सुप्रभातम्: “स्वयं का उद्धार ही सबसे नेक काम”

आचार्य शिवेंद्र

Uttarakhand

आप जब भी हवाई यात्रा करते हैं तो आपने ध्यान दिया होगा कि एक चीज़ ऐसी बताई जाती है जो नए यात्री को सोचने पर मजबूर करती है। अधिक यात्रा करने वाले को कोई खास नहीं लगती परंतु पहली बार यात्रा करने वाले को अजीब लगती है।

हवाई जहाज उड़ने से पहले एयर होस्टेस सुरक्षा सूचनाएँ देती है, जिसमें कहा जाता है कि आपातकालीन परिस्थिति में, जब हवा का दबाव कम हो जाए तो आक्सीजन मास्क का प्रयोग करें। लेकिन एक बात जो विचित्र बताई जाती है वह यह कि पहले अपना मास्क पहनें, उसके उपरांत ज़रूरतमंद को आक्सीजन मास्क पहनाएं।

अक्सर तो यह सुना जाता है कि अपने से पहले दूसरों की सोचें परंतु यहाँ पहले अपने को बचाओ फिर ज़रूरतमंद की सहायता करो। जिस भी व्यक्ति में थोड़ी सी भी बुद्धि, थोड़ा सा विवेक होगा वह यह बात समझ जाएगा कि हम दूसरों की सहायता तभी कर सकते हैं जब हम स्वयं स्क्षम हों। जो खुद बीमार होगा वह क्या किसी की सहायता करेगा? जो खुद कर्जे में हो वह क्या किसी की आर्थिक मदद करेगा? जो स्वयं दुखों में फँसा हो वह क्या किसी को खुशी देगा? जो स्वयं अज्ञान में ढका हो वह क्या ज्ञान का दीया जलाएगा?

सौ बातों की एक बात, पहले अपना उद्धार करो फिर किसी और के उद्धार की सोचो। श्रीमदभगवदगीता अध्याय 6 (श्लोक 5) में भगवान श्रीकृष्ण कहते हैं-
उद्धरेदात्मनात्मानं नात्मानमवसादयेत।
आत्मैव ह्यात्मनो बन्धुरात्मैव रिपुरात्मनः।।
एक ही व्यक्ति आपका उद्धार कर सकता है एक ही व्यक्ति आपको बर्बाद कर सकता है और वह है आप स्वयं।

पर असल समस्या यह है कि हम सोचते हैं, हम दूसरे को ठीक कर सकते हैं और उससे भी बड़ी बात, हम सोचते हैं कि कोई और मुझे दुखी और परेशान कर रहा है। अध्यात्म, शास्त्र, गुरू, ज्ञानी चाहे कितना भी हमें बताने की कोशिश करें परंतु हम टस से मस नहीं होते।

ओशो की एक कहानी है। एक स्कूल में मास्टरजी ने बच्चों से कहा कि दिन में एक नेक काम ज़रूर करना। कल मैं तुमसे पूछूंगा कि तुमने क्या नेक काम किया? अगले दिन मास्टर जी ने कक्षा सभी बच्चों से पूछा, तुमने क्या नेक काम किया? तो एक बच्चा बोला-” मास्टरजी मैंने एक बूढ़ी महिला को सड़क पार करवाई।” मास्टरजी ने बोला-बहुत सुंदर! दूसरे बच्चे से पूछा तो दूसरे बच्चे ने भी कहा-” मास्टरजी मैंने भी एक बूढ़ी महिला को सड़क पार कराई।”  मास्टरजी ने हैरानी से तीसरे बच्चे से पूछा, उसने भी बोला,” मैंने एक बूढ़ी महिला को सड़क पार कराई।” मास्टरजी हैरान होकर बोले, तुम तीनों को बूढ़ी औरत कहाँ से मिल गई? तब एक बच्चा बोला- मास्टरजी! तीन नहीं , एक ही औरत थी और सड़क पार होना भी नहीं चाहती थी, हमने जबर्दस्ती करवा दी।

यही हाल आजकल के लोगों का है। हर कोई दूसरे को ठीक करना चाहता है परंतु स्वयं को कोई ठीक नहीं करना चाहता।आप एक ही व्यक्ति का उद्धार कर सकते हैं और वह आप स्वयं हैं। अब प्रश्न यह है कि अपना उद्धार कैसे करें? शास्त्र उसकी भी चर्चा करते हैं। शास्त्र तीन योगों पर प्रकाश डालते हैं। पहला कर्मयोग, जिसमें मनुष्य अपने जीवन में श्रेष्ठ लक्ष्य बना कर मन और बुद्धि को उस लक्ष्य से जोड़ देता है। दूसरा है भक्तियोग जिसमें मन को प्रभु के चरणों में लगा कर हर कार्य को निमित्त भाव से करता है तथा ज्ञान का संग कर अर्थात ज्ञानयोग से अपने जीवन के अज्ञान रूपी अंधकार को हटाकर ज्ञान का दीपक जलाता है। यही है अपने उद्धार का सर्वोत्तम मार्ग! सोचिएगा इस बात पर!

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