हिमशिखर धर्म डेस्क
त्रिलोक विजेता रावण को मर्यादा पुरुषोत्तम श्री राम ने अपने बाणों से मार दिया था। जिसके बल से पृथ्वी भी कांपती थी, जिसके सामने अग्रि-चंद्रमा और सूर्य तेजहीन थे, जिसका भार शेषनाग भी नहीं सह सकते थे, युद्ध के मैदान में जिसके सामने देवता तक नहीं टिक पाते, जिसने यमराज को भी जीत लिया था, उस रावण की पत्नियां विलाप करते हुए कह रही थीं- ‘सो तनु भूमि परेउ भरि छारा’ आज वही शरीर अनाथ की तरह धूल से सना जमीन पर पड़ा है।
रावण जैसे बलशाली के साथ ऐसा क्यों हुआ? रोती हुई स्त्रियां आगे इसका कारण बताते हुए कहती हैं- ‘राम बिमुख अस हाल तुम्हारा। रहा न कोउ कुल रोवनिहारा।’ राम के विमुख होने से तुम्हारी ऐसी दुर्दशा हुई है कि आज कुल में कोई रोने वाला भी नहीं बचा। इसके बाद एक बात और बहुत अच्छी कही गई- ‘राम बिमुख यह अनुचित नाहीं’।
राम विमुख के साथ तो ऐसा होना ही था। राम एक आदर्श जीवन की उच्चतम अभिव्यक्ति, एक अनुशासन का नाम है। जो कोई इस अनुशासन से मुंह मोड़ेगा, वो भले ही रावण की तरह बलवान और समर्थ ही क्यों न हो, ऐसा ही पड़ा मिलेगा। लड़ाई अभी समाप्त नहीं हुई है। दुर्गुण महामारी के रूप में फिर हमला कर सकते हैं, जिनसे निपटने के लिए एक आदर्श, अनुशासित जीवनशैली की जरूरत है। इसलिए श्री राम की ओर मुख करके रहें, विमुख होकर नहीं।