सुप्रभातम् : मधुर वाणी औषधि के सामान

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आचार्य पुलक सागर

पानी और वाणी को सहेज कर रखिए। पानी आदमी की प्रतिष्ठा है, प्राण है। इसी प्रकार वाणी भी आदमी की प्रतिष्ठा और प्राण है। उसे व्यर्थ न गवाएं। इस बात को अच्छी तरह समझ लें कि खारा पानी और खारी वाणी दोनों ही हानिकारक हैं।

यह भी अनुभव की बात है कि ज्यादातर विवाद वाणी से ही पैदा होते हैं। इसलिए पानी की तरह वाणी का भी ध्यान से प्रयोग कीजिए। जिस तरह हम सभी मीठा पानी पीना ही पसंद करते हैं, उसी तरह वाणी भी मीठी ही पसंद करते हैं। इसलिए वाणी में भी मिठास होनी चाहिए।

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कबीरदास जी ने कहा है, ‘ऐसी वाणी बोलिए, मन का आपा खोए, औरन को शीतल करे, आपहुं शीतल होय। ‘वाणी से बड़ा कोई आभूषण नहीं है। मधुर वचनों से सभी अपने हो जाते हैं। मीठी वाणी से कई विवाद समाप्त हो जाते हैं। मधुर वाणी औषधि के सामान होती है, जबकि कटु वाणी तीर के समान पीड़ा देती है।

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मधुर वाणी से एक – दूसरे के प्रति प्रेम की भावना का संचार होता है, जबकि कटु वचनों से इंसान एक – दूसरे के विरोधी बन जाते है। इसी प्रकार तुलसीदासजी कहते हैं,’तुलसी मीठे वचन ते सुख उपजत चहुं ओर। बसीकरन इक मंत्र है, परिहरू वचन कठोर। ‘मीठे बोलने से चारों ओर खुशियां फैल जाती हैं और सब खुशहाल रहता है। मीठे वचन बोलकर कोई भी मनुष्य किसी को भी अपने वश में कर सकता है।

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