हिमशिखर धर्म डेस्क
अतुलितबलधामं हेमशैलाभदेहं दनुजवनकृशानुं ज्ञानिनामग्रगण्यम्। सकलगुणनिधानं वानराणामधीशं रघुपतिप्रियभक्तं वातजातं नमामि॥
भावार्थ:-अतुल बल के धाम, सोने के पर्वत (सुमेरु) के समान कान्तियुक्त शरीर वाले, दैत्य रूपी वन (को ध्वंस करने) के लिए अग्नि रूप, ज्ञानियों में अग्रगण्य, संपूर्ण गुणों के निधान, वानरों के स्वामी, श्री रघुनाथजी के प्रिय भक्त पवनपुत्र श्री हनुमान्जी को मैं प्रणाम करता हूँ॥
भक्तों की पुकार पर हनुमानजी तुरन्त चले आते हैं और उनके काष्ट क्लेशों को पल भर में दूर कर देते हैं, पवन तो बहुत सुलभ है इसलिए लोग बहुत कम याद करते हैं, दुर्लभ की याद बहुत लोग करते हैं, जिसको बल, बुद्धि और विधा आ गई उसी के क्लेश का हरण होता है, और हनुमानजी की कृपा से ये तीनों ही प्राप्त किया जा सकता है। सज्जनों! पांच क्लेश होते हैं और छह विकार होते हैं, क्लेश मानसिक होते हैं और विकार शारीरिक, पहले विकार मन में आता है तन में उसका प्रदर्शन बाद में होता है, पहले दोष, दुर्गुण मन में आते हैं और विकार बाद में होता है, चाट खानी है यह विचार मन में पहले आया, पेट में विकार उसके बाद होता है। मदिरा पीनी है मन में विचार पहले आएगा, शरीर नाली में गिरा है यह विकार बाद में दिखाई देता है, तो यह क्लेश है, विकार है, जो मन को मैला करते हैं, तन को रूलाते है वें विकार है और ये दोनों साथ-रहते हैं, तन में यदि विकार है तो इसका अर्थ है पहले मन में कोई न कोई विकार अवश्य आया होगा जिसका आपने पालन किया है, परिणाम उसका तन भोग रहा है।
“जय हनुमान ज्ञान गुण सागर, जय कपीस तिहुँ लोक उजागर” श्री हनुमान चालीसा का शुभारंभ भी हुआ है जय हनुमान से और समापन भी हुआ है जय हनुमान से, जै जै जै हनुमान गौसाई, कृपा करहु गुरुदेव की नाई” जय संकल्प का प्रतीक है, हनुमानजी संकल्प के प्रतिक है जो संकल्प लेते हैं वो पूर्ण होता है। जय है विजय का प्रतीक, श्री हनुमानजी की सदा जय होतीं हैं, कभी भी हनुमानजी परास्त नहीं होते और केवल गोस्वामीजी कहते हैं जो सदैव हनुमानजी की शरण में रहते हैं उनकी भी हमेशा जय होती है, यह नियम है कि संकल्पवान हमेशा विजयी होता है जो संशय में डूबा है, सन्देह में डूबा है, होगा कि नहीं होगा, वो पराजित होगा।
सज्जनों! होगा कैसे नहीं होगा? हनुमानजी मेरे साथ हैं, इस संकल्प के साथ हम कार्य करेंगे तो वह कार्य अवश्य होगा, हनुमान चालीसा में गोस्वामीजी ने हनुमान शब्द का प्रयोग किया है, हनुमान का अर्थ है जिन्होंने अपने मान का हनन कर दिया हो जिन्होंने अपने सभी प्रकार के अहं का हनन कर दिया हो, वो हनुमान है।
हनुमानजी के बचपन की कथा है जब इनका जन्म हुआ तो अंजनी माता फल लेने के लिए पालने में छोडकर जंगल में गयी है, उस दिन प्रात:काल आकाश में सूर्य उदित हो रहे थे लाल लाल रसीला कोई फल प्रकट हुआ है ऐसा हनुमानजी को लगा। हनुमानजी ने वहां से उछाल मार दी और उनहोंने सूर्य को पकडकर मुंह में ले लिया, सारी सृष्टि में अंधकार छा गया, बाद में इन्द्र ने आकर अपने वज्र का प्रहार किया जिससे इनकी ठोढी थोडी टेढी हो गई, परन्तु हनुमानजी से टकराकर इन्द्र का जो वज्र था उसकी धार सदा-सदा के लिए समाप्त हो गई। तबसे इनका नाम हनुमान पड गया, हनु जिनकी थोडी सी ठोढी टेढी है उसको हनुमान कहते हैं, लेकिन हनुमान के अनेक अर्थ है जिन्होंने अपने मान का हनन कर लिया है, भगवान् की आप झांकी देखिये इसमें आप हमेशा लक्ष्मणजी को साथ में नहीं देखेंगे, आप हमेशा भरतजी, शत्रुघ्नजी, को भी साथ नहीं देखेंगे, लेकिन प्रभु की प्रत्येक झांकी में हनुमानजी को सदा साथ में देखेंगे।
हनुमानजी को भगवान सदैव अपने पास रखते हैं, क्योंकि? इन्होने अपने मान को छोड दिया, इन्होने तीन चीजें छोडी और जो तीन चीजें छोड देता है भगवान उन्हें हमेशा अपने साथ रखते है, एक तो हनुमानजी ने अपना नाम छोडा आज तक कोई हनुमानजी का नाम ही नहीं बता पाया, ये जो हनुमानजी के नाम हैं वे उनके नाम नहीं है, गुण है। पवनपुत्र, अंजनीपुत्र, बजरंगबली, वायुपुत्र, महाबली, रामेष्ट, पिंगाक्ष, सीताशोक विनाषन, लक्ष्मणप्राणदाता, ये सब हनुमानजी के नाम नहीं है ये तो उनके गुण है, और हम सब नाम के पीछे हैं, हनुमानजी ने जानबूझकर अपना नाम नहीं रखा, हनुमानजी से जब कोई नाम पूछते हैं तो हनुमानजी कहते हैं- सुन्दर तो वह केवल दो ही हैं। जग में सुन्दर है दो नाम, चाहे कृष्ण कहो या राम। बोलो राम राम राम, बोलो श्याम श्याम श्याम।। क्लेश और विकार को यदि कोई दूर कर सकता है तो बल, बुद्धि, विधा, संकल्प का बल, विचार की शक्ति और अज्ञान के मार्ग से विरक्ति ये तीनों ही आपको अन्याय से, अधर्म से बचा सकते हैं, हनुमानजी बल, बुद्धि और विधा के प्रतीक है, अतः श्रद्धा और भक्ति से हनुमानजी सहित भगवान् श्री रामजी का स्मरण करते हैं वह अवश्य प्रभु की कृपा का पात्र होता है।