सुप्रभातम् : जिंदगी और प्रकृति के बीच संतुलन लाता है सावन

पंडित श्रीराम शर्मा आचार्य

Uttarakhand
धरती पर छायी हरियाली और आसमान में मेघमालाओं के बीच श्रावणी संस्कार एवं संकल्प बनकर बरस रही है। बारह महीनों में सावन का महीना कुछ विशेष है। धरती और सूर्य के खगोलीय संबंध पृथ्वी में पड़ने वाले अंतर्ग्रहीय प्रभाव इस महीने को कई विशेषताओं से अलंकृत करते हैं।
सावन मास प्रकृति को समृद्ध बनाता है। बाह्य प्रकृति एवं पर्यावरण इस माह जितने संतुलित एवं समृद्ध होते हैं, उतने अन्य महीनों में कभी नहीं हो पाते। मानव की अन्तःप्रकृति की समृद्धि एवं श्रृंगार के लिए भी इस महीने का महत्त्व कुछ ज्यादा है। अध्यात्म विद्या के विशेषज्ञों ने इस महीने के लिए अनेक तरह के धर्माचरण अनुष्ठान एवं तपश्चर्या के विधान सुझाए हैं।
अध्यात्म तत्त्व के जिज्ञासुओं के लिए सावन मास के पल-प्रति-पल का महत्त्व है। आध्यात्मिक जीवन शैली को अपनाने से इस महीने का हर पल न केवल उन्हें संस्कारित करता है, बल्कि संकल्पवान बनाता है। यह संस्कार कितने प्रबल हुए, संकल्प शक्ति कितनी विकसित हुई? श्रावणी पर्व में इसी की परीक्षा होती है। सावन पूर्णिमा के इसी दिन पूरे साल अपनाए जाने वाले आध्यात्मिक अनुशासनों का संतुलन बिठाया जाता है। महानता के महाशिखर पर चढ़ने के लिए नए महासंकल्प किए जाते हैं। अन्तश्चेतना में शुभ संस्कारों की नई पौध रोपी जाती है।
संस्कार एवं संकल्प यही दो ऐसे तत्त्व हैं जो व्यक्तित्व में ऋषिता को विकसित करते हैं। इन्हीं के अवलम्बन, आश्रय एवं अनुपालन से व्यक्ति ऋषि बनता है। इन दो तत्त्वों, दो सत्यों एवं दो तथ्यों पर ऋषि जीवनशैली का समूचा ढांचा खड़ा है।
आज के दौर में यदि उत्कृष्ट जीवन शैली का अभाव दिखता है तो इसका कारण एक ही है कि ऋषित्व का लोप हो गया है। बढ़ती हुई मानसिक बीमारियां, पर्यावरण संकट, अभाव, असफलता से घिरी हुई जिंदगी केवल यही बात दर्शाती है कि संस्कारों एवं संकल्प के महत्त्व को लोग भूल गए हैं।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *