सुप्रभातम्: इतना भयानक होगा कलयुग का अंत

हिमशिखर धर्म डेस्क

Uttarakhand

कलिमल ग्रसे धर्म सब लुप्त भए सदग्रंथ।
दंभिन्ह निज मति कल्पि करि प्रगट किए बहु पंथ॥

भावार्थ:-कलियुग के पापों ने सब धर्मों को ग्रस लिया, सद्ग्रंथ लुप्त हो गए, दम्भियों ने अपनी बुद्धि से कल्पना कर-करके बहुत से पंथ प्रकट कर दिए॥

गोस्वामी तुलसीदासजी श्रीमद्भागवद और रामायण के अनुसार ही रामचरित के उत्तर कांड में काकभुशुण्डि का अपनी पूर्व जन्म कथा और कलि महिमा का वर्णन करने का उल्लेख करते हैं।

भालका में सूचना कियोस्क, वह स्थान जहां से श्रीकृष्ण अपने धाम लौटे थे

कई हजार वर्ष पूर्व भागवत में शुकदेवजी ने जिस बारीकी से और विस्तार के साथ कलयुग का वर्णन किया है वह हमारी आंखें खोलने के लिए काफी है। आज उसी वर्णन अनुसार ही घटनाएं घट रही है और आगे भी जो लिखा है वैसा ही घटेगा।

कलियुग यानी काला युग, कलह-क्लेश का युग, जिस युग में सभी के मन में असंतोष हो, सभी मानसिक रूप से दुखी हों, वह युग ही कलियुग है। इस युग में धर्म का सिर्फ एक चौथाई अंश ही रह जाता है। श्रीमद्भागवत पुराण और भविष्यपुराण में कलियुग के अंत का वर्णन मिलता है। कलियुग में भगवान कल्कि का अवतार होगा, जो पापियों का संहार करके फिर से सतयुग की स्थापना करेंगे। कलियुग के अंत और कल्कि अवतार के संबंध में अन्य पुराणों में भी इसका वर्णन मिलता है।

खगोलशास्त्री और गणितज्ञ आर्यभट, जिनका जन्म ४७६ ईस्वी में हुआ था, ने अपनी पुस्तक आर्यभटीय ४९९ ईस्वी में पूरी की, जिसमें उन्होंने लिखा “जब तीन युग (सतयुग, त्रेतायुग और द्वापरयुग) बीत चुके हैं और कलियुग के ६० * ६० (३,६००) वर्ष बीत चुके हैं, तब मैं अब २३ वर्ष का हूँ।” इस जानकारी के आधार पर, कलियुग की शुरुआत ३१०२ ईसा पूर्व में हुई थी, जिसकी गणना ३६०० – (४७६ + २३) + १ (१ ईसा पूर्व से १ ईस्वी तक कोई वर्ष शून्य नहीं) से की जाती है।

के. डी. अभ्यंकर के अनुसार, कलियुग का प्रारंभिक बिंदु एक अत्यंत दुर्लभ ग्रह संरेखण है, जिसे मुअनजो-दड़ो मुहरों में दर्शाया गया है।

कब होगा कलियुग का अंत : मनुष्य का एक मास, पितरों का एक दिन रात। मनुष्य का एक वर्ष देवता का एक दिन रात। मनुष्य के 30 वर्ष देवता का एक मास। मनुष्य के 360 वर्ष देवता का एक वर्ष (दिव्य वर्ष)। मनुष्य के 432000 वर्ष। देवताओं के 1200 दिव्य वर्ष अर्थात एक कलियुग। मनुष्य के 864000 वर्ष देवताओं के 2400 दिव्य वर्ष अर्थात एक द्वापर युग। मनुष्य के 1296000 वर्ष देवताओं के 3600 दिव्य वर्ष अर्थात एक त्रेता युग।

मनुष्य के 1728000 वर्ष अर्थात देवताओं के 4800 दिव्य वर्ष अर्थात एक सतयुग। इस सबका कुल योग मानव के 4320000 वर्ष अर्थात 12000 दिव्य वर्ष अर्थात एक महायुग या एक चतुर्युगी चक्र।

सतयुग 4800 (दिव्य वर्ष) 17,28,000 (सौर वर्ष)
त्रेतायुग 3600 (दिव्य वर्ष) 12,96,100 (सौर वर्ष)
द्वापरयुग 2400 (दिव्य वर्ष) 8,64,000 (सौर वर्ष)
कलियुग 1200 (दिव्य वर्ष) 4,32,000 (सौर वर्ष)

इस मान से कलियुग का काल 4,32,000 साल लंबा चलेगा। अभी कलियुग का प्रथम चरण ही चल रहा। कलियुग का प्रारंभ 3102 ईसा पूर्व से हुआ था, जब पांच ग्रह; मंगल, बुध, शुक्र, बृहस्‍पति और शनि, मेष राशि पर 0 डिग्री पर हो गए थे। इसका मतलब 3102+2016= 5118 वर्ष कलियुग के बीत चुके हैं और 426882 वर्ष अभी बाकी है।

ब्रह्मवैवर्त पुराण में बताया गया है कि कलियुग में ऐसा समय भी आएगा जब इंसान की उम्र बहुत कम रह जाएगी, युवावस्था समाप्त हो जाएगी। कलि के प्रभाव से प्राणियों के शरीर छोटे-छोटे, क्षीण और रोगग्रस्त होने लगेंगे।

श्रीमद्भागवत के द्वादश स्कंध में कलयुग के धर्म के अंतर्गत श्रीशुकदेवजी परीक्षितजी से कहते हैं, ज्यों-ज्यों घोर कलयुग आता जाएगा, त्यों-त्यों उत्तरोत्तर धर्म, सत्य, पवित्रता, क्षमा, दया, आयु, बल और स्मरणशक्ति का लोप होता जाएगा।…अर्थात लोगों की आयु भी कम होती जाएगी जब कलिकाल बढ़ता चला जाएगा।

कलयुग के अंत में…जिस समय कल्कि अवतार अव‍तरित होंगे उस समय मनुष्य की परम आयु केवल 20 या 30 वर्ष होगी। जिस समय कल्कि अवतार आएंगे। गाएं भी बकरियों की तरह छोटी छोटी और कम दूध देने वाली हो जाएगी।

पुत्रः पितृवधं कृत्वा पिता पुत्रवधं तथा।
निरुद्वेगो वृहद्वादी न निन्दामुपलप्स्यते।।
म्लेच्छीभूतं जगत सर्व भविष्यति न संशयः।
हस्तो हस्तं परिमुषेद् युगान्ते समुपस्थिते।।

अपनी प्रशंसा के लिए लोग बड़ी-बड़ी बातें बनायेंगे किन्तु समाज में उनकी निन्दा नहीं होगी। उस समय सारा जगत् म्लेच्छ हो जाएगा- इसमें संशय नहीं। एक हाथ दूसरे हाथ को लूटेगा।

घोर कलियुग में लोग शास्त्रों से विमुख हो जाएंगे। अनैतिक साहित्य ही लोगों की पसंद हो जाएगा। बुरी बातें और बुरे शब्दों का ही व्यवहार किया जाएगा।

श्रीमद्भागवत के द्वादश स्कंध में कलयुग के धर्म के अंतर्गत श्रीशुकदेवजी परीक्षितजी से कहते हैं, ज्यों-ज्यों घोर कलयुग आता जाएगा, त्यों-त्यों उत्तरोत्तर धर्म, सत्य, पवित्रता, क्षमा, दया, आयु, बल और स्मरणशक्ति का लोप होता जाएगा।…अर्थात लोगों की आयु भी कम होती जाएगी जब कलिकाल बढ़ता चला जाएगा।…

बहुत काल तक सूखा रहने के बाद कलियुग में अंतिम समय में बहुत मोटी धारा से लगातार वर्षा होगी, जिससे चारों ओर पानी ही पानी हो जाएगा। समस्त पृथ्वी पर जल हो जाएगा और प्राणियों का अंत हो जाएगा। इसके बाद एक साथ बारह सूर्य उदय होंगे और उनके तेज से पृथ्वी सूख जाएगी।

कलियुग के अंत में भयंकर तूफान और भूकंप ही चला करेंगे। लोग मकानों में नहीं रहेंगे। लोग गड्डे खोदकर रहेंगे। धरती का तीन हाथ अंश अर्थात लगभग साढ़े चार फुट नीचे तक धरती का उपजाऊ अंश नष्ट हो जाएगा। भूकंप आया करेंगे।…

महाभारत में कलियुग के अंत में प्रलय होने का जिक्र है, लेकिन यह किसी जल प्रलय से नहीं बल्कि धरती पर लगातार बढ़ रही गर्मी से होगा। महाभारत के वनपर्व में उल्लेख मिलता है कि कलियुग के अंत में सूर्य का तेज इतना बढ़ जाएगा कि सातों समुद्र और नदियां सूख जाएंगी। संवर्तक नाम की अग्रि धरती को पाताल तक भस्म कर देगी।

वर्षा पूरी तरह बंद हो जाएगी। सब कुछ जल जाएगा, इसके बाद फिर बारह वर्षों तक लगातार बारिश होगी। जिससे सारी धरती जलमग्र हो जाएगी।…जल में फिर से जीव उत्पत्ति की शुरुआत होगी।

महर्षि व्यासजी के अनुसार कलयुग में मनुष्यों में वर्ण और आश्रम संबंधी प्रवृति नहीं होगी। वेदों का पालन कोई नहीं करेगा। कलयुग में विवाह को धर्म नहीं माना जाएगा। शिष्य गुरु के अधीन नहीं रहेंगे। पुत्र भी अपने धर्म का पालन नहीं करेंगे। कोई किसी कुल में पैदा ही क्यूं न हुआ जो बलवान होगा वही कलयुग में सबका स्वामी होगा। कलयुग में जो भी किसी का वचन होगा वही शास्त्र माना जाएगा।

घोर कलयुग में थोड़े से धन से मनुष्यों में बड़ा घमंड होगा। उस समय लोग प्रभुता के ही कारण सम्बन्ध रखेंगे। द्रव्यराशी घर बनाने में ही समाप्त हो जाएगी इससे दान-पुण्य के काम नहीं होंगे और बुद्धि धन के संग्रह में ही लगी रहेगी।

घोर कलयुग में सदा अकाल ही पड़ता रहेगा। सब लोग हमेशा किसी न किसी कलेशो से घिरे रहेंगे। किसी-किसी तो थोड़ा सुख भी मिल जाएगा। सब लोग बिना स्नान करे ही भोजन करेंगे। देव पूजा अतिथि-सत्कार श्राद्ध और तर्पण की क्रिया कोई नहीं करेगा।

ब्रह्मचारी लोग वेदों में कहे गए व्रत का पालन किए बिना ही वेदाध्यापन करेंगे। गृहस्थ पुरुष न तो हवन करेंगे न ही सत्पात्र को उचित दान देंगे। वनों में रहने वाले वन के कंद-मूल आदि से निर्वाह न करके ग्रामीण आहार का संग्रह करेंगे।

अधम मनुष्य संस्कारहीन होते हुए भी पाखंड का सहारा लेकर लोगों ठगने का काम करेंगे। उस समय पाखंड की अधिकता और अधर्म की वृद्धि होने से लोगो की आयु कम होती चली जाएगी।

लोग ऋण चुकाए बिना ही हड़प लेंगे तथा जिसका शास्त्र में कहीं विधान नहीं है ऐसे यज्ञों का अनुष्ठान होगा। मनुष्य अपने को ही पंडित समझेंगे और बिना प्रमाण के ही सब कार्य करेंगे। तारों की ज्योति फीकी पड़ जाएगी, दसों दिशाएं विपरीत होंगी।

कलयुग में समय के साथ-साथ मनुष्य वर्तमान पर विश्वास करने वाले, शास्त्रज्ञान से रहित, दंभी और अज्ञानी होंगे। जब जगत के लोह सर्वभक्षी हो जाएं, स्वंय ही आत्मरक्षा के लिए विवश हो तथा राजा उनकी रक्षा करने में असमर्थ हो जाएंगे तब मनुष्यों में क्रोध-लोभ की अधिकता हो जाएगी।

कलयुग के अंत के समय बड़े-बड़े भयंकर युद्ध होंगे, भारी वर्षा, प्रचंड आंधी और जोरों की गर्मी पड़ेगी।

लोग खेती काट लेंगे, कपड़े चुरा लेंगे, पानी पिने का सामान और पेटियां भी चुरा ले जाएंगे। चोर अपने ही जैसे चोरों की संपत्ति चुराने लगेंगे। हत्यारों की भी हत्या होने लगेगी, चोरों से चोरों का नाश हो जाने के कारण जनता का कल्याण होगा। युगान्त्काल में मनुष्यों की आयु अधिक से अधिक तीस वर्ष की होगी। लोग दुर्बल, क्रोध-लोभ, तथा बुड़ापे और शोक से ग्रस्त होंगे।

उस समय रोगों के कारण इन्द्रियां क्षीण हो जाएंगी। फिर धीरे-धीरे लोग साधू पुरुषों की सेवा, दान, सत्य एवं प्राणियों की रक्षा में तत्पर होंगे। इससे धर्म के एक चरण की स्थापना होगी। उस धर्म से लोगों को कल्याण की प्राप्ति होगी। लोगों के गुणों में परिवर्तन होगा और धर्म से लाभ होने का अनुमान होने लगेगा।

फिर श्रेष्ठ क्या है, इस बात पर विचार करने से धर्म ही श्रेष्ठ दिखाई देगा। जिस प्रकार क्रमशः धर्म की हानि हुई थी, उसी प्रकार धीरे-धीरे प्रजा धर्म की वृद्धि को प्राप्त होगी। इस प्रकार धर्म को पूर्णरूप से अपना लेने पर सब लोग सत्ययुग देखेंगे।

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