हिमशिखर धर्म डेस्क
श्रीकृष्ण और बलराम की बहन थीं सुभद्रा। बलराम चाहते थे कि सुभद्रा का विवाह दुर्योधन से हो। जबकि, सुभद्रा दुर्योधन से नहीं, अर्जुन से विवाह करना चाहती थीं।
श्रीकृष्ण ने अर्जुन से कहा, ‘तुम सुभद्रा से विवाह कर लो।’ इसके बाद अर्जुन ने सुभद्रा का अपहरण कर लिया। उस समय यदुवंशियों की सभा चल रही थी और उन्हें सूचना दी गई कि अर्जुन ने सुभद्रा का अपहरण कर लिया है।
ये बात सुनते ही बलराम क्रोधित हो गए। बलराम ने यदुवंशियों को आदेश दिया कि युद्ध की तैयारियां की जाएं। अर्जुन भी एक योद्धा है, उससे युद्ध आसान नहीं होगा। सभी यदुवंशियों ने बड़े युद्ध की तैयारी कर ली।
बलराम ने देखा कि सभी युद्ध की तैयारी में लगे हैं और कृष्ण चुपचाप बैठे हैं। बलराम ने पूछा, ‘कृष्ण, तुम क्यों चुपचाप बैठे हो? तुम्हारे कहने पर ही हमने अर्जुन का सत्कार किया था। आज उसने जिस थाली में खाना खाया है, उसी में छेद कर दिया।’
बलराम समझ गए कि कृष्ण चुप हैं तो इसके पीछे जरूर कोई रहस्य है। श्रीकृष्ण ने कहा, ‘आप सभी लोग इस समय आवेश में हैं। अर्जुन को मारना चाहते हैं तो क्या अपनी बहन को विधवा बनाएंगे। अर्जुन कोई सामान्य व्यक्ति नहीं है। कुंती पुत्र को कौन संबंधी नहीं बनाना चाहेगा। बड़े भैया ध्यान रखें, अपने परिवार के युवा सदस्यों के विवाह का निर्णय सिर्फ वर्तमान देखकर नहीं लिया जाता। उसमें पिछले समय के साथ ही भविष्य भी देखा जाता है। मैं देख सकता हूं कि दुर्योधन का भविष्य अंधकार में है और अर्जुन का भविष्य उज्जवल है। ये आपको भी देखना चाहिए। इस समय अर्जुन के पास मेरा ही रथ है। मेरे ही अद्भुत घोड़े हैं। उससे युद्ध करना आसान नहीं है। हमें तो उसका स्वागत करना चाहिए कि हमारी बहन ने एक योग्य व्यक्ति को अपना जीवन साथी बनाया है।’
श्रीकृष्ण की प्रभावशाली बातें सुनकर सभी नतमस्तक हो गए और अर्जुन को सम्मान के साथ स्वीकार किया गया।
सीख
इस किस्से में श्रीकृष्ण ने हमें संदेश दिया है कि हमारे घर-परिवार में जब किसी सदस्य का रिश्ता तय किया जाए तो लड़के या लड़के के वर्तमान के साथ ही बीते समय और भविष्य की संभावनाओं पर भी ध्यान देना चाहिए।