सुप्रभातम्: पितृ पक्ष में श्रीमद् भागवत कथा पढ़ने-सुनने की है परंपरा

हिमशिखर धर्म डेस्क

Uttarakhand

इन दिनों पितृ पक्ष के दौरान लोग अपने पितरों को याद करते हुए तर्पण व श्राद्ध कर रहे हैं। लोग घरों में श्रद्धा के साथ पितरों के प्रति लोग कृतज्ञता प्रकट कर रहे हैं। प्राचीन काल से पितृपक्ष के दौरान श्रीमद् भागवत कथा का श्रवण करने की परंपरा रही है।

श्रीमद्भागवत महापुराण भगवान श्रीकृष्ण की शब्दमयी मूर्ति है। ये कथा श्रीकृष्ण की महिमा बताती है। श्रीमदभागवत श्रीकृष्ण का वांगमय है। यही नही श्रीमदभागवत श्रीकृष्ण के मुख से निकली वाणी है और जब संकट में भगवत वाणी का श्रवण होता है तो संकट स्वत: टल जाता है।

कब और किसने लिखी श्रीमद् भागवत कथा?

महर्षि वेद व्यास ने महाभारत ग्रंथ की रचना की थी। इस सबसे बड़े ग्रंथ की रचना करने के बाद भी वेद व्यास जी के मन को शांति नहीं मिल रही थी। वे उदास रहने लगे थे। उस समय नारद मुनि वेद व्यास जी के पास पहुंचे।

नारद मुनि ने व्यास जी को निराश देखा तो उनसे इसकी वजह से पूछी। व्यास जी ने जवाब दिया कि मैंने महाभारत जैसे ग्रंथ की रचना की है, लेकिन मेरा मन अशांत ही है।

नारद मुनि ने कहा कि आपके महाभारत ग्रंथ में परिवार की लड़ाई है, युद्ध है, अशांति है, अवगुण हैं। इस वजह से आपका मन अशांत है। आपको ऐसा ग्रंथ रचना चाहिए, जिसको पढ़ने के बाद हमारा मन शांत हो, बुरे विचार खत्म हों। ऐसा ग्रंथ रचें, जिसके केंद्र में भगवान हों। ऐसा ग्रंथ, जिसका मूल सकारात्मक हो।

नारद मुनि की बातें सुनने के बाद वेद व्यास जी ने श्रीमद् भागवत कथा की रचना की। इस ग्रंथ को सकारात्मक सोच के साथ लिखा गया, इसके केंद्र में भगवान श्रीकृष्ण हैं। भगवान की लीलाओं की मदद से हमें संदेश दिया गया है कि हम दुखों का और परेशानियों का सामना सकारात्मक सोच के साथ करेंगे तो जीवन में शांति जरूर आएगी।

सबसे पहले किसने किसे सुनाई भागवत कथा?

वेद व्यास जी ने इस ग्रंथ की रचना की और इसके बाद उन्होंने अपने पुत्र शुकदेव को ये कथा बताई थी। बाद में शुकदेव जी ने पांडव अर्जुन के पुत्र अभिमन्यु के पुत्र राजा परीक्षित को ये कथा सुनाई थी। शुकदेव जी ने ही अन्य ऋषि-मुनियों को भागवत कथा का ज्ञान दिया था।

राजा परीक्षित को क्यों सुनाई थी भागवत कथा?

राजा परीक्षित को एक ऋषि ने शाप दे दिया था कि सात दिनों के बाद तक्षक नाग के डंसने से उसकी मौत हो जाएगी। इस शाप की वजह से परीक्षित निराश हो गए थे, उनका मन अशांत था, तब वे शुकदेव जी के पास पहुंचे और अपनी परेशानियां बताईं। इसके बाद शुकदेव जी ने परीक्षित को भागवत कथा सुनाई। कथा सुनने के बाद परीक्षित की सभी शंकाएं दूर हो गईं, मन शांत हो गया और जन्म-मृत्यु का मोह भी खत्म हो गया। इसके बाद सातवें दिन तक्षक नाग के डंसने से परीक्षित की मृत्यु हो गई थी।

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