कहा जाता है कि जब-जब धरती पर अन्याय बढ़ता है तो भगवान विष्णु धरती पर अवतार लेते हैं। संसार को रावण और कंस से मुक्ति दिलाने के लिए भी भगवान विष्णु ने राम और कृष्ण का अवतार लिया था। विष्णु जी को हमेशा सुदर्शन चक्र के साथ देखा जाता है। लेकिन क्या आप जानते हैं कि आखिर उनके हाथ में ये सुदर्शन चक्र क्यों है और कहां से आया? जानिए इसके पीछे एक पौराणिक कथा –
हिमशिखर धर्म डेस्क
सुदर्शन चक्र भगवान विष्णु का अमोघ अस्त्र है। इसे तेजतत्व का स्वरूप माना गया है। भगवान विष्णु ने सुदर्शन चक्र को अपने कृष्णावतार में धारण कर अनेक राक्षसों का वध किया। वैष्णवों के हित के लिए भगवान चक्र धारण करते हैं। इसका सर्वश्रेष्ठ उदाहरण हमें दुर्वासा मुनि और राजा अम्बरीष के प्रसंग में देखने को मिलता है, जहां दुर्वासा के शाप से भक्त अम्बरीष की रक्षा भगवान ने नहीं वरन् उनके सुदर्शन चक्र ने की थी।
सुदर्शन महावेगं गोविन्दस्य प्रियायुधम् ।
ज्वलत्पावकसंकाशं सर्व शत्रु विनाशनम् ।।
कृष्णप्राप्तिकरं शश्वद् भक्तानां भयभंजनम् ।
संग्रामे जयदं तस्माद् ध्यायदेवं सुदर्शनम् ।।
अर्थात्—भगवान श्रीकृष्ण का प्रिय आयुध सुदर्शन चक्र अत्यन्त वेगवान व जलती हुई अग्नि की तरह शोभायमान और समस्त शत्रुओं का नाश करने वाला है। सुदर्शन चक्र का ध्यान करने से श्रीकृष्ण की प्राप्ति होती है और हमेशा के लिए भक्तों का भय दूर हो जाता है व जीवन-संग्राम में विजय प्राप्त होती है।
प्रतिदिन यदि भगवान के सुदर्शन चक्र को नमस्कार कर इस श्लोक का स्मरण कर लिया जाए तो मनुष्य का अज्ञान, अविद्या व नकारात्मक ऊर्जा नष्ट हो जाती है और हृदय में भक्ति प्रस्फुटित होने लगती है—
सुदर्शन नमस्तेस्तु कोटिसूर्य समप्रभ ।
अज्ञानतिमिरान्धस्य विष्णोर्मार्ग प्रदर्शय ।।
अर्थात्—करोड़ों सूर्य के समान प्रभावान सुदर्शन चक्र तुमको नमस्कार है । मेरे अज्ञान-अंधकार का नाश कर मुझे विष्णु-भक्ति का मार्ग दिखाओ।
भगवान शंकर का भगवान विष्णु को प्रसाद है सुदर्शन चक्र
प्राचीन शास्त्रों में ऐसी मान्यता है कि सुदर्शन चक्र का निर्माण भगवान शंकर ने किया था। निर्माण के बाद भगवान शिव ने इसे श्री विष्णु को सौंपा था। भगवान विष्णु की कठोर साधना से प्रसन्न होकर भगवान शिव ने उन्हें सुदर्शन चक्र देते हुए कहा—
‘यह ‘सुदर्शन’ नाम का श्रेष्ठ आयुध सभी आयुधों का विनाशक है। इसके बारह अरे और नौ नाभियां है । यह वेग में गरुड़ के समान है। सज्जनों की रक्षा करने के लिए इसके अरों में देवता, मेष आदि बारह राशियां तथा छहों ऋतुएं रहती हैं । सूर्य, चन्द्र, अग्नि, वरुण, इन्द्र, विश्वेदेव, प्रजापति, वायु, धन्वन्तरि, अश्विनीकुमार, तप और उग्रतप—ये बारह देवता और चैत्र से लेकर फाल्गुन तक के बारह महीने इनमें रहते हैं । आप इसे लेकर देव-शत्रुओं का संहार कीजिए । मैंने यह मन्त्रमय आयुध तपोबल से धारण कर रखा है।’
एक अन्य कथा के अनुसार देवताओं के कष्ट दूर करने के लिए भगवान विष्णु प्रतिदिन शिव सहस्त्रनाम के पाठ से शिवजी को एक सहस्त्र कमल चढ़ाते थे । एक दिन भगवान शिव ने उनकी भक्ति की परीक्षा करने के लिए एक कमल छुपा दिया। एक कमल कम होने पर भगवान विष्णु ने अपना एक कमल-नेत्र शिवजी के चरणों में अर्पित कर दिया। यह देखकर भगवान विष्णु अत्यन्त प्रसन्न हुए और दैत्यों के विनाश के लिए उन्हें सुदर्शन चक्र प्रदान किया ।
सुदर्शन चक्र स्तोत्र
नम: सुदर्शनायैव सहस्त्रादित्य वर्चसे ।।
ज्वालामाला प्रदीप्ताय सहस्त्राराय चक्षुषे।
सर्वदुष्ट विनाशाय सर्वपातक मर्दिने ।।
सुचक्राय विचक्राय सर्वमन्त्र विभेदिने ।
प्रसवित्रे जगद्धात्रे जगद्विध्वंसिने नम: ।।
पालनार्थाय लोकानां दुष्टासुर विनाशिने ।
उग्राय चैव सौम्याय चण्डाय च नमो नम:।।
नमश्चक्षु:स्वरूपाय संसारभयभेदिने ।
माया पंजर भेत्रे च शिवाय च नमो नम: ।।
अर्थात्—सहस्त्रों सूर्य के समान तेजसम्पन्न सुदर्शन चक्र के लिए नमस्कार है। तेजस्वी किरणों की मालाओं से प्रदीप्त हजारों अरे वाले, नेत्रस्वरूप, सर्वदुष्ट विनाशक व सभी प्रकार के पापों को नष्ट करने वाले आपको नमन है। सुचक्र तथा विचक्र नाम वाले, सभी मन्त्र का भेदन करने वाले, जगत की सृष्टि करने वाले, पालन-पोषण करने वाले और जगत का संहार करने वाले हे सुदर्शन चक्र ! आपको नमस्कार है।
संसार की रक्षा करने के लिए देवताओं का कल्याण करने वाले, दुष्ट राक्षसों का विनाश करने वाले, दुष्टों का संहार करने के लिए उग्र-स्वरूप व प्रचण्ड रूप और सज्जनों के लिए सौम्य स्वरूप धारण करने वाले आपको बारम्बार नमस्कार है। जगत के लिए नेत्र स्वरूप, संसार-भय को काटने वाले माया रूपी पिंजड़े का भेदन करने वाले, कल्याणकारी सुदर्शन चक्र को नमस्कार है ।