित्र ने कहा, ‘एक बार ब्रह्माजी ने अपने मन से एक जलप्रपात बनाया था, जिसे मानसरोवर के नाम से जाना जाता है। इसी सरोवर से सरयू नदी निकली है। जो स्वर तुम्हें सुनाई दे रहा है, लेकिन झरना दिखाई नहीं दे रहा है, वह मानसरोवर से निकलकर गंगा में मिल रहे झरने का स्वर है। तुम इसकी वंदना करो। मैं तुम्हें ये इसलिए समझा रहा हूं क्योंकि तुम एक राजपुरुष हो, भविष्य में राजा बनोगे।
हर राजा की ये विशेषता होनी चाहिए कि प्रकृति के पीछे का स्वर सुन ले और समझ ले। अगर कोई राजा प्रकृति को नहीं पहचानता है तो उसका प्रकोप राज्य को झेलना पड़ता है। इसीलिए राम तुम समझ लो कि पेड़-पौधे, पानी, भूमि का कण-कण अपनी उपयोगिता की घोषणा कर रहा है। राजपुरुष को सुनना आना चाहिए।’
सीख – ये कहानी हमें समझा रही है कि हमारे आसपास जितने पेड़ हैं और प्रकृति के अन्य संसाधन हैं, ये सभी जीवन का महत्वपूर्ण संदेश देते हैं। हम प्रकृति का संदेश समझते नहीं हैं, उनका दुरुपयोग कर लेते हैं। जिसकी नतीजा हमको भुगतना पड़़ता है। इसीलिए प्रकृति का सम्मान करें और उसके संदेश को समझें।